अंगदान, महादान, पर कैसे!

युगवार्ता     19-May-2023   
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इस बात से हम बेखबर नहीं है कि अंगदान करना एक महान काम है। पर इसे लेकर हमारे अंदर बहुत सी शंकाएं और भय है। जिस कारण देश के बहुत से नागरिक असमय यह दुनिया छोड़ जाते हैं। विज्ञान चिकित्सा की तरक्की का कोई मतलब नहीं रह जाता, अगर हम अंगदान में अपना योगदान न कर सके।

 
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हाल ही में एक उत्साहवर्द्धक खबर आई है। खबर है कि अब ऐसे केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों को 42 दिनों का विशेष अवकाश दिया जायेगा, अगर वे किसी जरूरतमंद को अंगदान करते हैं। मीडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार- एक अंगदान करने के दौरान व्यक्ति की बड़ी सर्जरी होती है, अत: इस तरह की सर्जरी से रिकवर होने में काफी समय की आवश्यकता होती है। इसलिए केंद्रीय कर्मचारी अंगदान के लिए प्रोत्साहित हो, यह कदम उठाया गया है। यह तो रही हालिया खबर, पर इस साल की शुरूआत में यानी फरवरी में केंद्र सरकार ने अंगदान को अधिक व्यापक बनाने के लिए कई तरह के कदम उठाने के प्रयास किये हैं। इसके लिए अंग प्रत्यारोपन के नियमों में कई तरह के बदलाव किये जायेगें। इसमें प्रमुख रूप से 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के बुजुर्गों को मृतक दाताओं से अंग प्राप्त करने के लिए पंजीकरण कराने की अनुमति मिल गई है। साथ ही सभी पंजीकरण कराने वाले मरीजों को मूल निवासी संबंधी मानदंड को समाप्त कर दिया गया है। इसमें यह भी जोड़ा गया है कि इस पंजीकरण के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जायेगा, जो आज भी कुछ राज्य लेते है।

अंगदान सभी प्रकार के दानों में एक श्रेष्ठ दान है, जहां जीवित या मृत व्यक्ति अपने शरीर का दान कर एक या कई लोगों की जिंदगियां बचाता है। हमारे पौराणिक आख्यानों में दधिचि की हड्डियों के दान की कथा कही जाती है, जो हमें इस ओर सचेत करती है कि शरीर के अंगों का दान कितना महत्वपूर्ण है। हम यह सब जानते और समझते हुए इस ओर कदम बढ़ाने से झिझकते हैं। इसके लिए कई तरह के अंधविश्वास और जागरूकता की कमी कारण बनते हैं। और हम आज भी अंगदान से विमुख बने हुए हैं। कामोवेश हर धर्म में अपनी तरह की मान्यताएं हैं जो लोगों को इस नोबल काजसे दूर रखे हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में हर साल 1.3 लाख रोड एक्सीडेंट होते हैं, जिनमें से लगभग 70 फीसदी मरीजों को ब्रेन डेड घोषित किया जाता है, जिनके पास से अंगदान की पूरी संभावना होती है। लेकिन इनमें से एक बहुत हिस्सा इस नोबल काज से इंकार कर देता है। इनके इंकारमें परिवार की अनिच्छा, धार्मिक विश्वास और कभी-कभी पुलिस हस्तक्षेप भी जिम्मेवार होता है। राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण और ऊतक संगठन (एनओटीटीओ) देश में अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र एक नोडल नेटवर्किंग एजेंसी है, जो देश में अंगों की खरीद, आवंटन और वितरण का समन्वय करती है। इस एजेंसी का मानना है कि अगर हम ब्रेन डेड से संबंधित 100 केस में उनके परिवार वालों को समझाते हैं तो मुश्किल से पांच परिवार इस काम के लिए तैयार हो पाते हैं। उनके धार्मिक विश्वास बहुत गहरे होते है, जैसे कि अगले जन्म में उन्हें दान किये गये अंगों के बिना पैदा हो जायेगे।

