शेखर जोशी के इस कथा समग्र में कुल छप्पन कहानियां हैं। इस कहानी संग्रह को नवारुण प्रकाशन ने पाठ की शुद्धता का पूरा ख़्याल रखते हुए छापा है। आजादी के बाद हमारा परिदृश्य जितना चमकीला और आभासी होता गया है, उसके यथार्थ को जानने-समझने में शेखर जोशी की ये कहानियां मददगार साबित होंगी।

शेखर जोशी नयी कहानी के दौर के महत्वपूर्ण कथाकार थे। उनके जीवनकाल में ही यह तैयारी चल रही थी कि उनकी लिखी सारी कहानियों का एक संग्रह हो। लेकिन उस संग्रह का छपकर आना मृत्योपरांत ही संभव हो सका। नैसर्गिक प्रतिभा के धनी कथाकार शेखर जोशी नई कहानी के दौर में अमरकांत के साथ प्रचारित धड़े का प्रतिमुख माने जाते थे। कथा समग्र (शेखर जोशी की समग्र कहानियां) को नवारुण प्रकाशन ने पाठ की शुद्धता का पूरा ख़्याल रखते हुए छापा है। इस कथा समग्र में कुल छप्पन कहानियां हैं। भले पहली कहानी ‘राजे खत्म हो गए’, दूसरी कहानी ‘आदमी और कीड़े’ और तीसरी कहानी ‘दाज्यू’ ने कहानीकार के रूप में उन्हें अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया हो। लेकिन यहां दाज्यू, कथा-व्यथा और किं करोमि जनार्दन को क्रम से रखा गया है। कल्पना में प्रकाशित 'कोसी का घटवार' को तो 'उसने कहा था' की तरह आज भी क्लासिक कहानी माना जाता है, वह अनुक्रम में चौथे स्थान पर है। समग्र में कहानियों का क्रम प्रकाशन वर्ष के आधार पर होना चाहिए। इससे पाठक को कहानीकार के विकास-क्रम का पता चलता।
नयी कहानी के दौर में कामगारों-कारखानों की दुनिया पर बहुत कम कहानियां लिखी जा रही थीं। इस कमी को शेखर जोशी ने पूरा किया था। उन्होंने श्रमिकों के साथ काम किया था। इसका प्रभाव उनकी रचनात्मकता पर भी पड़ा। ‘बदबू’ कहानी से प्रभावित हो बालकृष्ण राव ने 'टाइम्स आफ इंडिया में एक लेख लिखा था। फिर उसी कड़ी में शेखर जोशी ने 'मेंटल', 'जी हजूरिया', 'गलता लोहा' जैसी श्रमिक और शिल्प के रिश्तों, संघर्षों और जिजीविषा की कहानियां लिखीं। उसी दौर में 'कोसी का घटवार' कहानी लिखी गई थी। उनके पहले प्रकाशित संग्रह का नाम भी 'कोसी का घटवार' ही है।
वे उत्तराखंड में जन्मे, पले और बढ़े थे, इस कारण उनकी कहानियों में वहां की स्मृतियां भले दर्ज हैं, लेकिन यह स्मृति भावुकता और रोमान से मुक्त है। पहाड़ से उन्हें इतना लगाव था कि एक अखबार में ‘पर्वतीय जन विकास समिति’ की बैठक की सूचना छपी देखी, तो वहां वे साइकिल से जा पहुँचे। वहीं पर कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पी.सी. जोशी से उनका मिलना हुआ। नंद किशोर नौटियाल से भी पहली मुलाकात वहीं पर हुई। उस समय समिति की पत्रिका ‘पर्वतीय जन’ का संपादन नौटियाल किया करते थे। शेखर जोशी भी उससे जुड़े और चंद्रकांत नाम से पत्रिका में टिप्पणियां लिखने लगे। एक वार्षिकांक की योजना बनाते हुए नौटियाल ने कहा कि तुम कहानी लिखते हो, होटल वर्कर पर एक कहानी लिखो। तब उन्होंने ‘दाज्यू’ कहानी लिखी जो पत्रिका के वार्षिकांक में प्रकाशित हुई। इस कहानी की प्रशंसा कॉमरेड पी.सी. जोशी तक ने की थी।
पुस्तक : कथा समग्र (शेखर जोशी की समग्र कहानियां)
लेखक : शेखर जोशी
प्रकाशन: नवारुण, सी-303, जनसत्ता अपार्टमेंट्स,
सेक्टर 9, वसुंधरा, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
मूल्य : 575 रुपये
1955 में वे चार साल का प्रशिक्षण प्राप्त कर हिंदी साहित्य के गढ़ इलाहाबाद पहुँचे, उसी शहर में उन्हें सैन्य कारखाने में नौकरी मिली। वहीं उन्हें फिर पी.सी. जोशी मिले और उनका प्रभाव ही था कि वे प्रगतिशील मूल्यों में विश्वास करने लगे। 1997 में पहल सम्मान लेने के अवसर पर इलाहाबाद में उन्होंने अपने बारे में कहा था कि 'मेरा यह परिवेश जहां एक ओर अपार प्राकृतिक सौंदर्य, गीत-संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों से समृद्ध था, वहीं मेरे चारों ओर निपट गरीबी, दैन्य और मानवीय शोषण का जाल भी फैला हुआ था जिसे कोई संवेदनशील व्यक्ति अनदेखा नहीं कर सकता... मैं कामना करता हूँ कि मेरे पात्र अपने वास्तविक यथार्थ संदर्भों में ही स्वीकार किए जाए। मेरे लेखन का आधार मेरे चारों ओर बिखरा हुआ यथार्थ जीवन रहा है।' शायद यही कारण रहा होगा कि उनकी कहानियों में पहाड़ का सौंदर्य और प्राकृतिक सुषमा सहज रूप में नहीं मिलती।
इस कथा-समग्र की बेहतरीन भूमिका नवीन जोशी ने लिखी है। भूमिका के अंत में वे लिखते हैं कि उनकी कहानियां शब्दों से क्रांति नहीं करतीं, उनमें कृत्रिमता नहीं है, वे चुपचाप पाठक के मन में उथल-पुथल मचा जाती हैं। ले-आउट डिजाइनर विजेंद्र एस. विज से लेकर स्वर्गीय छायाकार प्रोफेसर गार्डन सी. रोडरमल तक को उन्होंने किताब के पहले पन्ने पर याद किया है। साथ ही कौन-सी कहानी कब और कहां प्रकाशित हुई हैं, इसे भी देने का प्रयास किया गया है। आजादी के बाद हमारा परिदृश्य जितना चमकीला और आभासी होता गया है, उसके यथार्थ को जानने-समझने में शेखर जोशी की ये कहानियां मददगार साबित होंगी।