जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकट

युगवार्ता    26-Feb-2024   
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क्या यह संयोग मात्र है कि इधर संसद में जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तन पर समिति गठित किए जाने की घोषणा हुई और उधर बनभूलपुरा में शक्ति प्रदर्शन हो गया? आशा की जाती है कि केंद्र सरकार द्वारा गठित समिति द्वारा धार्मिक जनसांख्यिकी पर अपेक्षित ध्यान दिया जाएगा।

Budget 
साल 2024 का अन्तरिम बजट प्रस्तुत करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की और कहा कि एक समिति का गठन किया जाएगा जो देश की जनसंख्या का वैज्ञानिक अध्ययन करेगी, ताकि भारत को 2047 तक एक विकसित राष्‍ट्र बनाया जा सके। याद रहे कि दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश होने के कारण सरकार की चुनौतियां भी बड़ी है। उसका दायित्व है कि वह जनसांख्यिकीय में आए बदलाव के अनुरूप भविष्‍य की योजनाएं तैयार रखे। यद्यपि वित्त मंत्री ने विस्तार से नहीं बताया कि इसके अतर्गत क्या-क्या होगा, परन्तु मोटे तौर पर नागरिकों की वर्तमान औसत आयु और इनमें महिलाओं, बच्चों व बूढ़ों की संख्या आदि जानकारियां जुटा कर यह अनुमान लगाया जा सकेगा कि अगले 25 साल में इनकी औसत आयु क्या होगी। तब शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में क्या आवश्‍यकताएं होंगी आदि, आदि। आज भारत की औसत आयु 28.2 साल है। विश्‍व की अग्रणी आर्थिक महाशक्तियों में सबसे युवा। आर्थिक प्रतिस्पर्धा के युग में यह हमारी शक्ति है। चीन और बाकी सारी अर्थव्यवस्थाएं अवसान पर हैं, तो भारत के लिए एक अवसर है। 25 साल बाद इसमें थोड़ी कमी आएगी। पर यह उतनी बड़ी चिंता नहीं है। असल चुनौती जनसांख्यिकी में आए बदलाव को लेकर है। लेकिन क्यों?
भारत में बच्चों का जन्म दर कम हो रहा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2019-21) के अनुसार यह 2.0 के आसपास है। अर्थात पति-पत्नी के दो बच्चे। इस हिसाब से आज जितने लोग हैं, 25 साल बाद भी उतने ही रहने चाहिए और सम्भवत: रहे भी। परन्तु समस्या यह है कि कुछ राज्यों में समुदाय विशेष या धर्म मानने वालों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है और बहुसंख्यक कम हो रहे हैं। आज जो कम हो रहे हैं, भविष्‍य में उनकी औसत आयु अधिक होगी और जिनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है, उनमें युवाओं की संख्या अधिक होगी। यह समाज में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न करेगा। पश्चिम बंगाल, केरल जैसे कुछ राज्यों में तो यह साफ दिख रहा है। हल्द्वानी के बनभूलपुरा में समुदाय विशेष के उत्पात का असल संदेश यही है।
गणित बड़ा आसान है। आधुनिक हथियारों से लैस एक सैनिक के सामने पचास जान देने को तत्पर जेहादी खड़े हो जाएं तो लड़ाई बराबरी का हो जाएगा। भले ही उनके हाथों में तलवार, पत्थर और कट्टे ही क्यों ना हों। ड्रोन और मिसाइल भी बेअसर साबित होंगे, क्योंकि आपकी गोलियां समाप्त हो जाएंगी, पर जेहादियों का जत्था आता रहेगा। द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान कोरियाई युद्ध में इसी संख्या बल के सहारे चीनीयों ने अमेरीकियों को एक तरह से पस्त कर दिया था। भले ही दस लाख से अधिक चीनी सैनिक मारे गए हों पर वे आगे बढ़ते रहे। सैमुअल हटिंगटन की पुस्तक ‘क्लैश आॅफ सिविलाइजेशंस’ और स्टीफन पी कोहन लिखित ‘द आइडिया आॅफ पाकिस्तान’ में इस पर विस्तार से चर्चा की गई है। दोनों ही लेखकों ने गहन विश्‍लेषण कर जो कहा है, उसके मूल में यही है कि जिस गति से मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ रही है, वह दुनिया भर के लिए संकट है।
“जनसंख्या हथियार नहीं है, परन्तु हथियार से कम भी नहीं है। भविष्‍य की कल्पना करिए जब समुदाय विशेष की जनसंख्या 50 करोड़ के आस-पास होगी तब क्या होगा? दस लाख की सेना वाले देश का पांचवां हिस्सा भी इनके सामने होगा तो ये नियंत्रण में नहीं आएंगे।”
 
