पाकिस्तान की जबर्दस्त फजीहत

युगवार्ता    22-May-2023   
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हमने पाकिस्तानी विदेश मंत्री को आमंत्रित किया। उन्हें एससीओ से जुड़े मुद्दों पर बात करनी चाहिए थी। लेकिन वह इस पर बात ना करके राजनीति कर रहे थे और भारत की आंतरिक संरचना पर ज्यादा बोल रहे थे जिससे उनकी गंभीरता का पता चलता है। यह कहना था भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का एक इंटरव्यू में। वैसे बिलावल भुट्टो को तो पाकिस्तान में भी गंभीरता से नहीं लिया जाता है तो भारत की क्या ही बात करें। और उसमें भी तब जबकि भारत का विदेश मंत्री इतना अनुभवी हो उसके पास 40 साल का राजनयिक अनुभव हो तो उसके सामने बिलावल एक दूध पीते बच्चे ही साबित हुए।
 एस जयशंकर अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं। इससे पहले भी उन्होंने यूरोप और अमेरिका की नीतियों की खुल करके आलोचना की तथा स्पष्ट रूप से भारत का पक्ष रखा था। जयशंकर ने कहा कि अगर आप अच्छे मेहमान हैं तो हम एक अच्छे मेजबान साबित होंगे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से बिलावल शंघाई सहयोग संगठन के मुद्दों पर बात ना करके जी20 और बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर बात की। यह इस बात का सूचक है कि वह एक अच्छे मेहमान नहीं थे क्योंकि जिस कार्य के लिए आए थे या उन्हें आमंत्रित किया गया था वह वह कार्य न करके भारत के आंतरिक मामलों में ज्यादा हस्तक्षेप करना चाह रहे थे। एससीओ की बैठक के बाद जयशंकर ने अपनी बात साफ शब्दों में रखी जिसमें उन्होंने कहा कि आतंकवाद के पीड़ित और आतंकवाद के साजिशकर्ता एक साथ नहीं बैठ सकते। इस पर बिलावल ने कहा कि पाकिस्तान के बारे में भारत के फेक नैरेटिव से वह काफी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि आपका क्या मतलब है। आतंकवाद को हमें मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। आपके अनुसार एक पीड़ित के रूप में हमें इसके साथ रहना चाहिए। आप न सिर्फ आतंकवाद करते हैं बल्कि कहते भी हैं।
उल्लेखनीय है कि इस बार शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता भारत कर रहा था। इसके लिए इसने जो विषय चुना था वह सिक्योर एससीओ नाम से था। इसमें भारत का उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, रक्षा और आतंकवाद से निपटने और उसमें एक दूसरे के सहयोग के साथ मजबूत करने पर था। भारत ने इस बार उन्नत प्रौद्योगिकी और डिजिटल के बुनियादी ढांचे को बनाने पर भी ध्यान केंद्रित करने की बात अपने एजेंडे में रखी है। 2017 में एससीओ का पूर्ण सदस्य बनने के बाद से, भारत संचार की आधिकारिक भाषा के रूप में ‘अंग्रेजी’ जोड़ने के लिए दबाव डाल रहा है। इस तरह का पहला प्रस्ताव 2020 में रखा गया था। जिसमें भारत और पाकिस्तान को एक समूह के पूर्ण सदस्यों के रूप में शामिल करना आवश्यक हो गया था। इसमें ब्लॉक की आधिकारिक और कामकाजी भाषाओं के रूप में केवल रूसी और मंदारिन थे।
दरअसल शंघाई सहयोग संगठन को जिस रूप में हम आज देख रहे हैं इसकी शुरुआत 1996 में शंघाई 5 नाम से हुई थी। जिसमें रूस और चीन तो अहम रोल में थे ही साथ किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान थे। उस वक्त इसकी आधिकारिक भाषा रूसी और मंदारीन रखी गई थी। लेकिन अब चूंकि 2017 में भारत और पाकिस्तान भी अब इसका हिस्सा बन गये तो भारत चाहता है कि अंग्रेजी भाषा को भी इसमें जोड़ा जाए। इसके लिए भारत अपना पक्ष हर बार मजबूती से रखता रहा है।
शंघाई सहयोग संगठन के मंच से आदत से मजबूर पाकिस्तान ने एक बार फिर से खुरपी के विवाह में हंसुआ के गीत गाना शुरू कर दिया जिसका मुंहतोड़ जवाब दिया विदेश मंत्री एस जयशंकर ने। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगर आप अच्छे मेहमान हैं तो ही भारत अच्छा मेजबान साबित होगा।
इस बार शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता भारत कर रहा था। इसके लिए इसने जो विषय चुना था वह सिक्योर एससीओ नाम से था। इसमें भारत का उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, रक्षा और आतंकवाद से निपटने और उसमें एक दूसरे के सहयोग के साथ मजबूत करने पर था।
भारत के लिए एससीओ की अहमियत
