नई दिल्ली, 29 सितंबर (हि.स.)। जब पोलैंड की मैग्दलेना एंड्रुस्ज़किविच ने विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप्स में महिलाओं की T72 400 मीटर फाइनल साइकिल रेस की फिनिश लाइन पार की, तो जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम तालियों से गूंज उठा। दर्शकों के लिए यह एक दिव्यांग एथलीट की शानदार जीत थी, लेकिन मैग्दलेना के लिए यह सात वर्षों की संघर्ष, धैर्य और अटूट उम्मीदों का परिणाम था।
37 वर्षीय मैग्दलेना की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। सात साल पहले आए स्ट्रोक ने उनके जीवन की दिशा बदल दी थी। शरीर का एक हिस्सा निष्क्रिय हो गया और उन्हें लगा कि सब कुछ खत्म हो गया है, लेकिन इसी मोड़ ने उनकी नई यात्रा की शुरुआत की। फिजियोथेरेपी के दौरान फ्रेम साइकिल चलाना उनके लिए उम्मीद की पहली किरण बना। वह कहती हैं, “शुरुआत में यह सिर्फ पैरों पर खड़े होने की कोशिश थी। धीरे-धीरे यह जुनून बन गया और फिर मेरी पूरी ज़िंदगी।”
पांच साल पहले उन्होंने पैरा एथलेटिक्स को पूरी तरह अपनाया। जापान के कोबे में आयोजित पिछले संस्करण में उन्होंने विश्व रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता था। इससे पहले, 2023 पेरिस विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप्स में वह रजत जीत चुकी थीं। रविवार को दिल्ली में उन्होंने एक बार फिर अपनी बादशाहत साबित करते हुए 1 मिनट 13 सेकंड में दौड़ पूरी की और सफलतापूर्वक अपने खिताब की रक्षा की।
मैग्दलेना का सपना अब 2028 लॉस एंजेलिस पैरालंपिक्स में T72 इवेंट का पदार्पण और वहां स्वर्ण पदक जीतना है। भारत में पहली बार प्रतिस्पर्धा करते हुए उन्होंने दर्शकों के उत्साह और गर्मजोशी की तारीफ की—“भारत शानदार है, यहां की ऊर्जा ने मुझे प्रेरित किया।”
स्ट्रोक से पहले वह एक नर्तकी थीं। नृत्य से मिली अनुशासन, लय और धैर्य की शिक्षा ही उनके खेल जीवन में सहारा बनी।
आज मैग्दलेना सिर्फ ट्रैक की चैंपियन नहीं, बल्कि साहस और उम्मीद की प्रतीक हैं। भविष्य के पैरा एथलीटों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा, “खेल सबके लिए हैं। शारीरिक अक्षमता मायने नहीं रखती—जुनून है तो कुछ भी संभव है।”
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे