जीवात्मा का परमात्मा से मिलन

20 Jun 2023 14:07:31
इस साल भारत जी-20 समिट की अध्यक्षता एवं मेजबानी कर रहा है, ‘एक विश्व, एक परिवार, एक भविष्य’ के विचार को इस समिट के स्लोगन के रूप में चुना गया है। परंतु यह केवल एक विचार नहीं है, भारत इसे प्राचीन काल से जीता आया है और इसी संस्कृति का दर्शन एवं अनुसरण ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ एवं ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के महान आदर्श सांस्कृतिक स्तम्भों के रूप में किया जा सकता है। इसी विचार धारा और परमार्थ के भाव वाली इस भूमि के एक अभिन्न अंग का नाम योग है।
योग गुरु शिवादित्‍यआज विश्व में शायद ही ऐसा कोई कोना होगा जो योग शब्द से अनभिज्ञ होगा। अपने-अपने मायनों में ही सही, आज हर कोई योग के शब्द को जानता है और व्यक्तिगत रूप से उसके अर्थ के बारे में अपनी समझ रखता है। आम तौर पर योग को लेकर यह समझ है कि ‘योग आसन करने की विधि है’, ‘योग से निरोगी काया मिलती है’, ‘योग मतलब कलाबाजियां करना है’, ‘योग से मोटापा कम होता है’ और यहां तक की ‘योग बजुर्गों एवं संन्यासियों के लिए ही उपयुक्त है’ आदि वाक्यों के रूप में झलकती है, जोकि योग के पूर्ण वास्तविक अर्थ और अनुभव से कोसों दूर है।
योग शब्द का अर्थ
योग शब्द संस्कृत धातु ‘युज’ से बना है - जिसका अर्थ है ‘जोड़ना या मिलाना’। अब आपके मन में स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठना चाहिए कि ‘क्या जोड़ना’? उत्तर है जीवात्मा को परमात्मा से मिलाने या जोड़ने की प्रक्रिया का नाम योग है। या यूं कहें कि अपने वास्तविक स्वरुप को जान लेने की प्रक्रिया का नाम योग है, वह स्वरूप जहां किसी भी प्रकार के द्वंद्व एवं वियोग का पूर्ण अभाव है।
बोल चाल की भाषा में लोग कहते हैं, ‘मैं योग कर रहा/रही हूं या योग का अभ्यास करता हूं/करती हूं।’ यहां अपनाई गई प्रक्रिया और वधिवत रूप से किये गए अभ्यासों को योग का नाम दिया गया है। परंतु योग तो चेतना की परम स्थिति का नाम है। तो इस संदर्भ में योग अपने आप में एक मार्ग है तथा गंतव्य भी।
दरअसल योग की प्रक्रियाओं के अभ्यास से व्यक्ति के शरीर, मन, भाव, एवं चेतना में एक साकारात्मक परिवर्तन होता है जिसमें कुछ समय लगता है। यह एक यात्रा सी प्रतीत होती है और इसी मार्ग को ‘योग मार्ग’ की संज्ञा दी जाती है। इस पर निष्ठा, श्रद्धा एवं अनुशासन से चल रहा व्यक्ति योगी कहलाता है। ऐसे मार्ग से भटके हुए व्यक्ति को भगवत गीता में ‘पथभ्रष्ट’ की संज्ञा दी गई है।
जैसे पांच दिव्यांग व्यक्ति हाथी के शरीर को अलग-अलग जगहों से छू कर उसको रस्सी, स्तम्भ, बड़ी सी दीवार, पंखे या सींग रूपी बताते हैं, ठीक उसी प्रकार से लोग योग को अलग-अलग प्रकार से अनुभव कर उसकी व्याख्या करते हैं। ऐसे में एक भ्रान्ति पैदा होना स्वाभाविक है।
इससे योग मार्ग पर केवल कठिनाई ही उत्पन्न होती है। इसलिए अगर आप योग के सही अर्थ को जानकर उसका अनुभव करना चाहते हैं - तो प्राचीन ग्रंथों की सहायता लेनी चाहिए। श्रीमदभगवद् गीता में योगेश्वर श्री कृष्णा योग को अनेक दृष्टिकोण से अर्जुन को समझाते हैं, आइये उनमें से कुछ को समझें :
1. सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते - सफलता और विफलता में समान व्यवहार, सम भाव ही योग है।
2. योग: कर्मसु कौशलम - कार्य में कुशलता का नाम योग है।
3. योग: पुरातन: उत्तमम रहस्यम - योग सबसे उत्तम और प्राचीन रहस्य है।
महर्षि पतंजलि ने योग एवं योग को प्राप्त करने के मार्ग को बड़ी कुशलता और सटीकता से 196 सूत्रों में बताया है। दूसरे ही सूत्र में उन्होंने बताया -‘योग: चित्त वृत्ति निरोध:’ -चित्त की वृत्तियों पर अंकुश लगा देने का नाम योग है। और इसी को अनुभव करने के लिए बाद के सूत्रों में उन्होंने योग मार्ग के आठ अंगों की व्याख्या की है जिसे अष्टांग योग के नाम से जाना जाता है। यह इस क्रम में हैं-
1. यम - इसके पांच प्रकार हैं : अहिंसा, सत्य, अस्तेय, भ्रमाचार्य, अपरिग्रह।
2. नियम - इसके पांच प्रकार हैं - शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
3. आसन - शरीर की स्थिर और सुखदायी स्थिति को आसन कहते हैं।
4. प्राणायाम - प्राण वायु के प्रवाह का नियंत्रण।
5. प्रत्याहार - इंद्रियों को अंतर्मुखी करके उनके संबंधित विषयों से विमुख करना प्रत्याहार कहलाता है।
6. धारणा - किसी स्थान (मन के भीतर या बाहर) विशेष पर चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है।
7. ध्यान - एकीकृत चित्त वृत्तियों के बीच कोई भी अन्य वृत्ति ना आए, चित्त में निरन्तर उसका ही मनन होता रहे, उसे ही ध्यान कहते हैं।
8. समाधि - जब ध्यान ही ध्येय के आकार में भासित हो और अपने स्वरूप को छोड़ दे तो वह स्थिति समाधि कहलाती है। समाधि की स्थिति में ध्यान और ध्याता का भान नहीं होता, केवल ध्येय रहता है अर्थात् ध्याता, ध्यान तथा ध्येय तीनों की एक सी प्रतीति होती है।
स्वामी शिवानंद के अनुसार, विचार, शब्द और कर्म के बीच में पूर्ण समन्वय या अनुरूपता ही योग है।
इस तरह योग को आप सृजनात्मकता लाने वाला, व्यक्तित्व के गहरे और नए आयाम खोलने वाला अथवा असीम मानव संभानाओं को उजागर करने वाला, जीव और चेतना को ज्ञात कराने वाले विज्ञान एवं कला के रूप में समझ सकते हैें

योग का इतिहास
