रामनवमी पर नफरती पत्थर

24 Apr 2023 13:35:38
हर साल की तरह इस बार भी रामनवमी की शोभायात्राओं पर देश के कई राज्यों में पत्थरबाजी का सिलसिला जारी रहा। मुस्लिम भीड़ द्वारा पत्थरबाजी के बाद आगजनी व लूटपाट की परंपरा का भी निर्वहन पूर्ववत किया गया। हद तो यह कि ऐसा किसी एक शहर या एक प्रदेश में नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में हुआ। भाजपा शासित गुजरात व महाराष्ट्र भी इससे अछूते नहीं रहे। ताजिया का स्वागत और रामनवमी की शोभायात्रा पर नफरत के पत्थर। ऐसा क्यों? मजहब के आधार पर हिंदुस्तान का बंटवारा कर पाकिस्तान बन जाने के 75 साल बाद क्या देश में एक बार फिर हिंदू और मुस्लिम इलाके चिन्हित कर दिये गये हैं?
 
रामनवमी पर नफरती पत्थर
 
रामनवमी हो या हनुमान जन्मोत्सव हिंदुओं के हर पर्व त्यौहार पर पत्थरबाजी एक परंपरा बन गई है। इसी परंपरा का निर्वहन इस बार भी रामनवमी की शोभायात्राओं पर मस्जिदों की छतों से पथराव कर किया गया। इसके बाद लूटपाट व आगजनी का सिलसिला भी बदस्तूर चला। ऐसा किसी एक शहर या एक प्रदेश में नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में हुआ। मुस्लिम भीड़ ने रामनवमी की शोभायात्राओं को केन्द्रित कर खूब उत्पात मचाया। जगह-जगह शोभायात्राओं पर जमकर पथराव, आगजनी व गोलीबारी हुई। पिछले साल भी इसी तरह रामनवमी पर हिंसा और उपद्रव किया गया था। गौरतलब बात यह है कि कट्टरपंथी केवल रामनवमी पर ही नहीं बल्कि हिंदुओं के लगभग सभी त्यौहारों पर उत्पात मचाते हैं। चाहे वह रामनवमी हो, हनुमान जयंती हो या दुर्गा-सरस्वती मूर्ति विसर्जन हो अथवा होली।
मेरे आंख और कान खुले हैं। मुझे सब दिख रहा। मैंने पहले ही चेतावनी दी थी कि मुस्लिम बहुल इलाकों से शोभायात्रा को लेकर ना जाएं, उनको सावधानी बरतनी चाहिए थी। मैंने कहा था कि राम नवमी पर रैली निकाली गई तो हिंसा हो सकती है। यह रमजान का वक्त है। मुस्लिम इस समय कुछ गलत नहीं करते हैं।-ममता बनर्जी शोभायात्राओं पर पथराव के बाद भड़की हिंसा में जहां एक तरफ हावड़ा जल उठा तो वहीं, दूसरी तरफ कई दिनों तक सासाराम सुलगता रहा। सुशासन बाबू की नाक के नीचे नालंदा व बिहार शरीफ में आग की लपटें उठती रहीं और नीतीश कैबिनेट सर पर गोली टोपी पहने रोजा इफ्तार के मजे लेती रही। वैसे वोटों के लिए किस हद तक और कितना नीचे गिरा जा सकता है इसका सबसे वीभत्स सबूत दिया पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने। उन्होंने पत्थरबाजी करने वाली मुस्लिम भीड़ को क्लीन चीट देते हुए कह दिया कि रमजान के पाक महीने में मुस्लिम कोई गलत काम कर ही नहीं सकते। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि मुस्लिम इलाके में जाने की जरूरत क्या थी। सवाल है कि मजहब के आधार पर हिंदुस्तान का बंटवारा कर पाकिस्तान बन जाने के 75 साल बाद क्या देश में एक बार फिर हिंदू और मुस्लिम इलाके चिन्हित कर दिये गये हैं।
 
रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में कई स्थानों पर पत्थरबाजी, हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुईं। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल तो रामनवमी के बाद तक जलते रहे जबकि नेता रोजा इफ्तार के मजे लूटते रहे।वैसे यह पहला अवसर नहीं है जब कट्टरपंथी मुसलमानों ने हिंदुओं को निशाना बनाया है। 
 ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि आखिर क्या वजह रही कि जहां दूसरे राज्यों में शोभायात्राओं पर पत्थर चले वहीं यूपी में फूल मालाओं से स्वागत हुआ। क्या इसकी वजह यह है कि वोटों की फसल काटने की लालसा से दूर राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत हो तो गंगा-यमुनी तहजीब का यह दृश्य हर प्रदेश में दिखाई दे सकती है। असम व मध्य प्रदेश में भी कहीं से पथराव या हिंसा की खबरें इस बार नहीं आई जबकि पिछले साल हनुमान जयंती पर मध्य प्रदेश से भी पत्थरबाजी की कई खबरें प्रकाश में आई थीं। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की जोड़ी ने पत्थरबाजों का ऐसा फुलप्रूफ इलाज किया कि इस बार वे किसी तरह की गलत हरकत को अंजाम देने से कोसों दूर रहे। हालांकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व असम को छोड़कर प्राय: हरेक राज्य में पत्थरबाजी की घटनाएं देखने सुनने को मिली। इसमें भाजपा शासित गुजरात और महाराष्ट्र भी शामिल हैं। 
हर बार ऐसा होता है। इस साल गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में कई स्थानों पर रामनवमी पर हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुईं। बिहार और बंगाल तो रामनवमी के बाद तक जलते रहे।
 
हिंसा के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। इनमें घर की छतों से शोभायात्रा पर पथराव करने वाले साफ-साफ दिख रहे हैं। सबसे खराब स्थिति बिहार और बंगाल की रही है। जबकि उत्तर प्रदेश से आई तस्वीरे गंगा जमुनी तहजीब को दर्शाने वाली रही। वहां जगह-जगह मुस्लिम समुदाय ने शोभायात्राओं पर फूल बरसाये और देशी घी का हलवा खिलाकर रामभक्तों का स्वागत किया।
 
 अपने बेबाक बोल की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहने वाले केंद्रीय मंत्री एवं बेगूसराय से भाजपा सांसद गिरिराज सिंह ने शोभायात्राओं पर पथराव के बाद भड़के दंगे को लेकर नीतीश सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि आज सीएम का गृह जिला दंगों से दहल रहा है और वे दंगों में शामिल दोषी को रिहा कराकर उसके साथ बैठकर इफ्तार मना रहे हैं जबकि निर्दोष को जेल भेज रहे हैं। यह तुष्टीकरण की राजनीति नहीं तो और क्या है? गिरिराज सिंह ने आगे कहा कि अब वो हम हिंदुओं को नसीहत देंगे कि रामनवमी का जुलूस किस रास्ते से निकाले या नहीं निकाले। उन्हें याद रखना चाहिए हिंदुस्तान का बंटवारा कौम के आधार पर हुआ था। हमारा मानना है कि कुछ मुस्लिम भाई हमारे यहां रह गए इसका मतलब यह नहीं पहले प्रेम से पाकिस्तान, अब लड़कर हिंदुस्तान लेंगे। ऐसी तुष्टीकरण की राजनीति न देश में और ना ही बिहार में चलेगी।
सीएम का गृह जिला दंगों से दहल रहा है और वे दंगों में शामिल दोषी को रिहा कराकर उसके साथ बैठकर इफ्तार मना रहे हैं जबकि निर्दोष को जेल भेज रहे हैं। यह तुष्टीकरण की राजनीति नहीं तो और क्या है? -गिरिराज सिंह