एससीओ के आठ सदस्य देश वैश्विक आबादी के लगभग 42 प्रतिशत और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 25 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। एससीओ भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये एक सशक्त मंच प्रदान करता है। जिनके पास प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है। भारत अपनी आर्थिक साझेदारियों में विविधता लाने के लिये एससीओ देशों के साथ अपने व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने की इच्छा रखता है। दूसरा मसला ऊर्जा से जुड़ा हुआ है। गौरतलब है कि मध्य एशिया में तेल एवं गैस के विशाल भंडार मौजूद हैं और भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने व निरंतर बढ़ाने के लिये इन देशों पर निर्भर है। संगठन भारत को मध्य एशिया के देशों से जुड़ने तथा अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है। 22वें शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षरित ‘समरकंद घोषणा’ कनेक्टिविटी, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित थी। सांस्कृतिक सहयोग के तौर पर एससीओ सदस्य देशों के किसी एक शहर को पर्यटन एवं सांस्कृतिक राजधानी के रूप में नामित करने का निर्णय लिया गया है। इस क्रम में ‘काशी’ (वाराणसी) को एससीओ की पहली सांस्कृतिक राजधानी के रूप में नामित किया गया है। आतंकवाद जैसे मुद्दे पर भी एससीओ के सदस्य देश गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श करते रहे हैं तथा उसे खत्म करने की योजना पर भी कार्य करते रहे हैं। हर संगठन की अपनी महत्ता है और हर देश उस संगठन से अपने काम की चीजें निकलवाना चाहता है भारत शंघाई सहयोग संगठन के द्वारा अपने आर्थिक हितों के साथ साथ अपने पड़ोसी देशों द्वारा जो आंतरिक सीमा सुरक्षा है उसे सही करना चाहता है। तथा इस संगठन द्वारा वह पश्चिमी देशों पर ऊर्जा के क्षेत्र में कम निर्भर रहना चाहता है यह भारत की कूटनीति का हिस्सा है एवं यह भारतीय लोगों के पक्ष में है आज जिस तरह से महंगाई पूरे विश्व में हावी हो चुकी है कई देश दिवालिया होने के कगार पर हैं। मंदी लगभग आ चुकी है। ऐसी स्थिति में अगर भारत आज भी आर्थिक रूप से संभला हुआ है तो उसमें भारत की कूटनीति के साथ प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता शामिल है।
शंघाई सहयोग संगठन से जुड़े कुछ तथ्य
शंघाई सहयोग संगठन एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है। जिसकी स्थापना 2001 में चीन के शंघाई में हुई थी। इसमें आठ सदस्य देश हैं। जिनमें प्रमुख रूप से चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान शामिल हैं। इसके अलावा चार पर्यवेक्षक देश भी हैं। अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया। इसकी आधिकारिक भाषाएं रूसी और मंदारिन हैं। कई सदस्य देशों ने अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में जोड़ने का आह्वान किया है। इसका लक्ष्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे मुद्दों पर सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। यह सभी देश आम सहमति के माध्यम से ही निर्णय लेते हैं और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते है। अब तक एससीओ सदस्यों ने आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद का मुकाबला करने, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और परिवहन तथा संचार जैसे बुनियादी ढांचे के विकास सहित कई मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। भारत को इसमें 2017 में पूर्ण सदस्य के रूप में जोड़ा गया। इसकी अध्यक्षता सदस्य देशों के बीच में घूमती रहती है।
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सौरव राय

सौरव राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
इन्हें घुमक्कड़ी और नई चीजों को जानने-समझने का शौक है। यही घुमक्कड़ी इन्हें पत्रकारिता में ले आया। अब इनका शौक ही इनका पेशा हो गया है। लेकिन इस पेशा में भी समाज के प्रति जवाबदेही और संजीदगी इनके लिए सर्वोपरि है। इन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्नातकोत्तर और फिर एम.फिल. किया है। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ साप्ताहिक में वरिष्‍ठ संवाददाता हैं।