मणिपुर हिंसा के निहितार्थ

युगवार्ता    22-May-2023   
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पिछले दिनों हुई हिंसा के बाद स्थिति अभी भी पूरी तरह सामान्य नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे मणिपुर उससे उबरने की कोशिश कर रहा है। आखिर वह कौन सी वजह थी जिससे मणिपुर सुलग उठा। ऐसी स्थिति आई क्यों? क्यों सुलग रहा है नॉर्थ ईस्ट का गहना?
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णिपुर पिछले कुछ दिनों से हिंसा की आग में सुलग रहा है। राजधानी इम्फाल से दक्षिण में 63 किलोमीटर दूर चुराचंदपुर जिला हिंसा का केंद्र रहा। जातीय हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़, लूटपाट व हत्या जैसे दृश्य बेहद भयावह थे। इंटरनेट बंद कर दिये गये। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए। हजारों लोग अपना घर-बार छोड़कर पड़ोसी राज्य असम में पलायन कर गए।
केंद्र सरकार लगातार हालात पर नजर बनाए हुए है। बड़ी तादाद में आर्मी और असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया है। आखिर ऐसी स्थिति आई क्यों? क्यों सुलग रहा है नॉर्थ ईस्ट का गहना? दरअसल, मणिपुर में हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। इस इतिहास में उसके भूगोल की भी अपनी भूमिका है। ऐसे में वहां के सामाजिक ताने-बाने, बुनावट को समझे बगैर मौजूदा हिंसा की वजह नहीं समझी जा सकती।
पूर्वोत्तर के इस राज्य में तीन प्रमुख समुदाय हैं- बहुसंख्यक मेइती और दो आदिवासी समुदाय- कुकी और नागा। इनके बीच आपसी अविश्वास का इतिहास रहा है। राज्य की कुल आबादी में मेइती की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत है यानी आधे से अधिक। ये आर्थिक और राजनीतिक तौर पर मणिपुर का सबसे प्रभावशाली समुदाय है। राज्य की 40 प्रतिशत आबादी कुकी और नागा की है। मेइती सूबे के मैदानी इलाकों, इम्फाल घाटी में हैं। कुकी और नागा आदिवासी इम्फाल घाटी से सटे पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। ये इलाके लंबे समय से उग्रवादी गतिविधियों के केंद्र रहे हैं।
एक वक्त तो ऐसा भी था कि तकरीबन 60 हथियारबंद उग्रवादी समूह इस इलाके में सक्रिय थे। मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का महज 10 प्रतिशत मैदानी इलाका है जो इम्फाल घाटी में है और बहुत ऊपजाऊ है। राज्य का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी इलाका है। मेइती आर्थिक और राजनीतिक तौर पर सबसे प्रभावशाली और ताकतवर हैं। राज्य में किसी भी पार्टी की सरकार हो लेकिन दबदबा मेइती का ही होता है। मौजूदा मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। कुकी और नागा समुदाय सरकार पर खुद के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाते हैं।
ताजा हिंसा की दो प्रमुख वजहें हैं। एक है बहुसंख्यक मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का फैसला, जिसका कुकी और नागा समुदाय विरोध कर रहे हैं। कुकी और नागा समुदाय को आजादी के बाद से ही आदिवासी का दर्जा मिला हुआ है। और दूसरी वजह है गवर्नमेंट लैंड सर्वे। भाजपा की अगुआई वाली राज्य सरकार रिजर्व्ड फॉरेस्ट यानी आरक्षित वन क्षेत्र को खाली कराने का अभियान चला रही है। कुकी समुदाय इसके विरोध में है। तनाव की शुरूआत चुराचंदपुर जिले से हुई जो राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस कुकी बहुल चुराचंदपुर में द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को 8 घंटे बंद का ऐलान किया था। संयोग से बंद वाले दिन ही मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का जिले में कार्यक्रम भी था। वह चुराचंदपुर में न्यू लमका टाउन के सद्भावना मंडप में रैली के साथ-साथ एक ओपन जिम और पीटी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स का उद्घाटन करने वाले थे। लेकिन 27 अप्रैल की रात को ही भीड़ ने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम वाली जगह पर जमकर तोड़फोड़ व आगजनी की। हिंसा के बावजूद बीरेन सिंह के कार्यक्रम की तैयारियां चल रही थीं। 28 अप्रैल को अधिकारी और बड़ी संख्या में लोग सीएम के आने का इंतजार कर रहे थे तभी वहां प्रदर्शनकारियों ने धावा बोल दिया। हालात को संभालने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े और जवाब में उन्होंने पत्थरबाजी की। हालात को देखते हुए आखिरकार मुख्यमंत्री ने चुराचंदपुर का दौरा रद्द कर दिया। 28 अप्रैल को देर रात तक पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प होती रही। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने फॉरेस्ट रेंज ऑफिस को आग के हवाले कर दिया।