सासाराम और बिहारशरीफ में हुई हिंसा को लेकर मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने नीतीश कुमार को शिवराज सरकार से सीखने की नसीहत दी। उन्होंने नीतीश को मध्य प्रदेश आने का न्योता देते हुए कहा कि सरकार कैसे चलाई जाती है, ये नीतीश कुमार को मध्य प्रदेश आकर सीखना चाहिए। इफ्तार की नौटंकी उन्हें बंद करना चाहिए। उन्होंने पूरे बिहार में दंगों को प्रश्रय दिया। बिहार को झुलसाने का काम किया। वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार हिंसा के लिए नीतीश सरकार पर जमकर हमला बोलते हुए कहा कि इतने बड़े स्तर पर राज्य में हिंसा हुई, सरकार मुआवजा देने की बात क्यों नहीं कर रही। चुनाव के दौरान ही आप धर्मनिरपेक्षता की बात क्यों करते हैं। जब आप चुनाव जीत कर सीएम बन जाते हैं तो आप धर्मनिरपेक्षता के बारे में क्यों नहीं सोचते हैं। आप हिंसा पीड़ितों को मुआवजा देने की बजाय इफ्तार पार्टी कर रहे हैं। खजूर खा रहे हैं।
 बहरहाल, हिन्दू नववर्ष, रामनवमी, हनुमानजी जन्मोत्सव, परशुराम जयंती, अमरनाथ यात्रा या जो भी हिन्दू पर्व आते हैं। उन पर्व के दिनों में नमाज के बहाने नमाज के बाद नमाजियों द्वारा हिन्दुओ पर पत्थर बरसाए जाते हैं ऐसा क्यों? नमाज के बहाने दिन में 5 बार जोर शोर से लाउड स्पीकर चलाया जाता है लेकिन क्या कभी किसी हिंदू ने आजतक कोई पत्थर फेंका? फिर हिंदू त्यौहारों पर हिंदुओं पर क्यों पत्थर बरसाये जाते हैं वह भी हिंदू बाहुल्य देश में? दरअसल, रामनवमी व अन्य हिंदू त्यौहारों पर पत्थरबाजी, आगजनी स्पष्ट बताता है कि देश का सेकुलरिज्म कितना फर्जी है। मुस्लिम इलाके में राम का नाम लेने वालों का जुलूस गया ही क्यों, पूछा जा रहा। ताजिया का स्वागत और रामनवमी जुलूस पर पत्थरबाजी। ऐसा क्यों? फायरब्रांड हिंदू धर्मगुरु यति नरसिंहानंद शोभायात्राओं पर हमले के संदर्भ में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि दरअसल, अहिंसा के आधे अधूरे ज्ञान ने हिंदुओं को नपुंसक बना दिया है। किसी जीव की हत्या करना पाप है ये तो उसे बचपन में ही संस्कारित कर देते हैं परंतु ये संस्कार नहीं देते कि आत्मरक्षा के लिए शस्त्र उठाना पाप नहीं बल्कि पुरुषार्थ है।
 बहरहाल, महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) और जलगांव में रामनवमी के अवसर पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। संभाजीनगर में हिंसा के दौरान न सिर्फ पत्थरबाजी की गई बल्कि बम भी फेंके गए। हालात को संभालने पहुंची पुलिस के वाहनों को भीड़ ने जला दिया और आसपास खड़े वाहनों को भी आग के हवाले कर दिय गया। रिपोर्ट के मुताबिक घटना में 14 पुलिसकर्मी जख्मी हैं। असमाजिक तत्वों ने पुलिस को 13 गाड़ियों को फूंक दिया। महाराष्ट्र के ही जलगांव में मस्जिद के आगे से निकल रहे शोभायात्रा में डीजे की आवाज को लेकर हुए विवाद ने देखते-देखते हिंसक रूप ले लिया। महानगर मुंबई के उपनगर मलाड के मलावनी इलाके में भी शोभायात्रा पर पथराव की घटना सामने आई। हालांकि वहां पुलिस ने तत्काल एक्शन लेते हुए कड़ी कार्रवाई की जिससे मामला उग्र होने से बच गया।
