साधारण प्रेम कहानी में ‘बवाल’

युगवार्ता    09-Aug-2023   
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फिल्म 'बवाल' मध्यवर्ग के जीवन में आने वाले बवाल को दिखाती है, जो मध्यवर्गीय समाज के लोग स्वयं बुनते हैं एवं उसी में फंसकर छटपटाते रहते हैं। फिल्म एक सीधी-सादी कहानी कहते हुए बड़ा संदेश देती है।

बवाल सिनेमा
फिल्म 'बवाल' की कहानी अज्जू भैया ऊर्फ अजय दीक्षित की है। वह एक स्कूल में इतिहास का अध्यापक है लेकिन विषय से संबंधित उसे किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं होती। जिससे साफ पता चलता है कि वह किसी अन्य की मदद से अध्यापक के पद पर नियुक्त हुआ है। वह झूठ के बल पर अपनी प्रतिष्ठा बनाता है जिससे सभी लोग उसका सम्मान करें। वह अध्यापक से अधिक अभिनेता का जीवन जीता है जिस कारण उसकी चर्चा बच्चों से लेकर अध्यापकों एवं गली-मोहल्ले में सदैव बनी रहती हैं।
उसका विवाह निशा नाम की लड़की से होता है। वह पढ़ाई में अव्वल दर्जे की विद्यार्थी होती है, परन्तु अजय का दिखावटी सरल स्वभाव उसे भ्रमित कर देता है। दोनों विवाह के बंधन में बंध जाते हैं। विवाह के तुरंत बाद निशा को मिर्गी का दौरा आता है जिस कारण अजय के मन में निशा के लिए घृणा उत्पन्न हो जाती है और वह निशा को पत्नी वाला सम्मान कभी न देने का विचार करता है।
अजय और निशा के बीच इतनी दूरियां होने के बावजूद भी कभी अजय तलाक लेने का फैसला नहीं लेता जिसकी सबसे बड़ी वजह फिर से उसका सामाजिक सम्मान बनता है। इस सामाजिक ओहदे को बचाने की खातिर वह निशा को घर से बाहर जाकर न तो नौकरी करने की आजादी देता है और ना ही अपने साथ कहीं घुमाने ले जाता है। यह सब निशा जैसी लड़की के लिए असहनीय होता है।
दूसरी ओर अजय स्कूल में विधायक जी के लड़के पर हाथ उठा देता है जिसके बाद स्कूल में उसके अध्यापन को लेकर जांच का फैसला लिया जाता है। इस अन्तराल में अजय अपनी इमेज को बनाये रखने के लिए फिर से एक नया उपाय सोचता हैं। वह द्वितीय विश्व युद्ध के पाठ को उसकी जीवन्त जगह से पढ़ाने का प्रस्ताव रखता हैं। जिसके लिए वह द्वितीय विश्व युद्ध से संबंधित जगहों का भ्रमण करने के लिए विदेश की यात्रा करता हैं। यह यात्रा अजय के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाती है। इस यात्रा के बाद एक ओर अजय अपनी पत्नी निशा के करीब आता है, वहीं दूसरी ओर उसे अपनी गलतियों का भी एहसास होता है।
अज्जू के रूप में वरुण धवन का अभिनय अच्छा रहा है। उन्होंने मध्यवर्ग के ऐसे किरदार को परदे पर जीवंत किया है, जो ताउम्र गलतफहमी और झूठी अकांक्षाओं को जीता है। इस झूठे चरित्र को जीने में वह अपना अस्तित्व खो देता है। अपने दिखावटी जीवन को जीने में वह अपने साथ-साथ अपने सम्पर्क के लोगों पर भी नकारात्मक प्रभाव छोड़ देता है।
निशा के रूप में जाह्नवी कपूर का किरदार पढ़ी-लिखी एवं जीवन को सकरात्मक तरीके से जीने वाली लड़की का है। लेकिन पति का दिखावटीपन उसके जीवन व अस्तित्व को झकझोरता हुआ दिखाई देता है। निशा का मिर्गी की बीमारी से ग्रसित होना उसके पति में हीन भावना को बढाता है। जिस कारण वह निशा से दूरी बना लेता है। एक ही घर में रहने के बावजूद दोनों के संबंधों में दूरियां बनी रहती हैं।
अजय दीक्षित के पिता जी बेहद सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं, जो अपने बच्चों की खुशी के लिए तमाम प्रयास करते हैं। अजय के विदेश घूमने की रकम अदा करना भी उनके इन्ही प्रयासों का परिणाम होता है। वे एक ऐसे भारतीय पिता का फर्ज निभाते हुए नजर आते हैं, जो संतान की तमाम गलतियों के बावजूद उनके भविष्य को सुखमय बनाने का प्रयास करता है। आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां फिल्म ‘बवाल’ के किरदार अजय दीक्षित की स्थिति को सटीक रूप में प्रस्तुत करती हैं। जो सामान्य जीवन में अपने आप को सबसे बेहतरीन दिखाने की होड़ में अनेक मुसीबतों को दावत देता हैं। अजय के जीवन के सभी बवाल उसकी अकर्मठता के कारण उत्पन्न होते हैं। जिसे सुधारने की बजाय अपने संपर्क के सभी लोगों पर इसका इल्जाम डालता रहता है।
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संगीता झा

संगीता झा, फिल्‍म समीक्षक  
आप दिल्‍ली विश्‍वविघालय में हिंदी साहित्‍य के शोधार्थी हैं। फिल्‍म समीक्षा लेखन में आपकी विशेष रूचि है। आप पिछले तीन सालों से युगवार्ता पत्रिका के लिए नियमित लिख रही हैं।