हे राम, जय राम

युगवार्ता    23-Jun-2022
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बद्रीनाथ वर्मा

मंदिर की नींव का काम पूरा हो चुका है और अब गर्भगृह निर्मित होने के साथ ही सांस्कृतिक अस्मिता के नवयुग का आरंभ होगा। दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमिपूजन कर मंदिर निर्माण का शुभारंभ किया और अब सीएम योगी के हाथों गर्भगृह की आधारशिला रखने का पुनीत कार्य संपन्न हुआ। यह दिन देखने के लिए रामभक्तों ने करीब पांच शताब्दी तक सुदीर्घ संघर्ष किया और पीढ़ियों ने बलिदान दिया।


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वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक जून को राम जन्मभूमि स्थल पर शिला पूजन अनुष्ठान कर भव् गर्भगृह के निर्माण के लिए पहली शिला रखी। इस अवसर पर राम मंदिर आंदोलन से जुड़े 100 से ज्यादा संतों सहित 300 लोग इस ऐतिहासिक पल के गवाह बने। गर्भगृह का शिलान्यास करने के बाद सीएम योगी ने कहा कि दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमिपूजन कर मंदिर निर्माण का शुभारंभ किया और हमें गर्भगृह की आधारशिला रखने का शौभाग्य मिला। जल्द ही अयोध्या धाम में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा।

यह भव्य मंदिर बनकर देश और दुनिया के सभी सनातन हिन्दू धर्मावलंबियों की आस्था का प्रतीक तो बनेगा ही, श्री राम जन्मभूमि मंदिर भारत का राष्ट्र मंदिर होगा। मंदिर की नींव का काम पूरा हो चुका है और अब गर्भगृह निर्मित होने के साथ ही सांस्कृतिक अस्मिता के नवयुग का आरंभ होगा। यह दिन देखने के लिए रामभक्तों ने करीब पांच शताब्दी तक सुदीर्घ संघर्ष किया और पीढ़ियों ने बलिदान दिया। गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियां इस काम में लगी थीं। अयोध्या में 500 साल की तड़पन अब जल्द ही दूर होगी।

उल्लेखनीय है कि राम मंदिर के लिए हिंदुओं को लंबा संघर्ष करना पड़ा है। इस संघर्ष में अर्पण भी था, तर्पण भी था और संकल्प भी था। करीब 500 सालों तक चले विवाद और हिंदुस्तान के इतिहास की सबसे लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 9 नवंबर 2019 को शीर्ष न्यायालय ने श्रीराम जन्मभूमि पर नीर क्षीर निर्णय करते हुए फैसला हिंदुओं के पक्ष में दिया था।

इसी के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसके बाद 5 अगस्त 2020 को श्रीराम जन्मभूमि परिसर में भव्य मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमिपूजन करने के साथ 22.6 किलोग्राम वजनी चांदी की ईंट समेत कुल 9 चांदी की ईंटों के साथ अयोध्या में श्रीराम मंदिर का शिलान्यास किया था।
 

श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य दिव्य मंदिर निर्माण के लिए हुए भूमि पूजन के साथ ही पांच अगस्त का दिन विश्व भर के हिंदुओं की सांस्कृतिक आजादी का दिन बन गया। ऐसा इसलिए कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारत की मर्यादा हैं। राम अनादि से अनन्त तक हैं और समस्त विश्व के राम भक्त राम में ही समाये हुए हैं। राम सबके हैं और सबमें हैं। राम का सब जगह होना भारत की विविधता में एकता का जीवन चरित्र है। राम मंदिर का निर्माण भारत के लिए केवल एक मंदिर भर का महत्व नहीं रखता है बल्कि आत्मगौरव से अलगाव और विषैले वाम आवरण से मुक्ति का महापर्व भी है। राम मंदिर का निर्माण हमें सैकड़ों वर्षों की दासता के दंश से मुक्त करने वाला अध्याय है।

बहरहाल, अयोध्या में तेजी से चल रहे भव्य राममंदिर का निर्माण कार्य लगभग 500 साल तक चले एक अनथक संघर्ष की लोकतांत्रिक विजय का स्वर्णिम पर्व भी है। इसी के साथ सियासी रुदालियों के लिए यह वैचारिक रूप से सुपुर्दे खाक होने जैसा पड़ाव है। स्वाभाविक है कि उनके लिए भव्य राममन्दिर के आधारशिला रखे जाने की पीड़ा असहनीय ही होगी।

500 सालों के संघर्ष, तप, त्याग बलिदान तथा अटल आस्था के प्रतिफल के रूप में 5 अगस्त 2020 को राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का श्रीगणेश के रूप में भूमि पूजन करोड़ों हिंदू जनमानस को प्रसन्नता की पराकाष्ठा प्रदान करने वाली अनुभूति थी। राम मंदिर की नींव रखे जाने का जोश सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के कई हिस्सों में देखा गया। हर तरफ बस श्री राम जय राम जय जय राम की गूंज सुनाई दी। घर के मुंडेरों, छतों बालकनियों पर जलते देदीप्यमान दीप भजन कीर्तन की मधुर स्वर लहरियां मानो कह रही हों अभिनंदन हे रघुनंदन।

