एनएसडी को स्टाफ रिव्यू की जरूरत: प्रो.रमेश चन्‍द्र गौड़

युगवार्ता    10-Mar-2023   
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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कार्य को सुचारु रूप से संचालन हेतु कार्यवाहक निदेशक (अतिरिक्त भार) के रूप में नियुक्त इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कलानिधि विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चन्द्र गौड़ से संवाददाता विजय कुमार राय ने विस्‍तार से बातचीत की है। पेश है खास बातचीत का संपादित अंश –
प्रो. रमेश चन्द्र गौड़

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नॉन एनएसडी कलाकारों के साथ भेदभाव होता है। कला के मंदिर में कलाकारों के साथ इस तरह के भेदभाव पर आपका क्या कहना है ?

यह पूर्णत: सत्य नहीं है, क्योंकि नॉन एनएसडी कलाकारों की भी भारत महोत्सव, थिएटर, कार्यशाला (Workshop) आदि विभिन्न नाट्य कलाओं की गतिविधियों में सर्वदा भागीदारी रही है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के मूल उद्देश्यों के अनुसार हर रंगमंच के कलाकार को और रंगमंच की परंपरा को समान रूप से स्थान मिलता है और मिलना भी चाहिए। हो सकता है कभी कहीं कुछ न्यूनताएँ रही हों जिसमें कुछ परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है। इसके अलावा सही नीति निर्धारण की भी आवश्यकता है जिससे किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो सके।

आप को एनएसडी में कुछ महीने काम करते हुए हो गए है। क्या एनएसडी में पुन: बदलाव करने की आवश्यकता है ?

एनएसडी की स्थापना सन् 1959 ई० में एशियन थिएटर इंस्टीट्यूट (ATI) के नाम से संगीत नाटक अकादमी (SNA) के विभाग के रूप मे हुई। उस समय भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत एक कला एवं संस्कृति विभाग हुआ करता था। जिसका उद्देश्य रंगमंच को भी बढ़ावा देना था। 1964 में ATI का नाम एनएसडी किया गया तथा 1975 में भारत सरकार की स्वायत्त संस्था के रूप में एनएसडी की स्थापना हुई। तब से अर्थात् विगत 50 वर्षों से इसके कार्यकलापों तथा गतिविधियों की कोई समीक्षा नहीं हुई। संस्कृति मंत्रालय बनने के अनन्तर इसमें कोई अधिक परिवर्तन नहीं हुए। अधिकतर स्वायत्त संस्थाओं के ट्रस्ट या सोसाइटी का गठन संस्कृति मंत्रालय के द्वारा किया जाता है, लेकिन एनएसडी में चेयरमैन को छोड़कर बाकी सभी सदस्यों का चयन एनएसडी के अधिकारियों जैसे कि निदेशक, अध्यक्ष एवं सोसाइटी के द्वारा ही होता है। एक सदस्य संगीत नाटक अकादमी नामांकित करती है तो दूसरा ललित कला अकादमी करती है, एक सूचना प्रसारण मंत्रालय करता है। इसमें अधिकतर जो सदस्य हैं उनका जुड़ाव फिल्म या थियेटर से है। किसी भी संस्था के लिए हर क्षेत्र के लोगों की भागीदारी होना बहुत आवश्यक होता है। जिससे हर तरह के विचारों का आदान प्रदान होता है। सबसे पहले संस्था की कार्यकारिणी (Governing) की रूपरेखा को बदलने की आवश्यकता है। दूसरा जो कि विशेष शासकीय संरचना है उसको भी बदलने की आवश्यकता है। संस्था के डायरेक्टर का पद प्रोफेसर के स्तर का पद है। जबकि आईजीएनसीए में सेक्रेटरी स्तर का पद है। राष्ट्रीय अभिलेखागार में एडिशनल सेक्रेटरी स्तर का पद व कई अन्य संस्थाओं में एडीजी, डीजी तरह के पद हैं जबकि एनएसडी में निदेशक प्रोफेसर स्तर का पद है। डायरेक्टर के बाद सभी पद डिप्टी सेक्रेटरी स्तर के हैं। रजिस्ट्रार भी डिप्टी सेक्रेटरी स्तर का पद है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात है कि इतने बड़े संस्थान में न कोई वित्ताधिकारी (Finance Officer) है और न ही कोई अन्तर्लेखापरीक्षक (Internal Auditor) है। आई. टी का कोई पद नहीं है और न ही आई. टी विभाग है। उसका कभी रिव्यू भी नहीं हुआ। यहां पर 26 विद्यार्थी हर साल आते हैं। कुल 78 विद्यार्थी होते हैं। 12 फैकेल्टी हैं और करीब 140 स्टाफ पद हैं। लेकिन 100 से अधिक लोग अनुबन्ध (Contract) पर काम कर रहे हैं। 78 विद्यार्थियों के लिये 300 से अधिक का स्टाफ है। एवरेज की बात करें तो एक विद्यार्थी पर 3 से 4 कर्मचारी हैं। पिछले 25 सालों से पाठ्यक्रम का पुनः आकलन नही हुआ है। 80 प्रतिशत प्रैक्टिकल और 20 प्रतिशत थ्योरी पढ़ाई जाती है। वास्तविक रूप में 5-10 प्रतिशत ही थ्योरी पढाई जाती है। एक मास में मेरे समक्ष कई वित्तीय अनियमितताएँ सामने आयीं हैं। हर कार्य में सुधार की आवश्यकता है। उपर्युक्त सभी बातों की समीक्षा की आवश्यकता है।

दिल्ली में नाट्य सभागार इतने महंगे हैं कि सामान्य रंगकर्मियों के लिए बुक करना मुश्किल है ? क्या एनएसडी दिल्ली या देश भर के कलाकारों को अपने सभागार सस्ते दर पर मुहैया कराएगी? या कोई वैकल्पिक व्यवस्था ?