योग प्रचीनतम है, उतना ही जितनी भारतीय संस्कृति। योग का उल्लेख सबसे पहले वेदों में देखने को मिलता हैं जो कम से कम 4 से 5 हजार वर्ष पूर्व लिखे गए थे। मैं कह रहा हूं लिखे गए थे, बोले नहीं। इतना ही नहीं, हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त हुए पुरातात्विक अवशेषों में भगवान शिव और मां पार्वती के चित्रों का उल्लेख हैं, जहां वह अलग-अलग असानों में बैठ कर ध्यान कर रहे हैं। यह सभ्यता कम से कम 7500 वर्ष पुरानी हैं और यह साबित हो चुका है।
पिछले कई सदियों में अनेक महान संत और विद्वान हुए जिन्होंने योग के ग्रंथों को लिखा और उनकी व्याख्या की ताकि गुरु शिष्य परंपरा में भी उसका लाभ हो सके। भगवान अदि शंकराचार्य और महर्षि पतंजलि ऐसे कुछ महान नाम हैं। योग का उल्लेख उपनिषदों में भी अनेकों बार किया गया है।
योग, स्वास्थ्यन और अनुसंधान
वैसे तो आज कोई शंका नहीं है कि योग से अनेकों स्वास्य्ा ग संबंधी लाभ होते हैं और योग शरीर व मन का रूपांतरण करने में सक्षम है। परंतु फिर भी बहुत से व्यक्ति इसका अनुसरण नहीं करते आप अपने आप से भी यही सवाल पूछें कि मेरा विश्वास और प्रयास योग को अपने जीवन शैली में अपनाने में कितना है। अगर आपके इस विश्वास और प्रयास में कमी है तो नीचे दिए गए बहुत ही उच्च कोटि के अनुसंधान केंद्रों/पत्रिकाओं द्वारा किये गए शोध को आप पढ़ कर इन्हें सुदृढ़ कर सकते हैं :
1. ‘योग फॉर डिप्रेशन: ऐ सिस्टेमेटिक रिव्यु एंड मेटा-एनालिसिस’ (जर्नल: डिप्रेशन एंड एंग्जायटी) : इसमें सिद्ध हुआ कि योग से डिप्रेशन दूर होता है।
2. ‘इफेक्ट्स आॅफ योग आॅन सिम्पटम्स, फिजिकल फंक्शन, एंड साइको-सोशल आउटकम्स इन एडल्ट्स विथ आॅस्टिओआर्थरिटिस : ऐ फोकस्ड रिव्यु’ (जर्नल : अमेरिकन जर्नल आॅफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन) : इस शोध पत्र से पता चलता है कि गठिया से पीड़ित लोगों को योग से उनके शारीरिक दर्द एवं मानसिक साहस और स्वास्थ्य पर बहुत ही साकारात्मक असर पड़ता है एवं रहत मिलती है।
3. योग फॉर क्रोनिक लौ बैक पैन: ऐ रैंडमाईजड ट्रायल (जर्नल: एनल्स आॅफ इंटरनल मेडिसिन) : यहां सिद्ध हुआ कि योग के अभ्यास से कमर दर्द पर विजय पायी जा सकती है।
4. योग फॉर एंग्जायटी एंड डिप्रेशन: ऐ रिव्यु आॅफ पब्लिश्ड रिसर्च एंड इम्प्लिकेशन्स फॉर हैल्थकारे प्रोवाइडर्स
(जर्नल: रोड आइलैंड मेडिकल जर्नल) - यहां सिद्ध हुआ कि योग के अभ्यास से चिंता एवं तनाव दूर होता है।
5. इफेक्ट्स ऑफ योग ऑन ब्लड ग्लूकोस एंड लिपिड प्रोफाइल ऑफ टाइप 2 डायबिटीज पेशेंट्स विथाउट कॉम्प्लीकेशन्स: ऐ सिस्टेमेटिक रिव्यु एंड मेटा-एनालिसिस (फ्रंटियर्स ऑफ स्पोर्ट्स एंड एक्टिव लिविंग जर्नल) यहां सिद्ध हुआ कि योग के अभ्यास से मधुमेह नियंत्रित होता है।
योग एवं उसकी शाखाओं पर शोध और अनुसंधान अब बहुतायत में हो चुका है और नए-नए आयाम हर कुछ महीनों में खुल रहे हैं। जीवन गुणवत्ताअ से लेकर जीन व्यवहार एवं अभिव्यक्ति तक-योग अभ्यास का सब पर सकारात्मक और आश्चर्यजनक प्रभाव पाया गया है। ऐसे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध हुए हैं जिसे पढ़कर आपके मन का सारा संदेह दूर होगा और योग के पथ चलने की प्रेरणा जागेगी।
 
