कार्बन उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता

18 Jan 2024 16:55:55
सौरव राय
विकसित देश जिन्होंने वास्तव में पर्यावरण का दोहन कर आज उसे इस स्थिति में पहुंचादिया है। आज भी उस तरह से काम नहीं कर रहे जैसे करना चाहिए। वे विकासशील देशों पर यह दबाव डालरहे हैं कि वे कार्बन उत्सर्जन कम करें। जबकि आंकड़े साफ बताते हैं कि अभी भी वैश्विक स्तर पर सबसेज्यादा कार्बन उत्सर्जन विकसित देश ही कर रहे हैं।
 
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एक छोटे से हिस्से द्वारा प्रकृति काबेरहमी से दोहन करने की कीमतपूरी मानवता को चुकानी पड़ रहीहै। खासकर ग्लोबल साउथ केनिवासियों को। कुछ लोगों का स्वार्थदुनिया को अंधकार में ले जा रहा है। यह न केवलउनके लिए खतरे की घंटी है बल्कि पूरी दुनिया केलिए यह एक गंभीर संकट है। उक्त बातें प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी ने सीओपी-28 में अपने संबोधन केदौरान कही। सीओपी 28 का आयोजन संयुक्तअरब अमीरात की अध्यक्षता में 30 नवंबर से12 दिसंबर तक हुआ। प्रधानमंत्री ने सभी देशोंसे भारत की ग्रीन क्रेडिट पहल में शामिल होनेका आह्वान किया। साथ ही विकसित देशों कोहरित जलवायु कोष और अनुकूलन कोष के प्रतिउनकी प्रतिबद्धताओं कि भी याद दिलाई। प्रधानमंत्रीने भारत में 2028 में होने वाले वार्षिक शिखरसम्मेलन के 33 वें संस्करण की मेजबानी करनेकी पेशकश की। वैसे तो भविष्य में सीओपी कहांहोगा इसके लिए स्थान केवल दो साल पहले हीतय किए जाते हैं। यदि भारत शिखर सम्मेलनकी मेजबानी करता है तो यह 2002 के बाददूसरी बार होगा, जब उसने 8वें संस्करण कीमेजबानी की थी। पहले यह कार्यक्रम छोटे स्तरपार आयोजित किया जाता था। जिसमें केवलमंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ही शामिल होते थे।

