आज विश्व को हमारी आवश्यकता है

युगवार्ता    10-May-2023   
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बदलती विश्व व्यवस्था का विश्लेषण करें तो पिछले 50 साल में परिवर्तन की गति ने जोर पकड़ा है। खासकर, पिछले 10 सालों से इसमें और तेजी आई है। इसलिए जब हम बदलते विश्व के बारे में बात करते हैं तो यह बहुत बड़े फलक पर व्यापक इतिहास का अध्ययन करने की बात होती है।

joshi ji

देवेंद्र स्वरूप जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह जो बात करते थे उसमें एक दृष्टि प्रदान करने की चेतना थी। ऐसे अध्ययन आजकल कम ही मिलते हैं। ये बात डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कलानिधि विभाग द्वारा आयोजित पांचवें ‘देवेन्द्र स्वरूप स्मारक व्याख्यान’ में मुख्य वक्ता के तौर पर कही। उन्होंने आगे कहा कि देवेंद्र जी में एक गहन दृष्टि थी। उन्होंने बहुत विषयों पर दृष्टिपात किया है। स्वाधीनता संग्राम के बारे में उन्होंने बहुत कुछ लिखा।
संविधान के बारे में लिखा। देवेंद्र जी के सैकड़ों लेख और निबंध प्रकाशित हैं। डॉ. जोशी ने कहा कि सरस्वती नदी की खोज के दौरान उनसे बहुत आत्मीय संबंध रहा। उस समय एक बड़ा भारी आंदोलन किया जा रहा था कि सरस्वती एक मिथक है। विरोधी गुट का आरोप था कि बीजेपी वाले मिनिस्टर पौराणिक गाथाओं को स्थापित करना चाहते हैं। इसी क्रम में सरस्वती नदी भी विपक्षियों के निशाने पर थी।
इस पर संसद में काफी बहस होती थी। इस बात को बाहर ले जाने में देवेंद्र जी का बड़ा योगदान रहा। देवेंद्र जी एक विलक्षण और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इसके साथ ही वह आदर्शवादी थे। यानि उनमें विनयशीलता, आदर्शवादिता, सिद्धांतवादी आदि गुणों की भरमार थी। उनमें दिखावे का लेश मात्र भी अंश नहीं था। उन्होंने भारतीय परंपरा के ऋषि के समान अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। इस कार्यक्रम मे जोशी जी ने ‘बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में भारतह्व पर विहंगम दृष्टि डाली। उन्होंने कहा कि आज संपूर्ण विश्व की नजर भारत की तरफ है। विश्व रंगमंच पर हमारी भूमिका बढ़ रही है।
“देवेंद्र स्वरूप एक विलक्षण और बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। उनमें विनयशीलता, सिद्धांतवाद व आदर्शवाद आदि गुणों की भरमार थी। उनमें दिखावे का लेश मात्र भी अंश नहीं था। उन्होंने भारतीय परंपरा के ऋषि के समान अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। -डॉ. मुरली मनोहर जोशी
 
इस प्रकार की आवश्यकता वर्तमान में वैचारिक क्षेत्र में बड़ी तेजी से उभर रही है। बदलती विश्व व्यवस्था का विश्लेषण करें तो पिछले 50 साल में परिवर्तन की गति ने जोर पकड़ा है। खासकर, पिछले 10 सालों से और तेज हुई है। इसलिए जब हम बदलते विश्व के बारे में बात करते हैं तो यह बहुत बड़े फलक पर व्यापक इतिहास का अध्ययन करने की बात होती है।
यंत्रों के आविष्कार शुरू हुए तो उससे कुछ गति आनी शुरू हुई और जब यंत्रों का आविष्कार स्टीम इंजन के रूप में सामने आया तब तो गति और तेज हो गई। हालांकि इसमें कई बिंदु हैं। जो हमारी पुरानी जीवन पद्धति थी उसमें स्थायित्व ज्यादा था। अब उसमें बदलाव आने लगा। यह बदलाव केवल परम्परा और रूढ़ियों पर ही नहीं था। बल्कि इसने अनेक प्रकार की नई दृष्टि को जन्म दे दिया।
इसमें एक बड़ा भारी मोड़ तब आया जब जब श्रम और श्रम के उद्देश्य में बदलाव हो गया, अलगाव हो गया। हम खेती क्यों कर रहे हैं। अपने लिए कर रहे हैं या समाज का पेट भरने के लिए कर रहे हैं। अब श्रम का उद्देश्य यह हो गया कि मैं खेती कर रहा हूं अपने लिए नहीं, बाजार के लिए कर रहा हूं।
पहले जो हम खेती करते थे, वह हम आसपास के लोगों के साथ मिलकर कर करते थे। उसमें श्रम और श्रम के उद्देश्य में अलगाव नहीं था। धीरे-धीरे यह हुआ कि मैं श्रम का विपणन कर सकता हूं। यानी श्रम बेच सकता हूं। यह जो मोड़ आया यह विश्व इतिहास में एक भारी मोड़ था। इसने एक परिवर्तनकारी सोच पैदा कर दिया और यही आगे चलकर औद्योगिक समाज की नींव का मुख्य कारण बना।

