फिर बीजेपी के अध्यक्ष

युगवार्ता    31-Jan-2023
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भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जून 2024 तक के लिए बढ़ा दिया गया है। बतौर बीजेपी अध्यक्ष नड्डा के लिए 2023 और 2024 काफी अहम साल रहने वाले हैं। 2023 में जहां 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं वहीं 2024 में लोकसभा चुनाव। ये सारे चुनाव नड्डा के कार्यकाल में ही होंगे। नड्डा को इन सभी राज्यों में पार्टी का परचम फहराना है। खास बात ये है कि इनमें से वो राज्य भी शामिल हैं जहां पार्टी को पिछली बार हार का सामना करना पड़ा था। जाहिर है चुनौती कठिन है।

 
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 बद्रीनाथ वर्मा

अनुमान के मुताबिक ही जगत प्रकाश नड्डा को बतौर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल विस्तार मिल गया है। नड्डा का तीन साल का कार्यकाल इसी साल 20 जनवरी को समाप्त हो रहा था। इसके पहले वह जुलाई 2019 में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए थे। उसके बाद 20 जनवरी 2020 को उन्होंने पूर्णकालिक अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की कमान संभाली थी। बीजेपी के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष को लगातार तीन साल के लिए दो कार्यकाल दिए जाने का प्रावधान है। मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के रहने वाले नड्डा का जन्म बिहार की राजधानी पटना में दो दिसंबर 1960 को हुआ था।

कार्यकाल के विस्तार के इस फैसले से ठीक एक दिन पहले नड्डा ने बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में कहा था कि पार्टी के इस साल होने वाले सभी 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव जीतने हैं। अब पार्टी ने उनका कार्यकाल जून 2024 तक के लिए बढ़ा दिया है। अब ये सारे चुनाव नड्डा के कार्यकाल में ही होंगे। खास बात ये है कि इनमें से वो राज्य भी शामिल हैं जहां पार्टी को पिछली बार हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा चार राज्य कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तो ऐसे हैं जहां बीजेपी की सीधी टक्कर कांग्रेस से है। खासकर कर्नाटक और मध्य प्रदेश में तो भाजपा के लिए चुनौती और बड़ी है क्योंकि यहां पार्टी को सत्ताविरोधी लहर का भी सामना करना पड़ेगा।

बहरहाल, गृह मंत्री अमित शाह ने नड्डा के कार्यकाल बढ़ाने की जानकारी देते हुए दावा किया कि पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी चीफ नड्डा के नेतृत्व में पार्टी 2024 में और बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव जीतेगी। नरेंद्र मोदी एकबार फिर से देश के पीएम बनेंगे। नड्डा का कार्यकाल बढ़ाने का फैसला पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में लिया गया है। नड्डा के कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पेश किया और सर्वसम्मति से नड्डा के नाम पर सहमति बन गई।

बतौर बीजेपी अध्यक्ष नड्डा के लिए 2023 और 2024 काफी अहम साल रहने वाले हैं। पार्टी को मध्य प्रदेश और कर्नाटक में काफी जोर लगाना होगा। दरअसल, नड्डा के बयान और हकीकत का फर्क आप ऐसे समझिए कि पिछली बार लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बीजेपी को हार मिली थी जबकि कर्नाटक में वह मामूली अंतर से बहुमत से दूर रह गई थी। कुछ दिन बाद पार्टी ने कर्नाटक में सरकार तो बना ली लेकिन वहां फिलहाल उसके लिए हालात बहुत ठीक नहीं लग रहे हैं। राज्य के मुखिया बासवराज बोम्मई पर विपक्षी भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। मध्य प्रदेश में भी पार्टी को सत्ताविरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में नड्डा के लिए 2023 का साल कांटों से भरा है।

