केंद्रीय भत्ता बढ़ाकर महंगाई से निजात वाला तरीका गरीबों से क्रूर मजाक के सिवा और कुछ नहीं है। विकास भी जरूरी है और गरीब जन का जीवन भी। इसलिए एक कल्याणकारी राष्ट्र के नाते सभी बिंदुओं पर तर्कसंगत निर्णय जरूरी है।
देखते-देखते महज 2 साल में ही घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत लगभग दोगुना के करीब हो गई। जिस घर में दवा का पैसा न हो वो एक हजार रुपये के गैस सिलेंजर कहां से भरवाएगा। आखिर गृहणियों को धुएं से निजात इसी महंगे सिलेंडर से मिलेगी क्या? आखिर ऐसे में गांव की गरीब जनता फिर से सिलेंडर के सपनों का गलाघोंट कर लकड़ी से खाना बनाने के लिए मजबूर होगी।
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इसी तरह पिछले कुछ वर्षों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भारी वृद्धि के पीछे प्राथमिक कारण केंद्र सरकार के उत्पाद शुल्क और राज्य सरकार के वैट का धीरे-धीरे बढ़ना है। क्योंकि पेट्रोल और डीजल पर केंद्र द्वारा उत्पाद शुल्क और राज्यों द्वारा वैट शुल्क अधिक लेने से पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं। हालांकि, डीजल और पेट्रोल पर टैक्स हर राज्य में अलग-अलग होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य अलग-अलग बिक्री कर या वैट राशि लगाते हैं।
बात करें पेट्रोल-डीजल पर केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी और राज्य सरकार के वैट की तो इसमें अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। बजट 2008 के अनुसार एक लीटर पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 14.35 रुपये और डीजल पर 4.65 रुपये थी। जबकि 2014 में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रुपए और डीजल पर 3.56 रुपए थी। वहीं आज पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी क्रमश: 27.90 रुपये और 21.28 रुपये है। इससे स्पष्ट है कि विगत 6 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 250 फीसदी तक वृद्धि की है।
राजनीति में हर पार्टी दोष दूसरे पक्ष पर लगाना पसंद करती है। इस समय, दोनों पक्षों को केवल एक-दूसरे पर उंगली उठाने के बजाय कुछ करने की जरूरत है। केंद्र पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में कटौती कर आम जनता को भारी राहत दे सकती है। इसी तरह राज्य सरकारें भी सहयोग कर वैट घटाकर पेट्रोल-डीजल के दामों को 75 रुपये से नीचे कर सकती है।
महंगाई के इस दौर में अच्छा है कि देश में मुफ्त भोजन राशन जारी है अन्यथा करोडों लोग भूखे मर जाते। लेकिन मामला केलव भोजन तक सीमित नहीं है। बच्चे को पढ़ाने से लेकर वृद्धों के देखभाल की जिम्मेदारी एक परिवार पर होती है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021 में भारत को 116 देशों की सूची में 101वां स्थान प्राप्त हुआ है। जो एक गंभीर स्थिति को प्रदर्शित करता है। केंद्र और राज्य सरकार के लाख प्रयास के बावजूद गांव के एक बड़े गरीब तबके की बेरोजगारी, बाल कुपोषण, महंगी शिक्षा, आधारभूत सुविधाओं का अभाव ऐसे तथ्य हैं, जिनपर ध्यान रखकर नीतियां बनानी चाहिए। जब देश के 9-10 अमीरों के पास 50 फीसदी आबादी के बराबर संपत्ति हो तो महंगाई का प्रभाव गरीब और मध्य वर्ग पर कितना क्रूर होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। केंद्रीय भत्ता बढ़ाकर महंगाई से निजात वाला तरीका गरीबों से भद्दा मजाक के सिवा आर कुछ नहीं है। विकास भी जरूरी है और गरीब जन का जीवन भी। इसलिए एक कल्याणकारी राष्ट्र के नाते सभी बिंदुओं पर तर्कसंगत निर्णय जरूरी है। जिससे महंगाई से निजात भी मिले और देश का विकास भी हो।