हम इस बात को अच्छे से समझते हैं कि अंग प्रत्यारोपण के द्वारा किसी भी व्यक्ति को जीवन का एक और मौका मिल जाता है, जो प्रत्यारोपण के बिना जीवित नहीं बचेगा। आज विज्ञान ने जिस तरह की तरक्की कर ली है, उससे किसी भी व्यक्ति के जीवन को किडनी, लीवर, फेफड़ा, अग्न्याशय, कॉर्निया, त्वचा, हड्डी और हृदय के वाल्व का प्रत्यारोपण करके बचाया जा सकता है। अंगों का प्रत्यारोपण जीवित और मृतक दोनों तरह के व्यक्तियों के अंगों से होता है। एक जीवित व्यक्ति एक किडनी, लीवर का एक भाग, एक फेफड़ा, अग्न्याशय का एक भाग, कॉर्निया, त्वचा, हड्डी और ह्दय के वाल्व जैसे ऊतक दान कर सकता है। जबकि एक मृतक व्यक्ति से सही समय पर कई अंग प्रत्यारोपित हो सकते हैं। एक मृतक व्यक्ति लीवर, ह्दय, अग्न्याशय, छोटी और बड़ी आंत, फेफड़ों के साथ-साथ दूसरे ऊतक कॉर्निया, त्वचा, हड्डी और ह्दय के वाल्व प्राप्त हो जाते हैं, जिससे एक साथ कई लोगों की महत्वपूर्ण जिंदगियों को बचाया जा सकता है। इस बात को आंकड़ों की नजर से भी समझा जा सकता है। आंकड़े कहते हैं कि 2016 में 930 मृतक दाताओं से 2,265 अंगों का उपयोग किया गया, जबकि 2022 में 904 मृतक दाताओं से 2,765 अंगों का उपयोग किया जा सका। समझा जा सकता है कि एक मृतक व्यक्ति से पहले की तुलना में ढाई गुना तक लोगों की जान बचाई जा सकी। वहीं इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि मृतकों से मिले अंगों का हम अब ज्यादा उपयोग करने की स्थिति में है।

वर्तमान आवश्यकता को देखते हुए हम न के बराबर अंगदान में रुचि ले रहे हैं। अगर रोटरी अंगदान संस्था की माने तो देश में प्रत्येक दिन लगभग 6000 लोग हर दिन अंग प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं। प्रत्येक 13 मिनट में कोेई एक इस लिस्ट में जुड़ जाता है। प्रत्येक 17 मिनट में कोई अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में मर रहा होता है। इन आंकड़ों की छाया में हम बखूबी देख सकते हैं कि अंगदान की कितनी जरूरत है। आर्गन रिसीविंग एडं गिविंग अवेरनेस नेटवर्क के अनुसार हमें प्रत्येक वर्ष हमारे 5 लाख व्यक्तियों को अंगदान की जरूरत होती है। प्रतिवर्ष दो लाख कॉर्निया की जरूरत होती है, जबकि केवल 50,000 कॉर्निया का दान किया जाता है। दो लाख को किडनी की जरूरत होती है, जबकि हमारे पास 1,684 किडनी ही मौजूद हो पाती है। इसी तरह 50 हजार ह्दय की जरूरत पड़ती है, जबकि हमारे पास 339 ह्दय ही दान हो पाते हैं। इसी तरह 50 हजार लीवर की जरूरत होती है, जबकि हमारे पास वर्ष के अंत तक 708 लीवर ही जुड़ पाते हैं। देखा जाये तो हमारे देश में अंगदान की दर बहुत ही कम है। हम प्रति-मिलियन पर 0.86 फीसदी लोग ही अंगदान करते हैं, जबकि अमेरिका में 31.96 और स्पेन में 46.9 फीसदी लोग अंगदान करते हैं।

फिर भी जन-जागरूकता से हम इस स्थिति से बाहर निकलने की स्थिति में जरूर हैं। राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण और ऊतक संगठन एनओटीटीओ के आंकड़ों की माने तो देश में कुल अंग प्रत्यारोपण की संख्या 2013 में 5,000 से कम थी, जो 2022 में बढ़कर 15,000 से अधिक हो गई है। हालांकि 2019 में बढ़ते हुए अपने पीक प्वांइट 12,000 से अधिक हो गया था, पर 2020 और 2021 में घटता गया पर 2022 में 2019 से आगे बढ़ गया, जो देश के लिए अच्छी बात है। इसीलिए सरकारी प्रयास भी हो रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन, क्षेत्रीय स्तर पर क्षेत्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (आरओटीटीओ), और राज्य स्तर पर राज्य अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एसओटीटीओ) के नेटवर्क के माध्यम से बेहतर समन्वय बनाकर स्थिति को काफी बेहतर किया गया है। इस नेटवर्क के माध्यम से आज प्रति मृतक दाता अधिक अंगों का उपयोग किया जा रहा है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय देश में अंगदान और प्रत्यारोपण को बढ़ावा देते हुए नीतिगत सुधारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के मापदंड़ों से सीख ले रहा है। साथ ही प्रत्यारोपण समन्वयकों के प्रशिक्षण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम पर भी तैयार किया जा रहा है। इन सब प्रयासों के बावजूद हमें अपनी जिम्मेदारी के प्रति अधिक ध्यान देना होगा क्योंकि अंगदान, महादान है, इसकी कभी भी जरूरत हमें भी पड़ सकती है।
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प्रतिभा कुशवाहा

प्रतिभा कुशवाहा, मुख्‍य कॉपी संपादक

जीवन में स्वतंत्रता और उत्सुकता के लिए पत्रकारिता का रास्ता चुना। हिन्दी साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिका पाखी से की गई शुरुआत ने पत्रकारिता के क्षेत्र में बेहतर मार्ग दिखाया। काफी उतार-चढ़ाव के बाद भी पत्रकारिता की यात्रा अनवरत जारी। इन दिनों हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ पाक्षिक के मुख्‍य कॉपी संपादक हैं।