नई दिल्ली, 26 सितंबर (हि.स.)। भारत में बाल विवाह के मामलों में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है। लड़कियों में बाल विवाह के मामलों में 69 प्रतिशत और लड़कों में 72 प्रतिशत की कमी आई है। असम ने 84 प्रतिशत की गिरावट दर्ज कर सबसे बड़ी सफलता हासिल की है, जबकि महाराष्ट्र और बिहार में 70-70 प्रतिशत, राजस्थान में 66 प्रतिशत और कर्नाटक में 55 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है।
यह खुलासा जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) की रिपोर्ट “टिपिंग प्वाइंट टू ज़ीरो: एविडेंस टुवर्ड्स ए चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया” में हुआ है। जिसे न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक साइड इवेंट में जारी किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक गिरफ्तारियां और एफआईआर दर्ज होना बाल विवाह रोकने का सबसे बड़ा निवारक साबित हुआ है। इसमें यह भी सामने आया कि 99 फीसदी लोगों ने केंद्र सरकार के बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के बारे में सुना या देखा है, जिसमें सबसे ज्यादा योगदान एनजीओ, स्कूल और पंचायतों का रहा।
असम की ऐतिहासिक सफलता को देखते हुए जेआरसी ने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को ‘चैंपियंस ऑफ चेंज’ अवॉर्ड देने की घोषणा की। रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में 93 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 89 प्रतिशत और असम में 88 प्रतिशत लोगों ने एनजीओ अभियानों के जरिये इस अभियान के बारे में जाना, जबकि राजस्थान (87 प्रतिशत) और महाराष्ट्र (77 प्रतिशत) में स्कूल जागरूकता के सबसे बड़े माध्यम बने।
बाल विवाह के कारणों में गरीबी को सबसे बड़ा कारण बताया गया है। जबकि 44 प्रतिशत लोगों ने इसे नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा और कुछ ने सामाजिक परंपराओं से जोड़कर देखा। लड़कियों की शिक्षा में गरीबी (88 प्रतिशत), अधोसंरचना की कमी (47 प्रतिशत), सुरक्षा (42 प्रतिशत) और परिवहन (24 प्रतिशत) को बड़ी बाधाएं बताया गया है।
रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशों में बाल विवाह कानून का कड़ाई से पालन, विवाह पंजीकरण अनिवार्य करना, बेहतर रिपोर्टिंग तंत्र विकसित करना और बाल विवाह मुक्त भारत पोर्टल की जागरूकता गांव-स्तर तक पहुंचाना शामिल है। साथ ही, राष्ट्रीय बाल विवाह निषेध दिवस घोषित करने की भी सिफारिश की गई है।
जेआरसी संस्थापक भुवन रिभु ने कहा कि भारत बाल विवाह के अंत के करीब है और यह केवल सतत विकास लक्ष्य की प्राप्ति नहीं बल्कि दुनिया को दिखाने का प्रमाण है कि बाल विवाह का अंत संभव और अवश्यंभावी है।
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हिन्दुस्थान समाचार