27-28 अप्रैल की हिंसा में पुलिस और कुकी आदिवासी आमने सामने थे। लेकिन 3 मई को स्थिति बिगड़ गई और इसने जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। कुकी और नागा समुदाय ने 3 मई को राज्य के सभी 10 पहाड़ी जिलों में 'ट्राइबल सॉलिडैरिटी मार्च' यानी 'आदिवासी एकता यात्रा' निकालने का ऐलान किया। मार्च का आयोजन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर ने किया। इस दौरान हिंसा भड़क गई जिसने देखते ही देखते जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि 8 जिलों में मोबाइल इंटरनेट सर्विस सस्पेंड कर दी गई। कर्फ्यू लगा दिया गया। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए। हालात को काबू में करने के लिए पुलिस के साथ-साथ आर्मी और असम राइफल्स को उतारना पड़ा। हालात से भयभीत करीब 10-12 हजार लोग राज्य से पलायन कर चुके हैं।
मणिपुर में हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। इस इतिहास में उसके भूगोल की भी अपनी भूमिका है। ऐसे में वहां के सामाजिक ताने-बाने, बुनावट को समझे बगैर मौजूदा हिंसा की वजह नहीं समझी जा सकती।
बहरहाल, बहुसंख्यक मेइती समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग करता रहा है। समुदाय से आने वाले कई विधायक भी खुलेआम इस मांग का समर्थन करते रहे हैं। पिछले महीने मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह 4 हफ्ते के भीतर मेइती समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग पर केंद्र सरकार को अपनी सिफारिश भेजे। कुकी और नागा मेइती को एसटी का दर्जा दिए जाने का कड़ा विरोध कर रहे हैं।
मेइती बहुसंख्यक हैं इसके बावजूद उनके अंदर असुरक्षा की भावना है। उनका कहना है कि बड़े पैमाने पर म्यांमार और बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासी वहां बस रहे हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ती जा रही है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, म्यांमार से 52000 के करीब शरणार्थी पूर्वोत्तर के राज्यों में बसे हुए हैं। इनमें से मणिपुर में 7800 शरणार्थी हैं। ये तो वे हैं जिन्हें शरणार्थी का दर्जा मिला हुआ है। इसके अलावा भी बड़ी तादाद में म्यांमार और बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी मणिपुर में बसे हुए हैं।
कुकी समुदाय राज्य सरकार की तरफ से कराए जा रहे लैंड सर्वे से नाराज है। ये सर्वे चुराचंदपुर-खोउपुम प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट इलाके में किया गया था। प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट रीजन करीब 490 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है और ये चुराचंदपुर, बिष्णुपुर और नोनी जिलों में फैला हुआ है। कुकी समुदाय की मांग है कि सरकार 1966 के उस आदेश को रद्द करे जिसमें आदिवासी इलाकों को प्रोटेक्टेड/रिजर्व्ड फॉरेस्ट यानी आरक्षित वन घोषित किया गया है। उनका कहना है कि इसके जरिए उनसे उनका जंगल छीना जा रहा है।
कुकी और नगा समुदाय सर्वे को खुद को जंगल से बेदखल किए जाने के रूप में देख रहे हैं। फरवरी में चुराचंदपुर जिले के ही सोंगजन गांव में सरकार ने एविक्शन ड्राइव चलाया था। वहां प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट एरिया में रह रहे लोगों को बाहर कर दिया गया। लोगों ने तब आरोप लगाया था कि उन्हें पहले से कोई नोटिस नहीं दिया गया था।
भाजपा की अगुआई वाले सत्ताधारी गठबंधन में शामिल कुकी पीपल अलायंस ने भी सरकार के इस अभियान को अमानवीय बताते हुए निंदा की थी। मार्च में कुकी समुदाय के सबसे बड़े संगठन कुकी इनपी मणिपुर ने जंगलों से ग्रामीणों को बाहर निकालने के अभियान के खिलाफ शांतिपूर्ण रैली बुलाई थी लेकिन कंगपोकपी जिले में ये हिंसक हो गई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हिंसा में अबतक 54 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा करीब 100 से अधिक लोग जख्मी हुए हैं। मरने वालों में इनकम टैक्स अफसर लेमिनथांग हाओकिप भी हैं। सीआरपीएफ के एक कोबरा कमांडो की भी हिंसा में मौत हुई है। सेना के मुताबिक, अबतक 13 हजार लोगों को सुरक्षित निकालकर आर्मी कैंप पहुंचाया गया है। हालांकि, राज्य सरकार के नवनियुक्त सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने बताया कि 3 मई के बाद से जारी हिंसा में करीब 20 से 30 लोगों की मौत हुई है और 100 से ज्यादा घायल हैं।
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विजय कुमार राय

विजय कुमार राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। साल 2012 से दूरदर्शन के ‘डीडी न्यूज’ से जुड़कर छोटी-बड़ी खबरों से लोगों को रू-ब-रू कराया। उसके बाद कुछ सालों तक ‘कोबरापोस्ट’ से जुड़कर कई बड़े स्टिंग ऑपरेशन के साक्षी बने। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ और ‘नवोत्थान’ के वरिष्‍ठ संवाददाता हैं। इन दिनों देश की सभ्यता-संस्कृति और कला के अलावा समसामयिक मुद्दों पर इनकी लेखनी चलती रहती है।