joshi ji and Rb rai 
जिसमें श्रम कर्ता और श्रम के परिणाम का उपयोगकर्ता वाली नई दृष्टि से नए समाज का जन्म हुआ। इससे धीरे-धीरे जो नई विकृतियां आई या यूं कहे विकास हुआ इसको जिस रूप में भी देखें इसमें प्राइवेट प्रॉपर्टी का विकास हुआ। धीरे-धीरे इससे संपत्ति का निर्माण होना शुरू हो गया क्योंकि जैसे हमने श्रम बेचना शुरू किया। जिसके पास श्रम का परिणाम ज्यादा था तो फिर उसने उससे और लोगों का श्रम खरीदना शुरू कर दिया।
इसी से श्रम से संबंधित कई सूत्र निकलने लगे। और उसमें से स्किल्ड और नॉनस्किल्ड वर्ग का विकास होने लगा। उसने कैपिटल का स्वरूप बदलना शुरू कर दिया। मेरे पास ज्यादा पूंजी है तो मैं ज्यादा लोगों की जमीन खरीद सकता हूं और उन्हें बेदखल करके मजदूर बना सकता हूं। हालांकि शुरुआत इसकी बहुत पहले हो चुकी थी। लेकिन इसमें तेजी तब आई जब यांत्रिकी का विकास होने लगा फिर श्रम का उद्देश्य तात्कालिक ना होकर दीर्घकालिक या अधिक सामर्थ्य देशों के लिए हो गया। इस तरह जो व्यक्ति पहले किसी उद्देश्य के लिए श्रम करता था अब वह निरुद्देश्य होकर श्रम करने लगा क्योंकि उसे तो किसी दूसरे के लिए काम करना है।
इससे उद्देश्य हीनता का समाज पैदा हुआ। वह समाज जिसके सामने कोई लक्ष्य नहीं है, क्योंकि पहले वह एक लक्ष्य लेकर चलता था कि मुझे अपने लिए उपार्जन करना है, समाज के लिए उपार्जन करना है। वहीं अब उपार्जन दूसरे के लिए करना है यानी श्रम का विपणन हो रहा है। इससे एक ग्रोथ का कांसेप्ट आया।
इससे धारणा यह बनी कि अपने पास अधिक से अधिक सामग्री इकट्ठी की जाए। इसे आजकल विकास कहते हैं। फिर उस विकास के लिए सब कुछ होने लगा। इसकी अगली प्रणाली यह हुई कि पूंजी से अधिक पूंजी करने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। इससे पूंजी का संकेंद्रण शुरू हो गया। इससे श्रम या मनुष्य का प्राकृतिक उद्देश्य खत्म हो गया। अब उसके अंदर जो खूबिया थीं सब नष्ट हो गईं।
तेज परिवर्तन से परंपराओं रूढ़ियों पर प्रश्न उठने लगा। आज परिवर्तन बहुत तेज है। समय के साथ कुछ ही दिन में हर नई चीज आउटडेटेड हो जाती है। 19वीं शताब्दी के मध्य में एक प्रश्न ज्यादा तेजी से उठा। पहला कि किस देश के पास कितनी संपत्ति है। किसे संपत्ति माना जाए? कैपिटल कितनी है? वास्तविक कर्ज कितना है? उसी दौरान अमेरिका में साइमन कुज्नेत्स नाम के एक अकाउंटेंट थे। जो नेशनल अकाउंटेंट की तरह थे।
उन्होंने 4 जनवरी 1934 को राष्ट्र की अकाउंटेंसी का फॉर्मूला चर्चा परिचर्चा के लिए अमेरिका के सामने रखा। उन्होंने कहा कि दुनिया से भी इस पर बात होनी चाहिए। एक शब्द निकला जीडीपी। इसमें से एक अंक निकला जिसे नाम दिया गया जीडीपी। उन्होंने कहा इसका एक मेजर होना चाहिए कि मेरी संपत्ति कितनी बढ़ी और आपकी संपत्ति कितनी बढ़ी। वह संपत्ति कहां से आई है, लूट से आई है, कर्ज से आई है या किसी और राष्ट्र के पास से, प्राइवेट है या किसी व्यक्ति के पास है।
इसने एक महत्वपूर्ण दृष्टि दी। इस दौरान सबसे खतरनाक बात यह हुई कि दुनिया के सभी देशों ने इस अकाउंटेंट सिस्टम को स्वीकार कर लिया। तब से आपकी प्रगति का मापदंड यह हो गया कि आप की जीडीपी कितनी है? अगर आपकी जीडीपी बढ़ रही है तो आप का विकास हो रहा है। अगर आप की जीडीपी घट रही है तो आपको हानि हो रही है। और आज सारी दुनिया किसी एक नंबर के मापदंड पर चल रही है। कुछ दिन तो इस पर सवाल नहीं उठे लेकिन अब धीरे-धीरे इस पर सवाल उठने लगे हैं। आखिर इस एक नंबर से मापा क्या जाता है?
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राम जी तिवारी

राम जी तिवारी (मुख्‍य उप संपादक)
 
अवध विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक। आईआईएमसी से पत्रकारिता में डिप्लोमा, कुरुक्षेत्र विवि से पत्रकारिता में परास्नातक। श्यामा प्रसाद मुखर्जी फाउंडेशन, डीडी किसान एवं वैश्य भारती पत्रिका सहित कई संस्थानों के संपादकीय विभाग में कार्य किया है। इन दिनों हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी से जुड़े हैं। फिलहाल ‘युगवार्ता’ पाक्षिक के मुख्‍य उप-संपादक हैं।