एनएसडी के पास अभी बड़े और छोटे 2-3 अपने सभागार हैं। एनएसडी की बिल्डिंग बनाने के लिए 2016 में सरकार ने 180 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी थी। उसमें 500 लोगों के बैठने तक की ऑडिटोरियम बनाने की योजना है। किन्तु इस परियोजना का डिजाइन अभी फाइनल नहीं हुआ है। वर्तमान में हमारे पास 300 और 100 व्यक्तियों की क्षमता के सभागार हैं। यदि उन सभागारों में हमारा कोई कार्यक्रम नहीं होता है तो हम कुछ नाममात्र शुल्क पर अन्य आयोजक संस्थाओं को दे देते हैं। बाकी किसी भी शहर में हमारा कोई सभागार नहीं है। ऐसे प्रयत्न की आवश्यकता है कि हर शहर में एक सभागार हो जो निशुल्क रंगमंच के कलाकारों को शो करने और रियर्सल करने के लिए दिए जाएँ। रंगमंच एक ऐसी विधा है जिसको बहुत सहयोग की आवश्यकता है। कई बार दर्शक नहीं मिलते हैं, पैसा नहीं मिलता है। किसी भी ग्रुप के लिए इतने महंगे सभागार किराये पर लेना बहुत कठिन होता है। ऐसे समय में आवश्यकता है कि प्रत्येक नगर में रंगमंच के कलाकारों के लिए एक सभागार की निशुल्क व्यवस्था की जाए।

प्रो. रमेश चन्द्र गौड़
 
रंगमंच या नाटक एक क्षणभंगुर कला है? आप इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में कलानिधि विभाग से जुड़े हैं ? यह युग डिजिटलाइजेशन का है, ऐसे में इसे संचित करने को लेकर आप की क्या योजना है ?

अभी तक एनएसडी में ऐसी कोई योजना नहीं है। परन्तु ऐसी कुछ एक योजनाओं ता शुभारम्भ हुआ है। अब तक लगभग 10000 घंटे की रिकॉर्डिंग उपलब्ध है। उसके यान्त्रिक आधुनिकीकरण (Digitalization) की प्रक्रिया हो रही है। आई.टी उन्नयन (Upgradation) पर भी काम हो रहा है। यदि हम रंगमंच की पुरानी परंपरा की बात करें तो रामलीला व नौटंकी आदि विधाएं धीरे-धीरे लुप्त होती जा रहीं हैं। उसे कहीं न कहीं प्रलेखन (Documentation) के द्वारा सुरक्षित रखना अत्यावशक होगा। और उन विधाओं में नए कलाकारों को जोड़ना होगा। उसके लिए हमें गाँव-गाँव में और जहाँ–जहाँ पर परम्परागत नाटक अभी हो रहे हैं वहाँ पहुँचना होगा।

इस बार भारत रंग महोत्सव में विदेशी कलाकार हिस्सा नहीं ले रहे हैं। इस बात में कितनी सच्चाई है ?

यह बिल्कुल सच है। जब यह प्रक्रिया शुरू हुई थी तब कोविड के चलते निर्णय लिया गया था कि विदेशी कलाकारों की व्यवस्था (Arrangement) करने में कठिनाई होगी। इसलिए इस बार उन्हें सम्मिलित नहीं किया गया है।

देशभर में फैले नाट्य समूह और अभिनेताओं को कैसे सशक्त किया जाएगा जिससे रंग सक्रियता को बल मिले ?

नाट्य समूह तो बहुत हैं लेकिन नेटवर्क नहीं है। एक दूसरे के साथ जुडा हुआ नहीं हैं। ऐसे में जितने भी नाट्य समूह हैं उनका एक उचित पञ्जीकरण (Proper Registration) होना चाहिए। कोई एक ऐसी प्रणाली (System) होना चाहिए जो उनको पञ्जीकृत (Register) करे। रजिस्टर ही नही, उनका प्रमाणीकरण (Certification) और उनकी श्रेणी निर्धारण (grading) भी करे। अभी कोई डेटा नहीं हैं। हमारे पास 1200 भूतपूर्व छात्रों की सूची है। लेकिन हमें यह नहीं पता की 1200 में से कौन-कौन से भूतपूर्व छात्र (Alumni) फिल्मों में काम कर रहें हैं और कौन से थियेटर में कर रहे हैं कितने शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। कोई भी योजना बनाने के लिये पूर्ण डाटा की आवश्यकता होती है। इस पर भी कार्य करने की आवश्यकता है।

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विजय कुमार राय

विजय कुमार राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। साल 2012 से दूरदर्शन के ‘डीडी न्यूज’ से जुड़कर छोटी-बड़ी खबरों से लोगों को रू-ब-रू कराया। उसके बाद कुछ सालों तक ‘कोबरापोस्ट’ से जुड़कर कई बड़े स्टिंग ऑपरेशन के साक्षी बने। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ और ‘नवोत्थान’ के वरिष्‍ठ संवाददाता हैं। इन दिनों देश की सभ्यता-संस्कृति और कला के अलावा समसामयिक मुद्दों पर इनकी लेखनी चलती रहती है।