योग गुरु शिवादित्‍य
करिये योग रहिये निरोग
योग चिकित्साि केवल शरीर पर नहीं अपितु मानव अस्तित्व के पांचों स्तरों पर प्रभाव डालती है और व्याधियों को दूर करती है। इससे केवल हुई रोग-व्याधियां ही ठीक नहीं होतीं, होने वाले रोग और व्याधियों का भी शमन होता है। हमारे अस्तित्व के पांच कोष हैं :
1. अन्नमय कोष - हड्डियों , रक्त, मांसपेशियों व अंगों से बना शरीर।
2. प्राणमय कोष - इस शरीर में नाड़ियां हैं जहां प्राण ऊर्जा प्रवाहित होती है अथवा चक्रों का सञ्चालन होता है।
3. मनोमय कोष - मन और विचार से बना शरीर। इसकी तरंगें जीवन के अनुभव बनाती हंै।
4. विज्ञानमय कोष - इस जनम के सभी अनुभव, सीख और कर्म तथा जन्म से लेकर आये हुए संचित कर्मों से बना शरीर- मन को दिशा देता है।
5. आनंदमय कोष - आनंद से भरपूर ईश्वर के बिलकुल निकट-ज्ञान स्वरुप।
अगर योग से अपने शरीर का सफल इलाज करना चाहते हैं तो इन पांचों आयामों को छूना आवश्यक है।
मधुमेह रोग
पंचकोष चिकित्सा मॉडल के आधार पर मधुमेह विकार के लिए योगाभ्यास की सूची निम्नानुसार है:
अन्नमय कोष (शारीरिक कोष):
मधुमेह रोगियों के लिए पांच आसन बताये गए हैं- 1. सूर्य नमस्कार, 2. त्रिकोणासन, 3. वीरभद्रासन, 4. पश्चिमोत्तानासन, और 5. बालासन।
प्राणमय कोष (प्राणिक कोष):
मधुमेह रोगियों के लिए पांच प्राणायाम बताये गए हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. कपालभाति प्राणायाम, 2. अनुलोम-विलोम प्राणायाम, 3. उज्जायी प्राणायाम, 4. भस्त्रिका प्राणायाम, और
5. नाड़ी शोधन प्राणायाम।
मनोमय कोष (मानसिक कोष):
1. योग निद्रा (योगिक सोना), 2. प्रत्याहार (इन्द्रियों का विलंबन), 3. मणिपुर चक्रध्यान, 4. मंत्र जप (जप), और 5. मानसिक शुद्धि।
विज्ञानमय कोष (बुद्धियुक्ति कोष):
1. स्वाध्याय (स्वयं अध्ययन और आत्मचिंतन), 2. प्राणायाम का विज्ञान, 3. योग दर्शन और तत्त्वज्ञान (योग दर्शन और तत्त्वों का अध्ययन), 4. संयम और संयोग (धारणा, ध्यान और समाधि), और 5. स्वाध्याय के आधार पर स्वयं पर शुद्धि (स्वयं प्रत्याशा)।
आनंदमय कोष (आनंद कोष):
1. भक्ति योग (भक्ति की पथशाला), 2. कीर्तन (देवी स्तुति और आराधना), और 3. संपूर्णता और समर्पण की अभ्यास (आभार और पूर्णता के अभ्यास)
 
योग गुरु शिवादित्‍य पुरोहित
मोटापा रोग
पंचकोष मॉडल के आधार पर मोटापा विकार के लिए योगाभ्यास की सूची निम्नानुसार है:
अन्नमय कोष (शारीरिक कोष): मोटापा रोगियों के लिए नौ आसन बताये गए हैं- 1. योगिक जॉगिंग, 2. सूक्ष्म व्यायाम-चक्की चालन, कष्ट तक्षण आसन, इंजन दौड़, 3. कदम ताल, 4. सूर्य नमस्कार, 5. त्रिकोणासन, 6. वीरभद्रासन, 7. पश्चिमोत्तानासन, 8. उत्कटासन, और 9. वामन धौति और लघु शंख प्रक्षालन।