अब मुख्यमंत्री योगी के हाथों राम मंदिर के गर्भगृह का शिलान्यास करोड़ों हिंदू जनमानस को प्रसन्नता की पराकाष्ठा प्रदान करने वाली अनुभूति है। भगवान राम के मंदिर का निर्माण न्याय प्रक्रिया के अनुरूप तथा जनसाधारण के उत्साह सामाजिक सौहार्द के संबल से हो रहा है। निश्चय ही यह आधुनिक भारत का प्रतीक बनेगा। वस्तुतः अयोध्या में भव्य राममंदिर का भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों और गर्भगृह का शिलान्यास योगी के हाथों से होना भारत के उस नए और मौलिक स्वरूप का उद्भव भी है जो पूरी दुनिया में अपनी मजबूत पहचान स्थापित कर रहा है। नए भारत में अब लोग अपनी संस्कृति पर हीनता नहीं बल्कि गर्व महसूस कर रहे हैं।


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भारत का विचार मानव सभ्यता को वसुधैव कुटम्बकम की सीख देता है वह अहिंसा और सहअस्तित्व का हामी है लेकिन वह निर्भीकता और आत्मगौरव को भी धारण करता है। आज के भारत में वह वर्ग अलग-थलग पड़ गया है जिसने प्राचीन भारत को आजादी के बाद लोकमानस से विलोपित कर केवल मध्यकालीन मुगलिया इतिहास को प्रतिष्ठित किया है। अयोध्या और राम के सवाल इस ब्रिगेड के लिए शूल की तरह चुभते रहे हैं। यही कारण है कि भारत की सरकार अपने अधिकृत हलफनामे में राम को काल्पनिक चरित्र करार देते हुए रामसेतु के अस्तित्व को नकार देने का दुस्साहस करती है।

इसके विपरीत राम मानवता के सबसे सुंदर सपने का साकार रूप हैं। राम भारत की पहचान हैं और इस पहचान को पुष्ट करने वाला हर कार्य स्तुत्य है। कई सदियों बाद एक ऐसा सपना साकार हो रहा है जिसके लिए करोड़ों लोगों ने अपनी जिंदगियां खपा दीं और लाखों लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये। सिर्फ ये दिन देखने के लिए कि अयोध्या में एक एक दिन भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा। आज की पीढ़ी सचमुच ही बहुत सौभाग्यशाली है जिसे श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण देखने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आज की पीढ़ी गर्व से कह सकती है कि हमने भव्य राम मंदिर की एक-एक ईंट को लगते देखा है।

सबसे ज्यादा सौभाग्य की बात है कि हमने अपने आराध्य राम को टेंट के मंदिर से भव्य राम मंदिर में विराजमान होते देखा है। ये दिन देखने के लिये ना जाने कितनी पीढ़ियों ने संघर्ष किया और जाने कितने रामभक्तों ने अपना लहू बहाया होगा। जिनके त्याग, बलिदान और संघर्ष से यह स्वप्न साकार हुआ है, जिनकी तपस्या राम मंदिर में नींव की तरह जुड़ी हुई है, उन सबके प्रति सभी सनातनधर्मी श्रद्धावनत हैं।

अयोध्या में राम का जन्मस्थान है इस तथ्य को निर्विवाद मानते हुए जिस जगह रामलला अस्थायी मंदिर में विराजमान थे उस 2.77 एकड़ भूमि को भगवान राम की जन्मभूमि स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से रामलला के पक्ष में निर्णय दिया था। रामलला के पक्ष में फैसला सुनाने का सबसे बड़ा आधार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई से निकले सबूत बने। कोर्ट ने माना कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी।

मस्जिद के नीचे विशाल रचना थी। एएसआई ने 12वीं सदी का मंदिर बताया था। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि वहां से जो कलाकृतियां मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला करोड़ों हिंदू जनमानस के सैकड़ों साल के संघर्ष बलिदान को मान्यता प्रदान करने वाला था। यानी रामजन्मभूमि था, रामजन्मभूमि है और रामजन्मभूमि ही रहेगा।

उल्लेखनीय है कि 1528 में ताकत के बल पर बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से मुगल आक्रांता बाबर के आदेश पर रामजन्मभूमि को ढहाकर वहां मस्जिद तामीर कर दी गई थी। उस वक्त भी मंदिर की रक्षा के लिए अनगिनत लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया और बाद के दिनों में भी इसके लिए खूनी संघर्ष होते रहे, जिसमें साधु-संन्यासियों से लेकर आम गृहस्थ तक अपने जीवन की आहुतियां देते रहे। आस्था और जिद की यह टकराहट लगातार चलती रही। तमाम झंझावातों को पार कर अंततः मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

