परिवर्तनशील समाज में जड़ता ठीक नहीं: रघु ठाकुर

सौरव राय    15-Feb-2023   
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इंसान और इंसान के बीच के फर्क कम होने चाहिए। अमीरी और गरीबी के बीच की खाई पटनी चाहिए। हर इंसान को आजादी का अनुभव होना चाहिए। ऐसा गणतंत्र हम चाहते हैं जिसकी एक राष्ट्रभाषा हो, उसमें देशी भाषाएं सम्मिलित हों। देश के जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता रघु ठाकुर से सौरव राय की बातचीत के संपादित अंश-

raghu thakur
जिन मूल्यों को लेकर भारतीय गणतंत्र की स्थापना हुई थी क्या आज हम उसे पा सके हैं?
- भारतीय गणतंत्र की स्थापना में ऐसे भारत की कल्पना थी जिस भारत में समता का समाज, ग्रामीण विकास, व्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे। महात्मा गांधी के शब्दों में मैं एक ऐसे भारत की कल्पना करता हूं जिसमें आजादी के बाद इंसान और इंसान के बीच कोई फर्क नहीं होगा। जाति, धर्म, के आधार पर एक बराबरी और समता का समाज बनेगा। गांधी ने कहा था कि हम एक ऐसे भारत की कल्पना करते हैं जो आत्मनिर्भर होगा और जो खुद भी आजाद होगा और दुनिया को भी आजाद रखने की कल्पना करेगा। हमें एक ऐसे भारत की चाहत है जिसके अपने अंदर भी कोई पीड़ा ना हो और वह अपने पड़ोसियों के लिए भी पीड़ा का कारण न बने। आज जब हम भारत को देखते हैं तो वह इससे कहीं दूर नजर आता है। जहां एक तरफ हमें ग्रामीण उत्थान करना था वहीं आज हम महानगरीय सभ्यता का भारत बन गए हैं। जब हम लोग 47 में आजाद हुए हिंदुस्तान की 80 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती थी। आज स्थिति उसके उलट है।
भारत नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है तो क्या यह गणतंत्र की सफलता नहीं मानी जाए?
- विकास की कल्पना में भी जब आप रोजगार को देखते हैं तो यह समस्या खत्म नहीं कर रही है। इन सब में पूंजी है उद्योग हैं। लेकिन उतनी ही बड़ी गैरबराबरी भी है। अभी हाल ही में ऑक्सफॉम की रिपोर्ट आई है। जिसमें कहा है कि हिंदुस्तान के 21 अमीर ऐसे हैं जिनके पास भारत की 70 करोड़ जनता की संपत्ति से भी ज्यादा संपत्ति है। यानी देश की आधी आबादी एक तरफ और 20, 21 या 30 लोग एक तरफ। यह जो विषमता बढ़ रही है, इन्हीं कारणों को खोजना होगा। जब हम इसके कारण की तरफ ध्यान देते हैं तो हमें लगता है कि हमने गांधी का रास्ता जो छोड़ा उससे यह विषमता और गहरी हुई।
हम क्यों नहीं भारतीय गणतंत्र के लक्ष्य को पा सके?
- देखिए भटकाव की शुरुआत तो आजादी के समय ही हो गई। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जब बने तो उन्होंने जिस नीति का पालन किया वह गांधी की नीति नहीं थी। गांधी ने कहा था शहर से गांव की ओर चलो जबकि जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि गांव से शहर की ओर चलो। नेहरू ने छोटी मशीनों को खत्म कर बड़ी मशीनों की तरफ चलने का कार्य किया और आज हम इस रास्ते पर खड़े हैं कि इससे अब पीछे हटना बहुत मुश्किल हो चुका है। आजादी के बाद की सरकार ने गांधी को उल्टा खड़ा कर दिया। आज भी सरकारें उन्हीं की बनाई नीतियों को आगे ले जा रही हैं ना कि गांधी की बनाई नीतियों की तरफ चल रही है।
भारतीय गणतंत्र कैसा होना चाहिए और इसको लेकर आपकी कल्पना क्या है?
- भारतीय गणतंत्र ऐसा होना चाहिए जिसमें हमारी ग्रामीण भारतीय संस्कृति और सभ्यता सुरक्षित रहे। संसाधनों का समान वितरण हो और उस गणतंत्र में कोई हाथ फैलाने वाला ना हो और ना ही कोई बांटने वाला हो। केंद्र को, अपने राज्यों को और अधिकार देना चाहिए। कुछ ही मामलों में केंद्र को अपना हस्तक्षेप रखना चाहिए। बाकी संसाधनों को आबादी के हिसाब से वितरित कर देना चाहिए। इंसान और इंसान के बीच के फर्क कम होने चाहिए। अमीरी और गरीबी के बीच की खाई पटनी चाहिए। हर इंसान को आजादी का अनुभव होना चाहिए। ऐसा गणतंत्र हम चाहते हैं जिसकी एक राष्ट्रभाषा हो, उसमें देशी भाषाएं सम्मिलित हों। हमें अपने उच्च न्यायालयों की भी भाषा को सरल करना चाहिए तथा लोक अनुकूल बनाना चाहिए। जो लोग बड़े पदों पर चुन करके जाएं उनकी कसौटी एक तोते नुमा व्यक्ति की नहीं बल्कि उसमें एक बड़ा आधार मानवीय संवेदना और मानवीय मूल्यों का भी हो।
