कश्मीरियत के लिए नौ सूत्र

24 Apr 2023 15:30:09
 अनुच्छेद 370 हटने के बाद से कश्मीर में कई बदलाव हुए हैं। यह बदलाव साफ नजर आ रहा है। आतंकी घटनाओं और पत्थरबाजों के लिए सुर्खियां बटोरने वाला जम्मू-कश्मीर अब विदेशी निवेश, एशिया का सबसे ऊंचा पुल और सबसे लंबी सुरंग के लिए सुर्खियां बन रहा है।
chinav jk
चिनार सिर्फ एक पेड़ नहीं है। वह खुद में पूरे जम्मू-कश्मीर का इतिहास समेटे है। यह यहां के हर बदलाव का गवाह है।आजादी के पहले और बाद के विदेशी आक्रमण हो या फिर आतंकवादी हमले सबको इसने झेला है। हर पतझड़ के बाद भी यह अडिग है। एक ही उम्मीद के साथ कि कभी तो वह दिन आएगा, जब पतझड़ तो होंगे लेकिन वादियों में आतंक नहीं होगा। पूरे जम्मू-कश्मीर में कश्मीरियत को महसूस किया जाएगा। अब वह दिन आ गया। आसमान को छूते चिनार अब बदलते जम्मू-कश्मीर को भी देख रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के तीन मंत्र (जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत) को अब यहां प्रधानता दिया जा रहा है। वाजपेयी के इस मंत्र को केंद्र में रखकर यहां के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने विकसित जम्मू-कश्मीर के लिए इस बार के बजट में नौ सूत्र दिए हैं। इन्हीं नौ सूत्रों पर चलकर इस केन्द्रशासित प्रदेश को देश का अग्रणी राज्य बनाना है, ऐसा उनका ध्येय है।
आज जम्मू-कश्मीर 20 जिलों में फैला है। जबकि आजादी से पहले इसकी रियासत तिब्बत से लेकर अफगानिस्तान तक फैली थी। बेशक यह 26 अक्तूबर, 1947 को भारत का राज्य बना लेकिन भारत के साथ पूर्णत: जुड़ने में इसे सात दशक से ज्यादा का समय लग गया। 5 अगस्त 2019 को भारत के संविधान से अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद अब यहां एक विधान और एक निशान हो गया है। यहां लगी कई पाबंदियां अब खत्म हो गई हैं। इसका प्रभावी असर पड़ा। वह यह कि जम्मू-कश्मीर के द्वार सभी के लिए खुल गए। पहली बार त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई। अब यहां के ग्रामीण अपने गांव के विकास की तस्वीर स्वयं बना रहे हैं। विकास मार्ग पर जम्मू-कश्मीर देश के साथ कदमताल कर रहा है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस कदमताल को और तेज करने के लिए बजट में निहित नौ प्रमुख बिन्दुओं पर प्राथमिकता देने की बात कही है।
वह नौ प्रमुख बिंदु हैं- सुशासन, बुनियादी लोकतंत्र का सुदृढ़ीकरण, सतत कृषि का संवर्धन, निवेश और औद्योगिक विकास का सुगमीकरण, रोजगार सृजन, त्वरित विकास और समावेशी वृद्धि, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक समावेशन एवं पांच साल के भीतर जम्मू-कश्मीर का जीडीपी दोगुनी करना। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए जम्मू-कश्मीर का कुल बजट अनुमान 1,18,500 करोड़ रुपए लगाया गया है। इसमें विकासात्मक व्यय 41,491 करोड़ रुपए है। जम्मू-कश्मीर सरकार इन नौ प्रमुख बिन्दुओं पर पहले से ही लगातार काम कर रही है। जम्मू विश्वविद्यालय में 5 अप्रैल से 7 अप्रैल तक हुए पंच-प्रण कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इन नौ बिन्दुओं को दोहराया भी था। उन्होंने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर सरकार ने अंतिम गांव तक बिजली पहुंचाकर अपनी प्रतिबद्धता को दिखा दिया है। देश से कभी अलग-थलग रहा यह प्रदेश अब कई मामलों में विकसित राज्यों को टक्कर दे रहा है। नई औद्योगिक नीति बनाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विदेशी निवेश भी तेजी से बढ़ रहा है।’ यहां जम्मू-कश्मीर सरकार की इन प्रमुख बिंदुओं पर हो रहे कार्यों को जानना और समझना बेहद जरूरी हो गया है।
सुशासन पर जोर
राज्य के 205 कानून निरस्त हो चुके हैं। पहले केंद्र सरकार का कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं था। बीते तीन वर्ष में 890 केंद्रीय कानून जम्मू-कश्मीर में लागू हुए हैं। इससे सभी प्रदेशवासियों को समान अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। जो समुदाय बुनियादी अधिकारों से भी वंचित थे, अब उन्हें सारे अधिकार प्राप्त हैं। पहले बाल विवाह कानून, जमीन सुधार से जुड़े कानून और शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू नहीं थे, लेकिन अब लागू हैं। जम्मू-कश्मीर में रहने वाले वाल्मीकि, दलित और गोरखा समुदाय के लोगों को कई सारे अधिकार प्राप्त नहीं थे। उन्हें वोटिंग का भी अधिकार नहीं था। अब वाल्मीकि समुदाय के लोगों को भी यहां वोट डालने का अधिकार मिल गया है।
 
