जांच एजेंसियों से लालू परिवार का संबंध 30 साल पुराना: सुशील मोदी

युगवार्ता     05-Apr-2023   
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पूर्व उप मुख्‍यमंत्री सुशील मोदी

 

वर्तमान में राज्यसभा सांसद बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम व वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील मोदी से बिहार की राजनीति में उठे तूफान को लेकर संवाददाता सौरव राय ने विस्तार से बातचीत की। पेश है बातचीत का संपादित अंश

विपक्ष के मुताबिक लालू परिवार को सरकार परेशान करने के लिए ईडी-सीबीआई का सहारा ले रही है। आप क्या कहेंगे?

लालू परिवार का ईडी-सीबीआई से संबंध 30 साल पुराना है। वे पहली बार जेल देवगौड़ा सरकार के समय गए थे। देवगौड़ा लालू जी के सपोर्ट से प्रधानमंत्री बने थे। चारा घोटाले के चार मामलों में सजा भी हो गई। इसलिए लालू परिवार पर ईडी, सीबीआई की छापामारी, पूछताछ और मुकदमे कोई नई चीज नहीं है। लालू परिवार को तथ्यों पर जवाब देना चाहिए। नौकरी के बदले जमीन लिखवाई गई। इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। तेजस्वी इसका जवाब दें। इस मामले को जदयू अध्यक्ष ललन सिंह ने ही उजागर किया था। 2008 में स्वर्गीय शरद यादव, ललन सिंह और मुख्तार अब्बास नकवी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलकर शिकायत की थी कि लालू प्रसाद रेल मंत्री रहते हुए नौकरी के बदले जमीन लिखवाये हैं। उनकी सीबीआई जांच हो। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने पर ललन सिंह फिर सक्रिय हुए। उन्हीं के दिए कागजों पर कार्रवाई हो रही है तो अब उन्हें परेशानी हो रही है।

पिछली बार तेजस्वी पर आरोप लगा तो नीतीश कुमार उनसे अलग हो गए। इस बार वे चुप हैं। इसे आप कैसे देखते हैं?

नीतीश कुमार ने तेजस्वी से पिछली बार कुछ सवाल पूछे थे। वे उसका जवाब नहीं दे पाए तो उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया। लेकिन उन सवालों के जवाब आज तक नहीं मिले फिर भी वे तेजस्वी के साथ चले गए। उस समय जमीन के बदले नौकरी का मामला नहीं था। वह आईआरसीटीसी घोटाला था। उस मामले में चार्जशीट भी फाइल हो गई। ट्रायल शुरू होने वाला है। इस बार नया मामला है, नौकरी के बदले जमीन। भ्रष्टाचार और अपराध से समझौता नहीं करने की डींग हांकने वाले नीतीश ने प्रधानमंत्री बनने के लिए समझौता कर लिया। उन्हें पता है कि वह बीजेपी के साथ रहकर प्रधानमंत्री कभी नहीं बन सकते। अगर प्रधानमंत्री की थोड़ी सी भी गुंजाइश बन सकती है तो वह कांग्रेस और राजद गठबंधन से ही बन सकती है। तो उन्होंने अपना भाग्य आजमाने के लिए भ्रष्टाचार से समझौता कर लिया।

आपने कहा था कि इस रेड से सबसे ज्यादा खुश नीतीश कुमार होंगेक्यों?

नीतीश कुमार तेजस्वी का बचाव सिर्फ इसलिए कर रहे हैं ताकि वे मुख्यमंत्री बने रहें। लेकिन खुश इसलिए हैं क्योंकि राजद के लोग तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए यह कहकर दबाव बना रहे थे कि उनकी संख्या 80 है और नीतीश की केवल 44। शुरूआत में इन लोगों के बीच डील हुई थी जिसमें तय हुआ था कि मार्च-अप्रैल तक तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री पद सौंपकर नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति करेंगे। बाद में यह पलट गए और वे 2025 तक सीएम बने रहना चाहते हैं। अब इस घटना के बाद नीतीश कुमार पर राजद का दबाव खत्म हो गया। अब तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठनी बंद हो गई है। ऐसे में सबसे ज्यादा खुशी किसी को होगी तो वह नीतीश कुमार हैं।

भाजपा तेजस्वी को बर्खास्त करने की मांग कर रही है। अगर नीतीश कुमार ने ऐसा नहीं किया तो आगे की रणनीति क्या है?

तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम हैं और इतने महत्वपूर्ण पद पर रहने वाले व्यक्ति पर इतना गंभीर आरोप है। अगर नीतीश कुमार वाकई एक साफ-सुथरी सरकार देना चाहते हैं तो उन्हें तेजस्वी यादव को बर्खास्त करना चाहिए। चाहें तो आरजेडी से किसी और को डिप्टी सीएम बना दें।

नीतीश कुमार कई बार पलटी मार चुके हैं। इसे किस रूप में देखते हैं?