प्राणमय कोष (प्राणिक कोष): मोटापा रोगियों के लिए चार प्राणायाम बताये गए हैं- 1. कपालभाति प्राणायाम, 2. अनुलोम-विलोम प्राणायाम, 3. भस्त्रिका प्राणायाम, और 4. सूर्य भेदन प्राणायाम।
मनोमय कोष (मानसिक कोष): 1. योग निद्रा, 2. प्रत्याहार, 3. मणिपुर चक्रध्यान, और 4. मंत्र जप।
विज्ञानमय कोष (बुद्धियुक्ति कोष): 1. स्वाध्याय (स्वयं अध्ययन और आत्मचिंतन), 2. योग दर्शन (पतंजलि योग सूत्र और योग के सिद्धांतों का अध्ययन), 3. संयम (धारणा, ध्यान और समाधि), और 4. योगिक शिक्षण का अभ्यास (योगिक गुरु के प्रशिक्षण और मार्गदर्शन में शिक्षा)
आनंदमय कोष (आनंद कोष): 1. सत्संग (सत्संगति और संगठन की कला), 2. भजन-कीर्तन (देवी स्तुति और आराधना), और 3. संपूर्णता और समर्पण का अभ्यास (आभार और पूर्णता के अभ्यास)।
हृदय रोग
पंचकोष मॉडल के आधार पर हृदयरोग (कार्डियोवास्कुलर विकार) के लिए योगाभ्यास की सूची निम्नानुसार है:
1. अन्नमय कोष (शारीरिक कोष): हृदय रोगियों के लिए आठ आसन बताए गए हैं- 1.हलकी योगिक जॉगिंग, 2. सूक्ष्म व्यायाम-कदम ताल, चेयर सूर्य नमस्कार, 3. वीरभद्रासन, 4. अर्ध चक्रासन, 5. अर्ध कटी चक्रासन, 6. गौ मुखासन, 7. उष्ट्रासन, और 8. मत्स्यासन
2. प्राणमय कोष (प्राणिक कोष): हृदय रोगियों के लिए चार प्राणायाम बताए गए हैं- 1. धीमा कपालभाति प्राणायाम, 2. अनुलोम-विलोम प्राणायाम, 3. चंद्र भेदन प्राणायाम, और 4. भ्रामरी प्राणायाम
3. मनोमय कोष (मानसिक कोष): 1. योग निद्रा, 2. मंत्र जप, और 3. अनाहत चक्र ध्यान।
4. विज्ञानमय कोष (बुद्धियुक्ति कोष): 1. स्वाध्याय (स्वयं अध्ययन और आत्मचिंतन), 2. योग दर्शन (पतंजलि योग सूत्र और योग के सिद्धांतों का अध्ययन), 3. संयम (धारणा, ध्यान और समाधि), और 4. योगिक शिक्षक की अभ्यास (योगिक गुरु के प्रशिक्षण और मार्गदर्शन में शिक्षा)।
5. आनंदमय कोष (आनंद कोष): 1. सत्संग (सत्संगति और संगठन की कला), 2. कीर्तन (देवी स्तुति और आराधना), और 3. संपूर्णता और समर्पण की अभ्यास
थायरॉइड रोग
पंचकोष मॉडल के आधार पर थायरॉइड विकार के लिए योगाभ्यास की सूची निम्नानुसार है:
1. अन्नमय कोष (शारीरिक कोष): थायरॉइड रोगियों के लिए पांच आसन बताए गए हैं- सर्वांगासन, मत्स्यासन, हलासन, शवासन, और उष्ट्रासन।
2. प्राणमय कोष (प्राणिक कोष): थायरॉइड रोगियों के लिए चार प्राणायाम बताए गए हैं- उज्जायी प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम, और कपालभाति प्राणायाम।
3. मनोमय कोष (मानसिक कोष): योग निद्रा, ध्यान, मंत्र जप, और विशुद्धि चक्र ध्यान।
