गृह युद्ध के बीच आपरेशन कावेरी

युगवार्ता    05-May-2023   
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सूडान अपने ही दो जनरलों की पदलिप्सा की वजह से गृहयुद्ध का दंश झेल रहा है। ऐसे में वहां फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाल लाने के लिए ऑपरेशन कावेरी के तहत काम किया जा रहा है।

 
sudan crisis

गृह युद्ध झेल रहे सूडान में फंसे भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकाल लाने के लिए ऑपरेशन कावेरी की शुरुआत हो चुकी है। उन्हें जेद्दा के रास्ते स्वदेश लाया जाएगा। अब तक आंकड़ों के मुताबिक सूडान में लगभग 3,000 भारतीय हैं। सूडान की राजधानी खार्तूम में कई स्थानों पर भीषण लड़ाई छिड़ी हुई है। सूडान की आंतरिक सुरक्षा खुद खतरे में आ चुकी है। यहां सेना और एक अर्द्धसैनिक समूह के बीच पिछले कुछ दिनों से जारी भीषण लड़ाई में 400 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। अफ्रीकी व अरब देशों की अस्थिरता कोई नई बात नही है। इससे पहले इथियोपिया में भी ऐसा ही संघर्ष देखने को मिला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समस्या की गंभीरता के मद्देनजर एक उच्च स्तरीय बैठक में सूडान से भारतीयों को सुरक्षित रूप से निकालने की योजना बनाने के निर्देश दिए थे। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सूडान की स्थिति पर हाल ही में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के विदेश मंत्रियों के साथ भी चर्चा की थी। हिंसा प्रभावित सूडान में फंसे भारतीयों को सुरक्षित रूप से निकालने की योजना के तहत भारत ने जेद्दा में दो सी-130जे सैन्य परिवहन विमान और पोर्ट सूडान में आईएनएस सुमेधा को तैनात किया है। विदेश सचिव विनय मोहन क्वाला के मुताबिक अभी तक 17 सौ से 2 हजार भारतीय नागरिकों को सूडान से निकाला गया।

बहरहाल, अरब देश अपने प्राकृतिक भंडारों के लिए जाने जाते हैं। सोना, हीरा, तेल जैसी प्राकृतिक संपदा वहां पर उपलब्ध है लेकिन इसके बावजूद सबसे ज्यादा अस्थिरता इन्हीं देशों में पाई जाती है। इसके वैसे तो कई कारण हैं लेकिन जो मुख्य कारण है वह पश्चिमी देशों का हस्तक्षेप व शिक्षा की कमी एवं गरीबी तथा लोकतंत्र का न होना। अगर कहीं है भी तो वह सिर्फ दिखावे के लिए है। दरसल सूडान भी उन्ही में से एक है। व्यापक विरोध के बाद अप्रैल 2019 में सैन्य जनरलों द्वारा लंबे समय से राष्ट्रपति पद पर काबिज उमर अल-बशीर को उखाड़ फेंकना सूडान में संघर्ष का कारण बना है। इस घटना के कारण सेना और प्रदर्शनकारियों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत वर्ष 2023 के अंत में सूडान में चुनावों का नेतृत्त्व करने के लिये संप्रभुता परिषद नामक एक निकाय की स्थापना की गई। इसका काम था सत्ता के संतुलन को बनाए रखना।

दरअसल सूडान में 2021 से ही सत्ता संघर्ष चल रहा है। आर्मी चीफ अब्देल फतेह अल बुरहान के हाथ में सरकार की कमान है। जबकि रैपिड सपोर्ट फोर्स के मुफिया मोहम्मद हमदान दगालो नंबर दो माने जाते हैं। सूडान इन दो जनरलों की लड़ाई में ही फंसा है। सूडान में दो साल पहले तक नागरिक और सेना की संयुक्त सरकार थी लेकिन साल 2021 में सरकार का तख्ता-पलट कर दिया गया। इसके बाद से ही सेना और रैपिड सपोर्ट फोर्स में ठनी है। सेना ने अक्टूबर 2021 में अब्दुल्ला हमदोक के नेतृत्त्व वाली सरकार को उखाड़ फेंका था।