बावजूद इसके नड्डा ने जो सभी 9 राज्यों में जीत का मंत्र दिया है, उसके पीछे भी खास रणनीति है। पार्टी इस बार 2024 के चुनाव में जाने से पहले ऐसा जीत दर्ज करना चाहती है जिससे आम चुनाव का मोमेंटम फिक्स हो जाए। पार्टी नहीं चाहती है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे 2018 जैसे ही आएं। इसलिए वो कार्यकर्ताओं में अभी से जीत का मंत्र फूंक रहे हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक आलाकमान को मध्य प्रदेश और कर्नाटक को लेकर शंकाएं हैं। ऐसे में हो सकता है कि बीजेपी इन राज्यों में 'गुजरात प्लान' अपना ले। यानी चूक की कोई गुंजाइश नहीं रखी जायेगी।

जेपी नड्डा को 2023 को इसलिए भी जीतना होगा क्योंकि यहीं से मिशन 2024 शुरू होगा। या यो कहें कि लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल मुकाबला 2023 में ही होगा। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं। छत्तीगढ़ में 11, राजस्थान में 25 और कर्नाटक में 28 सीटें हैं। यानी कुल 93 लोकसभा सीटों का मामला है। 2019 के चुनाव में इन चारों राज्यों में बीजेपी ने बंपर जीत दर्ज की थी। अगर विधानसभा चुनाव में पार्टी इन राज्यों में कमजोर प्रदर्शन करती है तो मिशन 2024 फंस सकता है। इसलिए नड्डा के लिए न केवल 93 सीटों का गणित अहम होगा बल्कि यहां जीतना भी जरूरी होगा।

हालांकि मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी को सबसे ज्यादा टेंशन होने वाली है। कर्नाटक में बीजेपी की सीधी टक्कर कांग्रेस से होनी है। पार्टी को यहां अंदरूनी विरोध और सीएम बोम्मई पर विपक्षी हमले को भी झेलना होगा। इसके अलावा हाल के दिनों में राज्य में कुछ ऐसे भी विवाद हुए हैं जिससे पार्टी की मुश्किलें बढ़ी हैं। दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में पार्टी को अंदरूनी कलह का सामना करना पड़ रहा है। यहां पार्टी को पिछली बार हार का सामना करना पड़ा था। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत के बाद पार्टी ने राज्य ने सरकार बनाई थी। यहां पार्टी को फिर सत्ता में आने के लिए पूरा जोर लगाना होगा। राजस्थान में बीजेपी कई धड़ों में बंटी है।

वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया के बीच तनातनी किसी से छिपी नहीं है। लेकिन पार्टी को यहां एक फायदा ये है कि कांग्रेस में भी उठापटक काफी है और उसका फायदा वह उठा सकता है। वहीं, छत्तीसगढ़ में पार्टी को कांग्रेस के मजबूत संगठन के साथ-साथ सीएम भूपेश बघेल की चुनौती से पार पाना होगा। कुल मिलाकर बतौर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल गहमागहमी भरा रहने वाला है। उनके सामने पार्टी को जीत दिलाने की ऐसी चुनौती है जो जीवन मरण के सवाल जितना कठिन है। देखना दिलचस्प होगा कि जे पी नड्डा इन चुनौतियों से निपटने में कितना कामयाब हो पाते हैं। उनके लिए ये सभी चुनाव अग्निपरीक्षा साबित होने वाले हैं। उनके पक्ष में सकारात्मक बात यह है कि उनके पास पीएम नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय नेता हैं जिसकी बराबरी क्या उनके पासंग भी कोई विपक्षी नेता नहीं ठहरता।

खुद विपक्ष भी इसे दबे स्वर में स्वीकार करता है कि आज की तारीख में मोदी का तोड़ विपक्ष के पास नहीं है। लेकिन हर चुनाव में मोदी तुरुप का पत्ता साबित होंगे यह भी सच नहीं है। गुजरात में प्रचंड जीत के साथ सत्ता में वापसी और हिमाचल प्रदेश में एक फीसदी मतों से हुई हार इसका जीता जागता उदाहरण है। पीएम मोदी ने हिमाचल में भी तमाम रैलियां की थीं लेकिन स्थानीय मुद्दे हावी हो गये। ऐसे में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को प्रादेशिक नेताओं को और अधिक सक्रिय करने के साथ ही स्थानीय मुद्दों की काट के साथ ही मतदाताओं की नाराजगी दूर करने का जतन करना चाहिए। अगर वह ऐसा कर पाये तो वह इतिहास बनाने में कामयाब हो जाएंगे।


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