भगवान राम की अद्भुत शक्ति देखिए। हमारी धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने के लिए इमारतें नष्ट कर दी गई, अस्तित्व मिटाने का प्रयास भी बहुत हुआ। लेकिन, राम हमारे मन में बसे हैं, हमारी संस्कृति का आधार हैं। भगवान श्रीराम का मंदिर हमारी संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा। हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक बनेगा। हमारी राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा और ये मंदिर करोड़ों करोड़ लोगों की सामूहिक संकल्प शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। राममंदिर के निर्माण की ये प्रक्रिया, राष्ट्र को जोड़ने का उपक्रम है। ये महोत्सव है विश्वास को विद्यमान से जोड़ने का, नर को नारायण से जोड़ने का, लोक को आस्था से जोड़ने का, वर्तमान को अतीत से जोड़ने का और स्वयं को संस्कार से जोड़ने का।

निर्माणाधीन दिव्य भव्य मंदिर की कुछ विशेषताए


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आर्किटेक्ट प्रॉजेक्ट के अनुसार मंदिर तीन मंजिला होगा और यह वास्तुशास्त्र के हिसाब से निर्मित हो रहा है। मंदिर का गर्भगृह कमल की आकृति का आठ कोण वाला होगा। इसकी दीवार 6 फिट मोटी होगी, जिसका बाहरी हिस्सा पिंक स्टोन का होगा। इसका कलश 161 फिट ऊंचा रहेगा। एक हजार साल से ज्यादा टिकने वाले राम मंदिर के प्रथम चरण में एक तीर्थ सुविधा केंद्र भी बनेगा। यह लगभग 25 हजार तीर्थ यात्रियों को आवश्यक सुविधाएं प्रदान करेगा। इसे पूरब दिशा में मंदिर पहुंचने के रास्ते के पास बनाया जाएगा। राम मंदिर के अलावा परिसर में भगवान वाल्मीकि, केवट, माता शबरी, जटायु, माता सीता, विघ्नेश्वर गणेश और शेषावतार के मंदिर बनाने की भी योजना है।
 
कुल 70 एकड़ क्षेत्र के भीतर और परकोटा के बाहर मंदिर के आस-पास के क्षेत्र में निर्माण किया जाएगा। मंदिर परियोजना में परकोटा (नक्काशीदार बलुआ पत्थर) के लिए उपयोग किए जाने वाले पत्थरों की मात्रा लगभग 8 से 9 लाख क्यूबिक फीट है। 6.37 लाख क्यूबिक फीट बिना नक्काशी वाला ग्रेनाइट प्लिंथ के लिए, लगभग 4.70 लाख क्यूबिक फीट नक्काशीदार गुलाबी बलुआ पत्थर मंदिर के लिए, 13,300 क्यूबिक फीट मकराना सफेद नक्काशीदार संगमरमर गर्भगृह निर्माण के लिए और 95,300 वर्ग फुट फर्श और क्लैडिंग के लिए प्रयोग किया जाएगा।

रामलला का अभिषेक करेंगी सूर्य की किरणें

राममंदिर सिर्फ अलौकिक होगा बल्कि तकनीक के मामले में भी अव्वल होगा। रामलला का गर्भगृह मकराना के संगमरमर से सजेगा। 32 सीढ़ियां चढ़कर रामलला के दर्शन होंगे। रामनवमी पर सूर्य की किरणें रामलला का अभिषेक करेंगी। मंदिर निर्माण में देश की आठ नामी तकनीकी एजेंसियों की मदद ली जा रही है। वास्तु शास्त्र स्थापत्य कला की भी अनुपम झलक मंदिर में दिखेगी। श्रीराम जन्मभूमि परिसर में निर्माणाधीन राममंदिर सिर्फ भव्यता बल्कि तकनीक के मामले में भी अनूठा होगा। रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें सीधे रामलला के मुखारविंद पर पड़ेंगी।

दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इच्छा थी कि ऐसी तकनीक अपनाई जाए जिससे प्रत्येक रामनवमी पर जब रामलला का प्राकट्योत्सव मनाया जा रहा हो, उस क्षण सूर्य की रश्मियां भगवान राम का अभिषेक करें। राम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का कहना है कि देश की सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग संस्थाओं के वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री की इच्छा के अनुरूप तकनीक ईजाद कर ली है। सूर्य की किरणें शिखर से परावर्तित होकर गर्भगृह में आएंगी। उसके लिए निर्धारित कोण पर ऐसे उपकरण लगाए जाएंगे जो कि किरणों को शोषित परावर्तित कर गर्भगृह में भेजेंगी। चैत्र शुक्ल नवमी को रामजन्मोत्सव पर दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें रिफलेक्ट होकर पांच से दस मिनट तक सीधे भगवान राम के मुखारविंद पर पड़ेंगी। राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अनुसार निर्माणाधीन मंदिर के गर्भगृह सहित भूतल का निर्माण दिसंबर 2023 में हो जाएगा।