नई दिल्ली, 27 सितंबर (हि.स.)। लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने शनिवार को कहा कि भारत का सौभाग्य है कि नदियां हैं और उसी से भारतीय सांस्कृतिक सत्ता अक्षुण्ण है।
मालिनी ने यह बात दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में तीन दिवसीय 25 से 27 सितम्बर तक आयोजित छठे नदी उत्सव के समापन समारोह के अवसर पर कही। समापन सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केन्द्रीय कार्यालय मंत्री गोपाल आर्य आईजीएनसीए के प्रो. के. अनिल कुमार और नदी उत्सव के संयोजक अभय मिश्रा सहित अतिथिगण उपस्थित रहे।
मालिनी अवस्थी ने कहा, लोकगीतों में नदियां केवल बहती जलधाराएं नहीं हैं, बल्कि उनका मानवीकरण किया गया है। वे नायिका बनकर प्रेम, विरह और लालसा का स्वर रचती हैं, तो कभी मां, बहन और बेटी के रूप में जीवन को पोषित करती हैं।
इस मौके पर उन्होंने पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ का टाइटल गीत तथा बटोही गीत ‘सुंदर सुभूमि भैया भरत के देसवा में’ गाकर सबको मंत्रमुग्ध किया।
गोपाल आर्य ने कहा, ये नदी उत्सव केवल उत्सव नहीं है, एक मंथन है। नदी केवल प्रवाहित होने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि नदी हमारी संस्कृति है।
समापन दिवस की शुरुआत दीपिका बंसल द्वारा निर्देशित डॉक्युमेंट्री फिल्म ‘एक दिल्ली यमुना की’ से हुई, जिसने यमुना और दिल्ली के रिश्ते पर एक भावपूर्ण दास्तान पेश की। इसके अतिरिक्त, बहुभाषी और बहुआयामी फिल्मों जैसे ‘ऑफ कर्सेज एंड बिट्रेयल’, ‘समयाडु हरिवु’, ‘कावेरी- रिवर ऑफ लाइफ’ आदि की स्क्रीनिंग की गई, जिन्होंने भारतीय नदियों की सांस्कृतिक, पारिस्थितिकीय और भावनात्मक विरासत को सशक्त रूप में दर्शाया। विशेष स्क्रीनिंग में ‘लद्दाख- लाइफ अलॉन्ग द इंडस’ भी शामिल थी।
इससे दिन की शुरुआत दीपिका बंसल द्वारा निर्देशित डॉक्युमेंट्री फिल्म ‘एक दिल्ली यमुना की’ से हुई, जो यमुना और दिल्ली के रिश्ते पर एक भावपूर्ण दास्तान पेश करती है। इसके बाद बहुभाषी और बहुआयामी फिल्मों- ‘ऑफ कर्सेज एंड बिट्रेयल’, ‘समयाडु हरिवु’, ‘कावेरी- रिवर ऑफ लाइफ’, ‘होकेसरार- द क्वीन ऑफ वेटलैंड’, ‘कासाद्रु’. ‘बॉयज फ्रॉम द ग्रोव,’ ‘कालिंदी- ऐन अर्बन लेजेंड’ और ‘द लॉस्ट मेलोडी ऑफ मुसी’ ने भारतीय नदियों की सांस्कृतिक, पारिस्थितिकीय और भावनात्मक विरासत को सशक्त रूप में दर्शाया। इसके बाद, ‘लद्दाख- लाइफ अलॉन्ग द इंडस’ की विशेष स्क्रीनिंग की गई।
नदी उत्सव के अवसर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतर्गत ‘रिवरस्केप डायनेमिक्स, चेंजेंस एंड कंटिन्युटी’ (नदी परिदृश्य गतिशीलता: परिवर्तन और निरंतरता) विषय पर तीन महत्वपूर्ण सत्र सम्पन्न हुए, जिनमें ‘द रिवर इन आर्ट’, ‘रिवर गॉड्स एंड/इन फोक नरेटिव्स’ और ‘साइंस एंड रिवर्स’ पर चर्चा की गई।
भारतीय सेना के पूर्व सैनिकों ने ‘नदी के संतरी’ सत्र में अपने जीवन यात्रा और नदियों से जुड़ी स्मृतियों को साझा किया।
‘लाइफ अलॉन्ग द रिवर्स : ट्रिब्यूटरीज एंड लाइवलीहुड’ विषय पर एक पैनल चर्चा का आयोजन भी किया गया।
तीन दिवसीय नदी उत्सव की अंतिम प्रस्तुति ‘बंगाल के नदी गीत’ थी, जिसमें सौरव मोनी और उनकी टीम ने अपने परफॉरमेंस से श्रोताओं का मन मोह लिया।
नदी उत्सव के अंतर्गत आयोजित नदी विषयक प्रदर्शनियां 30 सितंबर तक जारी रहेंगी, जो समकालीन कलाकृतियों, कालीघाट पेंटिंग्स, फोटोग्राफी और कविताओं के माध्यम से नदियों की सौंदर्य और चेतना को प्रदर्शित करती हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रद्धा
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रभात मिश्रा