 इसी तरह गुजरात के वडोदरा में भी दो स्थानों पर कट्टरपंथी भीड़ ने रामनवमी की शोभायात्रा को निशाना बनाया। रिपोर्ट्स के मुताबिक जैसे ही शोभायात्रा फतेहपुरा गराना इलाके की एक मस्जिद के पास पहुंची शोभायात्रा में शामिल श्रद्धालुओं पर पत्थरबाजी शुरू हो गई। कुंभारवाडा इलाके में भी रामनवमी की शोभा यात्रा पर पथराव की घटना सामने आई। सवाल है कि आखिर हिंदू त्यौहारों को लक्ष्य कर मुस्लिम भीड़ द्वारा पत्थरबाजी क्यों की जाती है। इस संबंध में जानकारों का कहना है कि पत्थरबाजी इस्लामी मजहबी रिवाज से जुड़ी हुई है, जो अरबी संस्कृति में काफी पहले से रही है। पत्थरबाजी शैतानों और इस्लाम का विरोध करने वालों के खिलाफ छेड़ा गया एक प्रतीकात्मक युद्ध है। गजवा ए हिंद का सपना पाले मुसलमानों का एक वर्ग भारत, भारत सरकार और हिंदुओं को शैतान के रूप में देखता है।
 बहरहाल, रामनवमी के अवसर पर उत्पात मचाने का जो सिलसिला महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर से शुरू हुआ था। वह वडोदरा, हावड़ा, हुगली, सासाराम, नालंदा, बिहारशरीफ तक जारी रहा। देश के कुछ और शहरों में भी रामनवमी पर उपद्रव की खबरें आईं। कहा नहीं जा सकता कि यह सिलसिला कब खत्म होगा क्योंकि जो शहर रामनवमी की शोभायात्राओं पर पत्थरबाजी और हिंसा का गवाह बने, उन सभी में अभी शांति स्थापित नहीं हो सकी है। रामनवमी पर उत्पात कोई नया काम नहीं है। पिछले वर्ष यह काम और बड़े पैमाने पर और अधिक शहरों में किया गया था। तब रामनवमी की शोभायात्राओं को निशाना बनाने के बाद हनुमान जन्मोत्सव की शोभायात्राओं पर भी पत्थरबाजी की गई थी।
 वास्तव में इसका सिलसिला हिंदू नववर्ष पर निकाली गई शोभायात्रा से ही शुरू हो गया था जो हनुमान जन्मोत्सव तक चला था। जो भी हो, आसार अच्छे नहीं हैं, क्योंकि ममता बनर्जी ने तो पहले ही पत्थरबाजों को क्लीन चिट दे दिया है। पता नहीं उनके इस क्लीन चिट का आधार क्या है। हालांकि इस नतीजे पर पहुंचने के अच्छे-भले कारण हैं कि शोभायात्राओं को जानबूझकर किसी साजिश और सनक के तहत निशाना बनाया जा रहा है। शोभायात्राओं पर पथराव के लिए अक्सर ऐसे बहाने गढ़ लिए जाते हैं कि शोभायात्रा मुस्लिम इलाके से निकल रही थी अथवा उसमें ‘उत्तेजक’ नारे लग रहे थे या फिर डीजे बज रहा था। कुछ लोगों के लिए तो जयश्रीराम का नारा भी उत्तेजक और आपत्तिजनक होता है।
 असदुद्दीन ओवैसी और उनके दल के नेता जयश्रीराम का उल्लेख करने से भी कतराते हैं। जब उन्हें इस नारे का जिक्र करना होता है तो वे ‘जेएसआर’ कहकर काम चलाते हैं। इससे समझा जा सकता है कि आपत्ति वास्तव में घृणा में बदल चुकी है। हावड़ा में हिंसा को लेकर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह कह दिया कि आखिर शोभायात्रा मुस्लिम मोहल्ले से क्यों निकली? सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या शोभायात्राओं के लिए मुस्लिम इलाके निषेध हैं? क्या वे विशेष आवासीय जोन हैं या फिर ऐसे इलाके हैं, जहां देश के कानून के बजाय समुदाय विशेष की मनमानी चलती है? क्या भारत के मुस्लिम इलाकों में अफगानिस्तान की तरह शरिया लागू हो गई है? यदि ममता यह कहेंगी कि हिंदुओं की शोभायात्राएं मुस्लिम इलाकों से नहीं निकलनी चाहिए, तो फिर कोई यह भी कह सकता है कि मुसलमानों के जुलूस हिंदुओं के इलाके से नहीं निकलने चाहिए। हालांकि यदि ऐसा कोई कह देगा तो यह सांप्रदायिकता होगी, लेकिन ममता बनर्जी के बयान को कोई भी सांप्रदायिक नहीं बता रहा है क्योंकि वह कथित तौर पर सेक्युलर खेमे की नेता हैं।