वर्तमान गणतंत्र में सकारात्मक क्या देखते हैं?
- यह हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि भारत अभी तक तानाशाही के रास्ते पर नहीं गया। हमारे गणतंत्र में जो चुनने का अधिकार है वह विशिष्ट अधिकार है। जिसमें लोग अपने मन से अपने नेता को चुनते हैं। विश्व के कई ऐसे मुल्क हैं जो सैन्य तानाशाही और हिंसा के शिकार हो चुके हैं लेकिन भारत में ऐसी स्थिति नहीं देखी गई है। आपातकाल को छोड़ दें तो। यह हमारे गणतंत्र की ही विशेषता है कि इतनी भाषाएं इतनी सारे धर्म इतनी सभ्यताएं और क्षेत्र अलग-अलग होने के बावजूद हम एक हैं। जब भी कोई राष्ट्रीय संकट आया है लोग इकट्ठे हुए हैं। मौलिक अधिकार जिसमें हमें बोलने का अधिकार, काम करने का अधिकार, रहने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार हमारे गणतंत्र की बेहद ही खूबसूरत बात है और यह 74 सालों में अभी तक नहीं दबाई जा सकी हैं।
कई लोग ऐसा मानते हैं कि संविधान को परिष्कृत किया जाना चाहिए। इस पर आपकी क्या राय है?
- चाहे भारतीय हो या दुनिया का कोई भी संविधान हो उसे परिष्कृत किया जाए इसमें किसी तरह की कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। समाज परिवर्तनशील है और परिवर्तनशील समाज में कोई जड़ता चाहे वह संविधान में ही क्यों न हो वह नहीं रह सकती। व्यक्ति बदलेगा, समाज बदलेगा तो संविधान भी बदलेगा। उसके कायदे भी बदलेंगे और इसीलिए भारतीय संविधान में संशोधन की व्यवस्था की गई। हमारे यहां 100 से ऊपर संविधान संशोधन हो चुके हैं। यह जो संविधान संशोधन है क्या आप इसे नहीं मानते हैं कि यह हमारे संविधान को परिष्कृत करते हैं। हमारे पास दो तरह के विकल्प हैं या तो एक हम पूरे संविधान को खत्म कर दें और फिर से नया संविधान लिखें या फिर इस संविधान में ही आवश्यकता अनुरूप परिवर्तन करते रहें। और मेरा मानना है कि वह परिवर्तन होते आए हैं और होते रहेंगे।
संविधान की साक्षरता को आप कैसे देखते हैं?
- आजादी के समय को देखा जाए तो उस वक्त साक्षरता का स्तर बहुत नीचे था। आज वैसी स्थिति नहीं है। गांव का वह व्यक्ति जो पढ़ा लिखा नहीं है लेकिन वह संविधान को मानता है क्योंकि उसे मानने की लाचारी है। उसके ऊपर कानून का डंडा भी है। लेकिन संविधान को वह तोड़ रहे हैं जो संविधान साक्षर हैं। क्या आज तक किसी गरीब आदमी ने संविधान के खिलाफ कुछ बोला है। उसने तो संविधान के प्रावधानों को बचाने का काम किया। मैं आपको 1975 का उदाहरण देता हूं, जिसमें हम लोग जेल में थे। तत्कालीन सरकार ने फंडामेंटल राइट को सस्पेंड कर दिया। प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी। परंतु जो संविधान साक्षर लोग थे उनमें से कितने लोग बोले? अधिकतर संविधान साक्षर लोग संविधान की हत्या के प्रयास में इंदिरा गांधी के सहयोगी बन गए। समय आने पर संविधान को बचाने का काम किसने किया? वह उन गांव के लोगों ने किया जो संविधान साक्षर नहीं थे। भारतीय मानस सदैव संविधान के साथ खड़ा रहा है। और संविधान को तोड़ने मरोड़ने का काम हर वक्त पढ़े लिखे लोगों ने ही किया है। अपने निजी स्वार्थों में या डर से। हालांकि मैं मानता हूं कि संविधान साक्षर सभी को होना चाहिए। इसके लिए सरकार को प्रयास करना चाहिए। पाठ्यक्रमों में संविधान से जुड़ी बातें या चैप्टर निर्धारित करें और उसे जरूरी भी करें।
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विजय कुमार राय

विजय कुमार राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। साल 2012 से दूरदर्शन के ‘डीडी न्यूज’ से जुड़कर छोटी-बड़ी खबरों से लोगों को रू-ब-रू कराया। उसके बाद कुछ सालों तक ‘कोबरापोस्ट’ से जुड़कर कई बड़े स्टिंग ऑपरेशन के साक्षी बने। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ और ‘नवोत्थान’ के वरिष्‍ठ संवाददाता हैं। इन दिनों देश की सभ्यता-संस्कृति और कला के अलावा समसामयिक मुद्दों पर इनकी लेखनी चलती रहती है।