राजनीति से परे भारत रत्‍न सम्‍मान

युगवार्ता    19-Feb-2024   
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भारत रत्न के सम्मान पर इससे पहले कभी इतनी चर्चा नहीं हुई थी जितनी आज हो रही है। भारत रत्न सम्मान स्वयं चर्चा में है। यह चर्चा समाज में है। मीडिया में है। संसद में है। जिन राजनीतिक नेताओं को इस वर्ष भारत रत्न का सम्मान मिला है, वे संसदीय लोकतंत्र के मानक हैं। उन्हें सम्मान देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक लोकतंत्र की जड़ें गहरी की हैं।

लालकृष्‍ण आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, पीवी नरसिम्‍हा राव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा, यह हमारी सरकार का सौभाग्य है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है। यह सम्मान देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है। इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिन्हा राव को भारत रत्न का सम्मान घोषित करते हुए कहा कि वे एक प्रतिष्ठित विद्वान और राजनेता के रूप में विभिन्न पदों पर रहते हुए देश की भरपूर सेवा की। उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने की राह दिखाई। इसी क्रम में तीसरा नाम डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन का है। वे मशहूर कृषि वैज्ञानिक थे। हरित क्रांति के लिए उनको याद किया जाता है।
इन घोषणाओं का सबने स्वागत किया है। लेकिन इसके समय पर अलग-अलग मत व्यक्त किए जा रहे हैं। इससे पहले कर्पूरी ठाकुर और उनके बाद लालकृष्‍ण आडवाणी को भारत रत्न का सम्मान दिए जाने की घोषणा हुई थी। यह मांग होती रही है कि कर्पूरी ठाकुर और पी.वी. नरसिन्हा राव को भारत रत्न दिया जाना चाहिए। कर्पूरी ठाकुर का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। इसलिए यह मांग एक अभियान बन गया था। जो लोग अभियान चला रहे थे, उन्हें इसकी दूर-दूर तक आशा नहीं थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कर सकते हैं। जो लोग तब चकित थे, अब वे प्रसन्न हैं और प्रधानमंत्री के प्रति आभारी हैं। ऐसी ही भावदशा इन नई घोषणाओं पर दिखाई पड़ रही है। सबसे पहली खुशी चौधरी चरण सिंह के पौत्र और लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने प्रकट की। यह स्वभाविक भी था। उनके उद्गार को मीडिया ने सर्वव्यापी बना दिया है। जयंत चौधरी जो बोले, वह सहज भाव था। उसकी अभिव्यक्ति थी। वे बोले, ‘मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा कर मेरा दिल जीत लिया है। यह देश के लिए बड़ा दिन है। यह मेरे लिए भावनात्मक क्षण है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने यह साबित किया है कि वे देश की भावनाओं को बखूबी समझते हैं। यह एक ऐसा निर्णय है जो पिछली कोई भी सरकार नहीं ले पाई थी।’
इसे ही जयंत चौधरी ने राज्यसभा में दूसरे शब्दों में दोहराया। उन्होंने कहा, ‘आज मोदी सरकार की कार्यशैली में भी चौधरी चरण सिंह के विचारों की झलक है। एक जमीनी सरकार ही धरतीपुत्र चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दे सकती है।’ कांग्रेस के जयराम रमेश ने राज्यसभा में व्यवस्था का प्रश्‍न उठा दिया। उसे समर्थन दिया कांग्रेस के अनुभवी नेता और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने। उन्होंने सभापति से पूछा कि जयंत चौधरी को किस नियम के अधीन बोलने दिया जा रहा है? मल्लिकार्जुन खरगे का प्रश्‍न संसदीय प्रक्रिया की दृष्टि से सही हो सकता है, लेकिन समय और विषय का संदर्भ देखें, तो कह सकते हैं कि वे जिस डाल पर बैठे हैं उसे ही काट रहे हैं। दूसरी तरफ उदाहरण अमित शाह का है। उन्होंने अपने भाषण में चौधरी चरण सिंह का सम्मान बढ़ाया। यह कह कर कि ‘आज देश में किसानों की भूमि उनके अपने नाम पर होने का श्रेय चौधरी चरण सिंह को जाता है।’
संभवतः भारत रत्न के सम्मान पर इससे पहले कभी इतनी चर्चा नहीं हुई थी जितनी आज हो रही है। इसके अनेक कारण बताए जा सकते हैं। एक कारण तो यह है कि इसे केंद्र सरकार का एक साधारण कर्तव्य समझा जाता था। इसलिए कोई इस सम्मान पर विषेश ध्यान नहीं देता था और इस पर बहुत बहस भी नहीं होती थी। लेकिन इस बार वातावरण भिन्न है। भारत रत्न सम्मान स्वयं चर्चा में है। यह चर्चा समाज में है। मीडिया में है। संसद में है। राज्यसभा को संसद का ऊपरी सदन माना जाता है। इस अर्थ में संसद दो मंजिला मकान है। ऊपरी मंजिल पर राज्यसभा है। उससे उम्मीद की जाती है कि वहां अनुभव और ज्ञान का समन्वय होगा। लेकिन भारत रत्न की चर्चा राज्यसभा में नोक-झोक का कारण बन गई। ऐसा क्यों हुआ?
