पतन की राह पर कांग्रेस

24 Apr 2023 13:49:04

पिछले दिनों दक्षिण के तीन बड़े नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व रक्षामंत्री ए.के. एंटनी के बेटे अनिल एंटनी, सी राजगोपालाचारी के पड़पोते सीआर केसवन के बाद आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी भी भाजपा में शामिल हो गए हैं। तीनों नेताओं ने हाल ही में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिया था। अब यह कांग्रेस के लिए कितना बड़ा झटका है और दक्षिण भारत में पैर जमाने के लिए जोर लगा रही भाजपा को इससे कितना फायदा होगा।


अनिल एंटनी,सीआर केसवन,किरण कुमार रेड्डी

कांग्रेस पार्टी में संकट गहराता जा रहा है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर कई नेता पार्टी से दूर हो रहे हैं। लेकिन सबसे खास बात ये है कि कांग्रेस के शीर्षस्थ नेता इससे बेपरवाह हैं। उनका तर्क है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सी राजगोपालाचारी के पड़पोते सीआर केसवन, पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी एवं आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन कर ली है। दक्षिण भारत के ये तीनों नेता कांग्रेस के मजबूत सिपाही रहे हैं। लगातार तीन दिन और तीन कांग्रेसी विकेट गिरने के बाद एक बार फिर चर्चा शुरू हो चुकी है कि आखिर कांग्रेस के लोग पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं? ये सवाल वाजिब भी है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव तक अभी बहुत उलटफेर होना है। वैसे भी कांग्रेस छोड़ने वालों का सिलसिला हाल के सालों में तेज हुआ है। यूं तो उठते सवालों का कोई सीधा-सपाट जवाब नहीं है लेकिन कुछ कारण तो साफ-साफ किसी को भी दिख सकता है।

लोकसभा की वेबसाइट के मुताबिक इस समय कांग्रेस की सदस्य संख्या 51 है। पार्टी के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी की सदस्यता जा चुकी है। राज्यसभा में भी कांग्रेस की मौजूदगी बहुत कमजोर हो चली है। कांग्रेसी कहते हैं कि सत्तालोलुप लोगों का कुछ नहीं किया जा सकता है। लेकिन जब गुलाम नबी आजाद जैसे कद्दावर नेता जाते हैं तो फर्क पड़ता है। कांग्रेस माने या न माने, कहीं न कहीं, पार्टी प्रबंधन में चूक तो हो रही है। एक नजर उठाकर देखें तो जब से राहुल गांधी का प्रभाव बढ़ा है, जगन रेड्डी जैसे लोगों ने अपनी पार्टी बनाई और आज सीएम हैं और पूरी मजबूती से सरकार चल रहे हैं। असम के मौजूदा सीएम हेमंत बिस्व सरमा ने कांग्रेस छोड़ी इसलिए क्योंकि उन्हें उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। आज वे मजबूती से असम को चला रहे हैं।
गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस इसी उपेक्षा की वजह से छोड़ी। अगर छोड़ने वाले ये नेता राज्यों में सरकार बना सकते हैं तो सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में इन्हें मान-सम्मान मिलता तो आज सूरत कुछ और होती। शरद पवार ने भी उपेक्षा की वजह से कांग्रेस छोड़ी थी। अब इसे कोई ईगो कहता है और कोई आत्मसम्मान। सच जो भी हो कांग्रेस में कम्यूनिकेशन गैप बढ़ा है। सोनिया गांधी की सेहत खराब होने के बाद कांग्रेस पूरी तरह राहुल के हाथों में हैं और वे शायद कार्यकर्ताओं-पदाधिकारियों से वह तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं, जिसकी आज जरूरत है। कांग्रेस को अपनों को साथ लेकर चलने की नीति पर काम करना होगा। संदेश एकता का ही जाना चाहिए।
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कोई भी पार्टी, कार्यकर्ता और नेताओं के सहारे चलती है। कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं का टोटा है। सत्ता उसके हाथ से फिसल चुकी है। क्षेत्रीय दल भी अब कांग्रेस के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ने को राजी नहीं हैं, जबकि भाजपा सरकार को केंद्र से उखाड़ फेंकने का सपना सबको आ रहा है। अगर राज्यों में और केंद्र में सरकार रहती है तो नेता-कार्यकर्ता पार्टी में इसलिए बने रहते हैं क्योंकि उनका काम चल रहा होता है। पर, अब जिस तरह कांग्रेस सरकार और सत्ता से दूर है, एमपी, एमएलए सिमटते जा रहे हैं, ऐसे में कोई कार्यकर्ता कैसे पार्टी की सेवा करे और कब तक?
हाल ही में पार्टी छोड़ने वाले एक नेता ने कहा कि राजनीति पैसे मांगती है। पैसा तभी आता है जब पार्टी सत्ता में होती है। अगर मजबूत विपक्ष भी है तब काम चलता है। अफसर-मातहत सब सुन लेते हैं। छोटा सा कार्यक्रम भी करना हो तो आजकल बहुत पैसा लगता है। कांग्रेस में अब नेता ही कंगाल हो चुके हैं तो कार्यकर्ता बेचारा कब तक रुकेगा? कांग्रेसी कहते हैं कि भाजपा तमाशा खड़ा करने में माहिर है। सी केसवन या अनिल एंटनी की जॉइनिंग सबको दिखा दिया, जिनकी पार्टी के अंदर कोई हैसियत नहीं थी। इन दोनों ही नेताओं की पहचान आज भी उनके पिता, दादा से है, उनकी अपनी कोई शिनाख्त नहीं है। कांग्रेस के एक प्रवक्ता का कहना हैं कि कर्नाटक में वर्तमान, पूर्व एमपी, एमलए मिलाकर करीब 45 लोग कांग्रेस जॉइन कर चुके हैं। इसकी न तो कहीं चर्चा है न ही कोई बात करना चाहता है। चुनावी मौके पर भाजपा के लोगों का कांग्रेस जॉइन करना पार्टी के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ाता है।
ये तथ्य बोलते हैं

इस समय देश में कुल विधायक 4033 हैं जिनमें कांग्रेस के पास सिर्फ 658 हैं यानी करीब 16 प्रतिशत। जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश होने के बाद विधायकों की संख्या कम हुई है।

साल 2014 में देश में कुल विधायकों की संख्या थी 4120 और तब कांग्रेस के विधायकों की संख्या थी 989 यानी करीब 24 प्रतिशत।

साल 1951 में तमिलनाडु को छोड़कर पूरे देश में कांग्रेस की सरकार थी। आज सिर्फ तीन राज्य हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बची है।

झारखंड, बिहार और तमिलनाडु में कांग्रेस सरकार में साझेदार है। -अरुणाचल प्रदेश, गोवा, यूपी, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, ओडिशा, तेलंगाना, पुडुचेरी में एमएलए इकाई में हैं

आंध्र प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में कोई एमएलए नहीं हैं। कांग्रेस को लोकसभा चुनाव 2014 में सबसे कम 19.50 प्रतिशत वोट मिले थे।

कांग्रेस को सबसे ज्यादा 48.1 प्रतिशत

वोट साल 1984 के लोकसभा चुनाव में मिले थे,जब इंदिरा जी की हत्या के बाद चुनाव हुए।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कोई भी पार्टी, कार्यकर्ता और नेताओं के सहारे चलती है। कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं का टोटा है। सत्ता उसके हाथ से फिसल चुकी है। क्षेत्रीय दल भी अब कांग्रेस के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ने को राजी नहीं हैं।

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