4. विज्ञानमय कोष (बुद्धियुक्ति कोष): स्वाध्याय (स्वयं अध्ययन और आत्मचिंतन), प्रार्थना और आध्यात्मिकता (ईश्वर प्रार्थना और धार्मिकता), और योग सूत्र और प्रवचन (पतंजलि योग सूत्र और योग के विचार)।
5. आनंदमय कोष (आनंद कोष): सत्संग (सत्संगति और संगठन की कला), भजन-कीर्तन (देवी स्तुति और आराधना), संगीत (राग और ताल पर आधारित योगिक संगीत), और संपूर्णता और समर्पण की अभ्यास (आभार और पूर्णता के अभ्यास)।

शिवादित्‍य पुरोहित 
पीठ दर्द
पंचकोष मॉडल के आधार पर पीठ दर्द के लिए योगाभ्यास की सूची निम्नानुसार है:
1. अन्नमय कोष (शारीरिक कोष): पीठ दर्द के रोगियों के लिए पांच आसन बताए गए हैं- भुजंगासन, शलभासन, मार्जरी आसन, बालासन, और वक्रासन।
2. प्राणमय कोष (प्राणिक कोष): पीठ दर्द के रोगियों के लिए तीन प्राणायाम बताए गए हैं- अनुलोम-विलोम प्राणायाम, शीतली प्राणायाम, और भ्रामरी प्राणायाम।
3. मनोमय कोष (मानसिक कोष): प्रत्याहार, और सुशांति ध्यान।
4. विज्ञानमय कोष (बुद्धियुक्ति कोष): स्वाध्याय (स्वयं अध्ययन और आत्मचिंतन), योग सूत्र और प्रवचन (पतंजलि योग सूत्र और योग के विचार)
5. आनंदमय कोष (आनंद कोष): सत्संग (सत्संगति और संगठन की कला), और भजन-कीर्तन (देवी स्तुति और आराधना)।
स्वास्थ्य के इन पांच आयामों को योग के आलावा बह कुछ और पद्धतियों से अपनाया जा सकता है। नेचुरोपैथी योग से संबंधित है - इसके मूलभूत सिद्धांत योग की शैली से मेल खाते हैं अथवा उनके पूरक भी है। नेचुरोपैथी प्रकृति के तत्त्व-जल मिटटी वायु एवं रौशनी को आधार बनाकर चिकित्सा करती है। आहार एवं नाड़ी विज्ञान पर भी इसका बहुत अधिक बल है।
आइये कुछ ऐसी पद्धतियों के बारे में जानें
1. आहार
उपरोक्त पंचकोश आधारित चिकित्सा सही आहार के बिना अधूरी है। कहते हैं- ‘जैसा अन्न, वैसा मन’ यह बहुत सही है, क्योंकि जो भोजन हमारे स्नायु तंत्र के माध्यम से हमारे शरीर पर सीधा असर डालता है। पोषण विज्ञान और शरीर की अंतरिक सफाई के बिना रोग से निजात नहीं मिल सकतो सभी चिकित्सा में इसका होना आवश्यक है। इसके लिए आप सलाह लें और सही आहार शैली को अपनाएं ।
2. एक्यूप्रेसर
यह प्राचीन कला है जो शरीर के स्नायु तंत्र और नाड़ियों को आधार बना कर काम करती है। शरीर में स्थित अलग-अलग ऊर्जा बिंदुओं को दबा कर उन्हें सक्रिय किया जाता है जो संबंधित अंग तो ऊजार्वान कर रोग को दूर करती है। इससे लाभ अत्यधिक शीघ्रता से होता है।
3. हिमालयन साउंड थेरेपी
ध्वनि को आधार बना कर यहां प्राचीन पद्धति से शरीर व मन जनित रोगों को जड़ से भगाने में अत्यंत कारगर है। इससे शरीर के इंफ्लमैशन और दर्द में बहुत जल्दी कमी आती है और मन अति सरलता से ध्यानस्त हो जाता है।
(लेखक अल्टरनेटिव मेडिसिन एंड होलिस्टिक वैलनेस कोच हैं।) 
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