बीते तीन वर्ष में 890 केंद्रीय कानून जम्मू-कश्मीर में लागू हुए हैं। इससे सभी प्रदेशवासियों को समान अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। जो समुदाय बुनियादी अधिकारों से भी वंचित थे, अब उन्हें सारे अधिकार प्राप्त हैं।
लोकतंत्र का सुदृढ़ीकरण
जम्मू-कश्मीर में पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराया गया। इससे गांव के लोगों को भी लोकतंत्र का मजबूत आधिकार मिला। जिसके सहारे वह अपने गांव के विकास का मॉडल खुद तैयार कर रहे हैं। यही नहीं पहले आम और विधानसभा चुनावों में 5-10 प्रतिशत मतदान हुआ करता था। वहीं अब 80 से 90 फीसदी मतदान होने लगा है।
सतत कृषि का संवर्धन
जम्मू-कश्मीर सरकार अगले पांच वर्षों में खेती-किसानी और उससे जुड़े क्षेत्रों के समग्र विकास के लिये 5013 करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है। यह प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था को विकास के नए पथ पर लेकर जाएगी। किसानों के कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सभी 20 जिलों के किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीआई) का विस्तार किया गया है। पहले यह योजना प्रदेश के केवल चार जिलों में ही उपलब्ध थी। कश्मीरी केसर दुनिया भर में उपलब्ध केसर की अन्य किस्मों से अलग और विशिष्ट है। अब इसे जीआई टैग प्राप्त है। वर्ष 2020 में केसर की कुल खेती 13 टन थी, जो 2022 में बढ़कर करीब 16 टन हो गई। यही नहीं दिसंबर 2022 में पहली बार कश्मीरी केसर का निर्यात किया गया।
निवेश और औद्योगिक विकास का सुगमीकरण
जम्मू-कश्मीर के लिए नई औद्योगिक नीति बनाई गई है। इसके तहत जम्मू-कश्मीर में लगभग 70,000 करोड़ रुपये के निवेश का लक्ष्य रखा गया है। इससे पांच लाख युवाओं को रोजगार मिलने की संभावना है। धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में ‘ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट’ करवाई गई। इस समिट में 13,732 करोड़ रुपये के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। आजादी के सात दशकों में यहां प्राइवेट इन्वेस्टर्स ने 17 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया था, जबकि अगस्त 2019 के बाद से अबतक 38 हजार करोड़ रुपये का निवेश आ चुका है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के शुरुआती नौ महीने में 1547.87 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में आया है। वहीं वित्तीय वर्ष 2019-20 में 296.64 करोड़ रुपये और 2020-21 में 412.74 करोड़ रुपये का निवेश हुआ था।
रोजगार सृजन
केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक 2019 से जून 2022 तक जम्मू-कश्मीर में 29,806 लोगों को सरकारी नौकरियां दी गई। सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कई रोजगारपरक योजनाएं भी शुरू की हैं। एक अनुमान के मुताबिक स्व-रोजगार योजनाओं से 5.2 लाख लोगों को रोजगार मिला है। खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से लगभग 2,16,000 लोगों को गृह उद्योग और अन्य उद्योगों के साथ जोड़ा गया है।
विकास और समावेशी वृद्धि
प्रधानमंत्री डेवलपमेंट पैकेज के तहत 58,477 करोड़ रुपये की लागत से जम्मू-कश्मीर में 53 प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए हैं। ये प्रोजेक्ट्स रोड, पावर, हेल्थ, एजुकेशन, टूरिज्म, खेती और स्किल डेवलपमेंट जैसे सेक्टर में शुरू हुए हैं। वहीं पहले सड़क मार्ग ठीक न होने के कारण श्रीनगर से जम्मू जाने में 12 से 14 घंटे का समय लगता था। अब इस दूरी को 6 से 7 घंटे में पूरी की जा सकती है। अगस्त 2019 से पहले प्रति दिन औसतन 6.4 किमी सड़क बनाई जाती थी, लेकिन अब प्रति दिन 20.6 किमी सड़कें बन रही है।
आजादी के सात दशकों में यहां प्राइवेट इन्वेस्टर्स ने 17 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया था, जबकि अगस्त 2019 के बाद से अबतक 38 हजार करोड़ रुपये का निवेश आ चुका है।
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