जैसा की पूर्व में यह बात कही गई की अफ्रीका खनिज संपदा से भरपूर है। उसमें सूडान में पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे बड़ा सोने का भंडार है। साल 2022 में ही सूडान ने 41.8 टन सोने के निर्यात से 2.5 अरब डॉलर कमाए थे। देश के सबसे मुनाफे वाली सोने की खदानों पर पैरामिलिट्री आरएसएफ का कब्जा है, जो अपनी गतिविधियों के लिए सोने को खार्तूम सरकार के साथ पड़ोसी मुल्कों को भी बेचते हैं। सूडान में रैपिड सपोर्ट फोर्स साल 2013 में वजूद में आया। ये अर्धसैनिक बल की तरह है और ये सेना से अलग है।

माना जाता है कि रैपिड सपोर्ट का ताकतवर होना भी सूडान सिविल वॉर की बड़ी वजह है। रैपिड सपोर्ट फोर्स के लड़ाकों ने सूडान के सोने की खानों पर भी कब्जा कर लिया है। जिसपर देश की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। इस संघर्ष में अब तक 413 लोगों की मौत हो चुकी है और 3551 लोग घायल हुए हैं। भीषण संघर्ष के बीच कई देशों ने सूडान की राजधानी से अपने राजनयिकों और नागरिकों को निकाल लिया है और बाकी प्रयासरत हैं। अब सवाल है कि आखिर ऐसा क्या है कि सूडान को लेकर दुनिया भर के पसीने छूट रहे हैं। दरअसल, सूडान की सीमा सात देशों इजिप्ट, इथियोपिया, लीबिया, चाड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, इरीट्रिया और साउथ सूडान से लगती है। कई जानकारों का कहना है कि सूडान की हिंसा पड़ोसी मुल्कों को भी चपेट में ले सकती है, जो पहले से ही आंतरिक संघर्षों में उलझे हुए हैं।

फतेह अल बुरहान और हमदान दगालो अपनी जिद पर अड़े हैं- खासकर सेना और रैपिड सपोर्ट फोर्स के विलय को लेकर। करीब एक लाख सैनिकों वाले रैपिड सपोर्ट फोर्स का अगर सेना में विलय होता है तो नई सेना का नेतृत्व कौन करेगा। इसपर सहमति नहीं बन पाई है। यही नहीं फतेह अल बुरहान चाहते हैं कि उनकी सेना किसी निर्वाचित सरकार को ही सत्ता हस्तांतरित करेगी। लेकिन यहां भी हमदान दगालो से कोई सहमति नही बन पाई है। अफ्रीकी देश सूडान में सेना और पैरामिलिट्री आरएसएफ ने मिलकर काउंसिल गवर्नमेंट बनाई है। सेना की अगुआई जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान के हाथ है। वह ही काउंसिल गवर्नमेंट की अगुआई भी कर रहे हैं। वहीं, पैरामिलिट्री की अगुआई जनरल मोहम्मद हमदान डगलो के हाथ है। जनरल डगलो सरकार में डिप्टी हैं। वहां आरएसएफ के 10 हजार सैनिकों का सेना में विलय होना है, जिसके बाद देश में सिविलियन रूल लागू होगा। विवाद यह है कि विलय के बाद अगुआई कौन करेगा। सेना या पैरामिलिट्री? इस कारण से 15 अप्रैल को फिर से जंग शुरू हुई है। इस बीच कई सीजफायर का ऐलान भी हुआ, लेकिन नाकाम रहा। जब तक जनरल बुरहान या जनरल डगलो बातचीत की टेबल पर नहीं आते, तब तक सूडान की जनता को हिंसा से मुक्ति नहीं मिलने वाली है।

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सौरव राय

सौरव राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
इन्हें घुमक्कड़ी और नई चीजों को जानने-समझने का शौक है। यही घुमक्कड़ी इन्हें पत्रकारिता में ले आया। अब इनका शौक ही इनका पेशा हो गया है। लेकिन इस पेशा में भी समाज के प्रति जवाबदेही और संजीदगी इनके लिए सर्वोपरि है। इन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्नातकोत्तर और फिर एम.फिल. किया है। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ साप्ताहिक में वरिष्‍ठ संवाददाता हैं।