नीतीश कुमार का व्यक्तित्व धीरे-धीरे क्षीण होता जा रहा है। जो उनका आभामंडल पहले था वह घट रहा है। या यूं कहें कि खत्म हो गया है। यह लोगों ने 2020 के विधानसभा चुनाव में देखा। नीतीश कुमार का आरोप है कि चिराग पासवान ने जदयू को 44 पर पहुंचा दिया। यह तो नीतीश कुमार की खुद की कमजोरी का परिणाम है और आरोप चिराग पासवान पर लगा रहे हैं। वे खुद कमजोर हो गए हैं लेकिन इसको स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। जदयू एक जमाने में 110-115 सीटें जीता करता था आज वह 44 पर सिमट गया। उपचुनाव में भी नीतीश कुमार अपना वोट ट्रांसफर नहीं करा पाए।

क्या नीतीश के वोटर तेजस्वी को अपना नेता मानेगा?

नीतीश कुमार ने तो तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी और अगला मुख्यमंत्री घोषित कर दिया लेकिन नीतीश का वोटर इस बात को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। वह किसी और को स्वीकार कर लेगा लेकिन लालू परिवार को कतई नहीं। इसी कारण वे सभी गठबंधन के लिए बोझ बन गए हैं।

नीतीश ने इस बार यू-टर्न क्यों लिया? क्या वे लालू परिवार के झांसे में आ गए या बीजेपी उन्हें संभाल नहीं पाई?

देखें हर इंसान की अपनी महत्वाकांक्षा होती है। एमएलए, मंत्री बनना चाहता है। मंत्री, मुख्यमंत्री बनना चाहता है। वैसे ही नीतीश कुमार को भी रह रहकर सपना आता है कि वे प्रधानमंत्री बन सकते हैं। इसलिए उनको लगता है कि प्रयास करने में क्या हर्ज है। बीजेपी से वे बन नहीं सकते क्योंकि वहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद हैं। वे जानते हैं कि राजद की कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा नहीं है। इसलिए उन्हें लगता है कि राजद के सहयोग से वे प्रधानमंत्री बन सकते हैं।

उपराष्ट्रपति का क्या मामला था जिसे आपने ही उठाया था?

उनके ही लोगों ने बीच में कई बार यह संदेश देने की कोशिश की थी कि नीतीश जी को राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति जैसा कोई पद दे दिया जाए। हालांकि यह बात नीतीश कुमार की तरफ से नहीं आई है। इस मुद्दे पर बीजेपी ने साफ कहा कि यह संभव नहीं है। हमारे पास जब अपना बहुमत है तो हम दूसरे को क्यों बनाएंगे।

नीतीश कुमार अगर फिर से बीजेपी में आना चाहें?

अमित शाह ने साफ कह दिया है कि नीतीश कुमार के लिए सारे दरवाजे अब बंद हो चुके हैं। जदयू के सांसद व विधायक जरूर चाहते हैं कि बीजेपी के साथ फिर से गठबंधन हो जाय। वे आज भी कहते हैं कि उन लोगों से बिना पूछे राजद से गठबंधन कर लिया गया। मैंने पहले भी कहा कि अब उनकी क्षमता नहीं रह गई है अपने वोट को ट्रांसफर कराने की। अगर हम उनको साथ में लेते हैं तो हम अपनी संख्या में नीचे भी आ सकते हैं। उनका वोट बैंक स्वयं ही बड़ी मात्रा में हमारी तरफ आ चुका है तो हमें उनको अपने साथ रखने की आवश्यकता क्या है।

प्रशांत किशोर की राजनीति को आप कैसे देखते हैं?

प्रशांत किशोर का बिहार की राजनीति में कहीं दूर दूर तक अभी नामोनिशान नहीं है। बाकी लोकतंत्र में हर व्यक्ति को यात्रा करने का, लोगों से जुड़ने का अधिकार है। वे भी कर रहे हैं।

बिहार की राजनीति में सुशील कुमार मोदी अपने को कहां देखते हैं?

बिहार की राजनीति का प्रश्न नहीं है। मैं बीजेपी का सिपाही हूं। पार्टी जो दायित्व देती है मैं काम करता हूं। पार्टी ने कहा एमएलए बनना है, एमपी बनना है और अभी राज्यसभा में हूं। इससे पहले मैं डिप्टी सीएम रहा हूं। पार्टी ने मुझे इतना कुछ दे दिया है मैं उसी से संतुष्ट हूं। आगे कुछ मिले ना मिले इसको लेकर ना मेरी कोई इच्छा है ना ही मेरी कोई तमन्ना है। 

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सौरव राय

सौरव राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
इन्हें घुमक्कड़ी और नई चीजों को जानने-समझने का शौक है। यही घुमक्कड़ी इन्हें पत्रकारिता में ले आया। अब इनका शौक ही इनका पेशा हो गया है। लेकिन इस पेशा में भी समाज के प्रति जवाबदेही और संजीदगी इनके लिए सर्वोपरि है। इन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्नातकोत्तर और फिर एम.फिल. किया है। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ साप्ताहिक में वरिष्‍ठ संवाददाता हैं।