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कुछ लोगों का स्वार्थ दुनियाको अंधकार में ले जा रहा है।यह न केवल उनके लिए खतरेकी घंटी है बल्कि पूरी दुनियाके लिए यह एक गंभीर संकट है। 
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विकसित देशोंको 2050 से पहले कार्बन स्पेस खाली कर देनाचाहिए। इसके साथ ही उन्होंने दुनिया के देशोंको भारत की "ग्रीन क्रेडिट पहल" में शामिलहोने के लिए प्रेरित किया। पीएम नरेंद्र मोदी नेकहा, ह्लमैंने हमेशा महसूस किया है कि कार्बनक्रेडिट का दायरा बहुत सीमित है। एक तरह सेयह फिलॉसफी व्यावसायिक तत्व से प्रभावितहै। मैंने कार्बन क्रेडिट की व्यवस्था में सामाजिकउत्तरदायित्व की भावना की बड़ी कमी देखी है।हमें समग्र रूप से एक नई फिलॉसफी पर जोरदेना पड़ेगा। वही ग्रीन क्रेडिट की नींव है।ह्लकार्बन उत्सर्जन में 45 फीसद की कमी लानेका संकल्प लेने का आह्वान करते हुए प्रधानमंत्रीने वन अर्थ, वन फैमिली, वन μयूचर पर जोरदिया। उन्होंने कहा कि वैश्विक परिदृश्य कोदेखते हुए सबके हितों की सुरक्षा बहुत जरूरी है।
पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों के बीच हमें सफलहोना ही होगा। उन्होंने ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिवकी भी वकालत की और कहा कि 2030 तककार्बन उत्सर्जन घटाने पर तत्परता से काम किएजाने की जरूरत है। सभी देशों को एक-दूसरेका साथ देना चाहिए। पीएम मोदी ने यूएई औरभारत के रिश्तों का जिक्र करते हुए कहा किदोनों देशों की साझेदारी आने वाले दिनों में अहमभूमिका निभाएगी। प्रधानमंत्री ने 21 घंटे के अपनेप्रवास के दौरान सात बड़ी बैठकों में भाग लिया।
पीएम मोदी ने ग्रीन क्रेडिट योजना को"गैर-व्यावसायिक" बताया, पिछले अक्टूबर मेंपर्यावरण मंत्रालय की एक अधिसूचना में इसयोजना को रेखांकित करते हुए इसे "अभिनवबाजार-आधारित तंत्र के रूप में वर्णित कियागया था। प्रधानमंत्री मोदी जो अपनी एक दिवसीययात्रा में तीन सार्वजनिक कार्यक्रमों का हिस्सा थे,ने सीओपी-26 में ग्लासगो में भारत की सकलघरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 45 प्रतिशतकी कटौती करने की भारत की प्रतिबद्धताओंको रेखांकित किया। 2030 तक जीवाश्म ईंधन50 प्रतिशत तक और 2070 तक शून्य करनेका भी लक्ष्य रखा। उन्होंने सीओपी-28 द्वाराऔर क्षति कोष की मंजूरी का स्वागत कियाजिसमें अब तक कम से कम 500 मिलियनडॉलर की वित्तीय प्रतिबद्धताएं देखी गई हैं।
सीओपी मेजबान यूएई द्वारा घोषित 30 अरबडॉलर के जलवायु निवेश कोष का स्वागत करतेहुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सभी देशों कोजलवायु वित्त पर एक नए लक्ष्य को अंतिम रूपदेना चाहिए। इसे न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइडगोल (एनसीक्यूजी) कहा जाता है। यह एक नईजलवायु वित्त प्रतिबद्धता पर चल रही बातचीतको संदर्भित करता है। जिसे विकसित देशों कोविकासशील देशों को जीवाश्म ईंधन से अलगकरने में सहयोग के रूप में देना होता है। 2009में निर्धारित प्रारंभिक लक्ष्य, ग्रीन क्लाइमेट फंड(जीसीएफ) के माध्यम से विकासशील देशों कोप्रति वर्ष लगभग 100 बिलियन डॉलर हस्तांतरितकरना था। लेकिन हकीकत यह है कि इस किश्त काकेवल एक छोटा सा अंश ही वास्तव में दिया गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने साफ तौर पर कहा किबहुपक्षीय विकास बैंकों को यह सुनिश्चित करनेके लिए काम करना चाहिए कि विकासशील देशोंको किफायती वित्त उपलब्ध कराया जाए औरविकसित देशों को 2050 से पहले अपने कार्बनउत्सर्जन को "खत्म" करना चाहिए। प्रधानमंत्रीने ग्रीन क्रेडिट पहल के माध्यम से वैश्विकसहयोग के लिए महत्वपूर्ण तंत्र की रूप रेखातैयार करके सीओपी-28 में दूरदर्शिता का प्रदर्शनकिया। ग्लासगो की तरह, स्थायी जीवन शैली परफिर से जोर देना, पर्यावरण के प्रति जागरूकजीवन जीने का आह्वान है। 2028 में भारत मेंसम्मेलन की मेजबानी का प्रस्ताव देश के लिएग्लोबल साउथ और जलवायु न्याय के मुद्दों कोकेंद्र में रखने का एक अवसर है जैसा कि भारतने अपने जी-20 प्रेसीडेंसी के साथ किया था।
सीओपी 28 में प्रधानमंत्री का संबोधन साफतौर पर बता रहा है कि भारत पर्यावरण को लेकरअति गंभीर है लेकिन विश्व के उन देशों को इसपरएक जुट होकर एक सकारात्मक फैसला करनाहोगा। क्योंकि यह देखा गया है कि विकसित देशजिन्होंने वास्तव में पर्यावरण का दोहन कर आजउसे इस स्थिति में पहुंचा दिया है। आज भी उसतरह से काम नहीं कर रहे जैसे करना चाहिए। वेविकासशील देशों पर यह दबाव डाल रहे हैं किवे कार्बन उत्सजन कम करें। जबकि आंकड़े साफबताते हैं कि अभी भी वैश्विक स्तर पर सबसेज्यादा कार्बन उत्सर्जन विकसित देश ही कर रहे हैं।
विदेश सचिव विनय क्वात्रा के मुताबिकप्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान कई शीर्ष नेताओंके साथ बैठकें हुईं। प्रधानमंत्री की तीन बैठकेंसीओपी 28 से इतर आयोजित हुईं। क्वात्रा नेबताया कि ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिव की शुरूआतदो देशों और यूरोपीय संघ के साझा प्रयासों केतहत की गई है। विदेश सचिव ने बताया कि पीएममोदी ने स्वीडन, फ्रांस, इस्राइल और मोजाम्बिकके राष्ट्राध्यक्षों के साथ भी बातें कीं।
सीओपी-28 क्यों महत्वपूर्ण है?
 आशा है कि सीओपी-28 दीर्घकालिकवैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्रीसेंटीग्रेट, तक सीमित रखने के लक्ष्य कोजीवित रखने में मदद करेगा। 2015 मेंपेरिस में लगभग 200 देशों ने इस परसहमति व्यक्त की थी।
 संयुक्त राष्ट्र के जलवायु निकाय,इंटरगवर्नमेंटल पैनल आॅन क्लाइमेटचेंज (आईपीसीसी) के अनुसार,जलवायु परिवर्तन के सबसे हानिकारकप्रभावों से बचने के लिए 1.5 डिग्रीसेंटीग्रेट लक्ष्य महत्वपूर्ण है।
 पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना मेंदीर्घकालिक वार्मिंग वर्तमान में लगभग1.1 डिग्री सेंटीग्रेट या 1.2 डिग्रीसेंटीग्रेट है । यह उस अवधि में बड़ाजब मनुष्यों ने बड़े पैमाने पर जीवाश्मईंधन जलाना शुरू किया था।
 हालाँकि, हाल के अनुमानों से पताचलता है कि दुनिया वर्तमान में 2100तक लगभग 2.4 डिग्री सेंटीग्रेट से 2.7डिग्री सेंटीग्रेट वार्मिंग की राह पर है,हालाँकि सटीक संख्या अनिश्चित है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है किपरिणामस्वरूप, 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट कीसीमा को पहुंच में रखने की गुंजाइश"तेजी से कम होती जा रही है’।
- नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री
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