(अपडेट) प्रख्यात साहित्यकार एसएल भैरप्पा का बेंगलुरु में निधन, प्रधानमंत्री ने जताया शोक

युगवार्ता    24-Sep-2025
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साहित्य अकादमी ने कन्नड़ लेखक डॉ भैरप्पा को दी श्रद्धांजलि


नई दिल्ली/बेंगलुरु, 24 सितंबर (हि.स.)। प्रख्यात साहित्यकार और साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य डॉ. एसएल भैरप्पा का बुधवार को बेंगलुरु के एक अस्पताल में हृदय गति रुकने से निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे। राष्ट्रोत्थान अस्पताल ने एक बयान में कहा, प्रख्यात उपन्यासकार, पद्मभूषण और सरस्वती सम्मान से अलंकृत डॉ. एसएल भैरप्पा का आज दोपहर 2.38 बजे हृदयगति रुकने से निधन हो गया।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा दुख जताया है। भैरप्पा के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। साहित्य अकादमी ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताया है। प्रधानमंत्री ने एक्स पोस्ट में लिखा, एसएल भैरप्पा के निधन से हमने एक ऐसे महान व्यक्तित्व को खो दिया है जिन्होंने हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया और भारत की आत्मा में गहराई से उतर गए। एक निडर और कालातीत विचारक, उन्होंने अपनी विचारोत्तेजक रचनाओं से कन्नड़ साहित्य को समृद्ध किया। उनके लेखन ने पीढ़ियों को चिंतन करने, प्रश्न करने और समाज के साथ अधिक गहराई से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। हमारे इतिहास और संस्कृति के प्रति उनका अटूट जुनून आने वाले वर्षों में लोगों को प्रेरित करता रहेगा। इस दुखद घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं।साहित्य अकादमी ने अपनी शोक संवेदना में कहा कि अत्यंत दुख और आघात के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि प्रख्यात उपन्यासकार, दार्शनिक, पटकथा लेखक, बहुमुखी विद्वान और साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य डॉ. एसएल भैरप्पा का निधन हो गया है। उन्होंने प्राचीन ग्रंथों, परंपराओं और ऐतिहासिक कथाओं के प्रति जनमानस में गहन रुचि को पुनः सृजित किया। उन्होंने अकेले ही भारत में उपन्यास लेखन में क्रांति ला दी और उनकी कृतियां, जो भारत की विविध दार्शनिक विचारधाराओं पर आधारित थीं, विशेष रूप से युवा वर्ग में अत्यधिक लोकप्रिय हुईं, जिसके परिणामस्वरूप कई युवाओं ने दर्शनशास्त्र को गंभीरता से अपनाया। उनका निधन भारतीय साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है। साहित्य अकादमी उनके निधन पर शोक व्यक्त करती है और भारतीय साहित्यिक समुदाय के साथ मिलकर डॉ. भैरप्पा को श्रद्धांजलि अर्पित करती है।

डॉ. भैरप्पा एक प्रसिद्ध कन्नड़ उपन्यासकार, दार्शनिक और पटकथा लेखक थे। उनका जन्म 20 अगस्त 1931 को कर्नाटक के हासन में हुआ था। वे 25 वर्षों से भी अधिक समय तक कन्नड़ भाषा के सबसे अधिक बिकने वाले लेखकों में से एक रहे। उनके प्रमुख उपन्यासों में गृहभंगा, वंशवृक्ष, नेले, साक्षी, नाइ नेनु, तब्बलियु नीनाडे मगने, दातु, धर्मश्री, पर्व, भित्ती और 24 अन्य उपन्यास शामिल हैं। इनमें से कई कृतियों का हिंदी, मराठी और अंग्रेजी सहित चौदह भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है, जिससे उनकी लोकप्रियता कर्नाटक से बाहर भी फैली। उनके असाधारण साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों में ​साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975) उनके उपन्यास 'दाटु' के लिए, पद्म श्री (2016), सरस्वती सम्मान (2010) उनके उपन्यास 'मंदरा' के लिए, पद्म भूषण (2023) शामिल हैं।-----------

हिन्दुस्थान समाचार / श्रद्धा द्विवेदी

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