इतने बड़े स्तर पर राज्य में हिंसा हुई लेकिन नीतीश कुमार मुआवजा देने के बजाय इफ्तार पार्टी कर रहे हैं। खजूर खा रहे हैं। नीतीश जैसे लोग चुनाव के दौरान ही धर्मनिरपेक्षता की बात क्यों करते हैं। चुनाव जीत कर सीएम बन जाते हैं तो धर्मनिरपेक्षता के बारे में क्यों नहीं सोचते हैं।-असदुद्दीन ओवैसी ममता बनर्जी के कथन ने कुछ वर्ष पहले तमिलनाडु में सामने आए उस चौंकाने वाले मामले की याद दिला दी, जिसमें पेरंबलूर जिले के कड़तूर गांव के मुसलमानों ने हिंदू समाज की ओर से विशेष अवसरों पर निकाली जाने वाली धार्मिक यात्राओं पर यह कहकर आपत्ति जताई कि इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है, इसलिए हिंदुओं को गांव में रथयात्राएं निकालने से रोका जाए। उनके अनुसार रथयात्राएं इसलिए भी नहीं निकाली जानी चाहिए क्योंकि अब गांव में मुस्लिम आबादी अधिक हो गई है। यह दलील यही कहती थी कि जहां हमारा बहुमत हो वहां हमारी ही चलेगी। यह मामला 2021 में मद्रास उच्च न्यायालय पहुंचा। उसने मुस्लिम समुदाय की दलील को घोर असहिष्णु के साथ दुस्साहसिक भी करार दिया। उसने अपने निर्णय में कहा कि लोग और उनके समूह सांप्रदायिक हो सकते हैं लेकिन सार्वजनिक स्थल और सड़कें नहीं। हिंदुओं की धार्मिक यात्राओं पर मुसलमानों की आपत्ति यह भी स्पष्ट करती थी कि तथाकथित गंगा-जमुनी तहजीब एक धोखे के अलावा और कुछ नहीं और इसका उल्लेख लोगों को छलने और देश को मूर्ख बनाने के लिए ही अधिक किया जाता है।
 इस पर ध्यान दें कि मद्रास उच्च न्यायालय ने जिसे घोर असहिष्णुता कहा था, ममता बनर्जी ने उसे नसीहत और हिदायत के रूप मे पेश किया। हावड़ा में हिंसा के मामले में यह भी ध्यान रखें कि वहां शोभायात्रा पुलिस की अनुमति से और उसकी ओर से तय मार्ग से निकाली गई थी। आम तौर पर अब हर जगह ऐसा ही किया जाता है। रथयात्राएं उन्हीं मार्गों से निकलती हैं, जो पहले से तय होती हैं और जिनकी अनुमति पुलिस की ओर से दी जाती है। इतना ही नहीं, ऐसी यात्राओं के दौरान पुलिस भी उपस्थित रहती है। इसके बाद भी शोभायात्राओं पर पथराव किया जाता है। कई बार तो पुलिस वालों को भी निशाना बनाया जाता है। कभी-कभी तो थाना-चौकी भी उन्मादी भीड़ का शिकार हो जाती हैं। हावड़ा में ऐसा न होने पाए, इसके लिए थाने की बैरिकेडिंग की गई। यहां रामनवमी के दूसरे दिन शुक्रवार की नमाज के बाद भी हिंसा की गई। इस पर भी गौर करें कि ये हमले रमजान के दौरान किए गए।
शोभायात्राओं के साथ पुलिस पर भी पथराव से यदि कुछ स्पष्ट होता है तो यही कि आपत्ति केवल धार्मिक यात्राओं तक ही सीमित नहीं है। कायदे से तो हिंदुओं की धार्मिक यात्राओं और मुसलमानों के जुलूसों के दौरान पुलिस को अतिरिक्त चौकसी बरतने की आवश्यकता ही नहीं पड़नी चाहिए। लेकिन आज का दुर्भाग्य यही है कि ऐसा करना पड़ता है और इसके बाद भी हिंसा हो जाती है। आखिर किधर जा रहा है देश? यह कैसी सनक है कि किसी न किसी बहाने धार्मिक यात्राओं को निशाना बनाने का सिलसिला कायम है? इस सिलसिले को तोड़ना होगा, लेकिन यह तभी टूटेगा, जब धार्मिक यात्राओं को निशाना बनाने के पीछे की घृणा से भरी जो मानसिकता है, उसे सख्ती से कुचला जाए। अगर वक्त रहते ऐसा नहीं किया गया तो इसको नासूर बनने में समय नहीं लगेगा।
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