इसे समझने की जरूरत है। क्या यह इसलिए है कि 2024 लोकसभा के चुनाव का वर्ष है?क्या नामों का चयन राजनीतिक कारणों से हुआ है? इन प्रश्‍नों का उत्तर हां और ना, दोनों में है। इसे ‘नेति-नेति’ से भी समझा जा सकता है। यह भी नहीं, यह भी नहीं। तो प्रश्‍न है कि फिर है क्या? यह इस पर निर्भर करता है कि इसे देखने की दृष्टि क्या है? यह तथ्य है और सत्य भी है कि लोकसभा के चुनाव सामने हैं। लेकिन क्या लोकसभा के चुनाव मात्र से भारत रत्न सम्मान से नवाजा जाना अपने आप में राजनीतिक हो जाता है? इसका उत्तर भी हां और ना में है।
इस साल भारत रत्न सम्मान दिए जाने का प्रसंग अलग-अलग है और यही इसकी विशेषता भी है। जो इस सच को जानेगा, वह जन-मानस में इस सम्मान को ऊंचा उठाएगा। जो इसे मात्र लोकसभा चुनाव की नजर से देखेगा वह दलीय राजनीति के दलदल में पड़ा रहेगा। क्यों नहीं अब तक इन पांच लोगों को भारत रत्न सम्मान मिला? यह प्रश्‍न अपने आप में मूल प्रश्‍न है। इस पर विचार करने के लिए पहले कर्पूरी ठाकुर के नाम का उल्लेख जरूरी है। कांग्रेस शासन में आखिर क्यों नहीं कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न का सम्मान मिला? इस आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय का महत्व सामने आता है। क्या ‘सबका साथ-सबका विश्‍वास-सबका सम्मान’ की भावना इससे पुनः पुष्‍ट नहीं होती? उत्तर है कि अवश्‍य होती है। दूसरा उदाहरण है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकृष्‍ण आडवाणी को इस सम्मान से विभूषित किया। आडवाणी जी की बेटी प्रतिभा ने एक अखबार को बताया है कि ‘दादा (लालकृष्‍ण आडवाणी) या परिवार में से किसी ने भी इस बारे में सोचा नहीं था। न तो उम्मीद थी न कोई लालसा थी। इसलिए जब यह खबर मिली तो डबल खुशी हुई।’

एम एस स्‍वामीनाथन  
अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्‍ठा में लालकृष्‍ण आडवाणी अपनी बढ़ती उम्र के कारण नहीं पहुंच सके। ठंड के दिन जो थे। लेकिन अयोध्या आंदोलन में उनके अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान को आदरपूर्वक याद करने का प्रतीक है, भारत रत्न का सम्मान। यह भावनात्मक भी है और आध्यात्मिक भी है। अयोध्या आंदोलन की भावना में अध्यात्म है। उस आंदोलन को जन-जन में पहुंचाने वालों में जिस राजनीतिक पुरुष को हर समय याद किया जाएगा वे लालकृष्‍ण आडवाणी हैं। इस कार्य में उनके पहले सहयोगी स्वयं नरेंद्र मोदी थे। सोमनाथ से रथ यात्रा प्रारंभ हुई थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का उस दिन जन्मदिन था। लालकृष्‍ण आडवाणी रथ पर सवार हुए, लेकिन उनके मन में अनगिनत प्रश्‍न भी थे। आशंकाएं भी थी। एक प्रश्‍न था, क्या जन समर्थन मिलेगा? उसे पुरुषार्थी नरेंद्र मोदी ने अपने संगठन कौशल से असंभव को संभव बनाया। रथ यात्रा को गुजरात में अपार जन समर्थन मिला। उस पहली सफलता ने राह बना दी। मंजिल को निकट ला दिया। यात्रा चल पड़ी। उस यात्री को भारत रत्न सम्मान देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना कर्तव्य निभाया है।
पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिन्हा राव को भारत रत्न का सम्मान क्या मनमोहन सिंह की सरकार नहीं दे सकती थी? अगर मनमोहन सिंह खड़ाऊ प्रधानमंत्री न होते तो दे सकती थी। लेकिन वे सोनिया गांधी के निर्देश पर सरकार चला रहे थे। सोनिया गांधी ही थीं जिन्होंने पी.वी. नरसिन्हा राव के शव को कांग्रेस मुख्यालय में थोड़ी देर के लिए रखने और सम्मान पूर्वक विदा करने की अनुमति नहीं दी। फिर उन्हें भारत रत्न सम्मान का प्रश्‍न ही कहां पैदा होता है। यह सम्मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें दिया है। इस पर कांग्रेस में आत्मालोचन होना चाहिए। इसके कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं। पी.वी. नरसिन्हा राव की राष्‍ट्रीय राजनीति में महती भूमिका को इस सम्मान ने रेखांकित किया है। पुनः उन बातों को याद किया जाने लगा है जिन्हें दबा दिया गया था और कोशिश थी कि भुला दिया जाए। जैसे, जब कश्‍मीर का प्रश्‍न विश्‍व रंगमंच पर आया तो संयुक्त राष्‍ट्र में भारत का पक्ष प्रस्तुत करने के लिए पी.वी. नरसिन्हा राव ने अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा। वे विपक्ष में थे। राष्‍ट्रीय प्रश्‍नों पर कैसी भावना होनी चाहिए, इसका यह एक प्रतिमान है।
जिन राजनीतिक नेताओं को इस वर्ष भारत रत्न का सम्मान मिला है, वे संसदीय लोकतंत्र के मानक हैं। उन्हें सम्मान देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां सामाजिक लोकतंत्र की जड़ें गहरी की हैं और उसे फैलने के लिए सुगमता बनाई है, वहीं भेदभाव और विद्वेष की राजनीति का एक सुंदर विकल्प प्रस्तुत किया है। भारत रत्न का निर्णय नागरिक सम्मानों से थोड़ा अलग ढंग से होता है। नागरिक सम्मानों की एक प्रक्रिया है। लेकिन भारत रत्न का निर्णय प्रधानमंत्री और राष्‍ट्रपति को ही करना होता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत रत्न का सम्मान पाया क्योंकि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें दिया। इस प्रक्रिया को जो नहीं जानते वे यह कहते हुए पाए जाते हैं कि नेहरू जी ने स्वयं को भारत रत्न सम्मान दे दिया। यही बात इंदिरा गांधी के लिए भी कही जाती है। इस बार के भारत रत्न में डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन का नाम एक संतुलन और समझ पैदा करता है। शायद ही कोई हो, जो डॉ. स्वामीनाथन के योगदान से अपरिचित हो। उन्होंने भारत को खाद्यान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया। इस तरह जो हकदार थे, उन्हें भारत रत्न का सम्मान मिला है।
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रामबहादुर राय

रामबहादुर राय (समूह संपादक)
विश्वसनीयता और प्रामाणिकता रामबहादुर राय की पत्रकारिता की जान है। वे जनसत्ता के उन चुने हुए शुरुआती सदस्यों में एक रहे हैं, जिनकी रपट ने अखबार की धमक बढ़ाई। 1983-86 तथा 1991-2004 के दौरान जनसत्ता से संपादक, समाचार सेवा के रूप में संबद्ध रहे हैं। वहीं 1986-91 तक दैनिक नवभारत टाइम्स से विशेष संवाददाता के रूप में जुड़े रहे हैं। 2006-10 तक पाक्षिक पत्रिका ‘प्रथम प्रवक्ता’ के संपादक रहे। उसके बाद 2014-17 तक यथावत पत्रिका के संपादक रहे। इन दिनों हिन्दुस्थान समाचार समूह के समूह संपादक हैं।