सोशल मीडिया के इस युग में आसानी से देख सकते हैं कि फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, स्पेन आदि देशों में क्या हो रहा है और उसके पीछे कौन लोग हैं। पाकिस्तान आज इसलिए नहीं डूब रहा कि भारत ने उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया हैं, बल्कि इसका मूल कारण यह है कि उसके संसाधन सीमित हैं और वहां के अधिकांश लोग दिन-रात इस्लाम का सिपाही पैदा करने में लगे हैं। पाकिस्तान की सरकार या फौज के पास इनको संभालने के लिए कोई योजना नहीं है। पहले कश्‍मीर और अफगानिस्तान था, तो सिरदर्द कम था। अब परिस्थितियां वह नहीं रहीं। उनके पास समृद्ध देशों में घुसने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। जिस भी देश में इनकी संख्या 25-30 प्रतिशत होगी वहां युद्ध की स्थिति बनेगी। इसी खतरे को कम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों के लिए ढेर सारी योजनाएं आरम्भ की। परन्तु इसका असर होने में समय लगेगा और जब तक इसका अपेक्षित परिणाम आएगा तब तक बहुत विलम्ब हो जाएगा। कुछ बरसों में जब अरब देशों का ‘तेल’ समाप्त हो जाएगा, तो यह समस्या और बढ़ेगी।
इसलिए यह जानना आवश्‍यक है कि हमारी वास्तविक जनसंख्या कितनी है और उसका स्वरूप क्या है। 2011 की जनगणना के अनुसार 2001 से 2011 के बीच हिन्दुओं की जनसंख्या में 0.7 प्रतिशत की कमी आयी और सिख 0.2 प्रतिशत कम हुए। परन्तु मुसलमानों की संख्या में 0.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर 24.6 रही, जबकि हिन्दुओं की 16.8, ईसाइयों की 15.5 और सिखों की जनसंख्या वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत रही। ध्यान रहे कि इसमें क्रिप्टो क्रिश्‍चन अर्थात धर्मान्तरण कर ईसाई बने या मुसलमान बने लोग नहीं सम्मिलित नहीं है। जिस तरह से कुछ राज्यों और क्षेत्र विशेष में धर्मांतरण का खेल चल रहा है और मुसलमान जनसंख्या बढ़ा रहे हैं, वह चिन्ताजनक है। यदि सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो कुछ बरसों में इनको सिद्धारमैया या स्टॉलिन की आवश्‍यकता नहीं होगी। इनके अपने लोग संसद और विधान सभा में होंगे। इसलिए यह एक गम्भीर विषय है और आशा है कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त समिति धार्मिक जनसांख्यिकी के आंकड़ों पर विशेष ध्यान देगी।
क्यों आवश्‍यक है धार्मिक जनसांख्यिकी
कुछ साल पहले केरल के एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी सेनकुमार ने एक साक्षात्कार में बताया कि साल 2015 में राज्य में जितने बच्चों का जन्म हुआ, उनमें 42 प्रतिशत मुसलमान थे, जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार उनकी कुल जनसंख्या केवल 26.6 थी। जाने-अनजाने सेनकुमार ने केरल में जनसंख्या जिहाद की ओर लोगों का ध्यान आकृष्‍ट किया। इस पर बड़ा विवाद हुआ और उन पर भ्रामक तथ्य रखने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप लगाया गया। परन्तु पंजीकरण के आंकड़े बताते हैं कि 2008 में केरल में जन्मे बच्चों में मुसलमानों की संख्या 36.3 प्रतिशत थी, जो साल 2015 में 41.5 हो गयी। दूसरी ओर हिन्दुओं और ईसाइयों के जन्म दर में गिरावट आयी। 2008 में जन्में कुल बच्चों में 45 प्रतिशत हिन्दू थे, जो 2015 में 42.9 प्रतिशत हो गयी, जबकि ईसाई बच्चों की संख्या 17.8 प्रतिशत से घटकर 15.5 हो गयी। जनगणना के आंकड़े भी यही बताते हैं। 2001 में केरल के कुल बच्चों में 31.08 प्रतिशत मुसलमान थे, जो 2011 में 36.74 प्रतिशत हो गए। 2001 की जनगणना यह भी बताती है कि प्रति सौ हिन्दुओं के 10.81 बच्चे (0 से 6 साल के) थे, जबकि मुसलमानों के 14.99 और ईसाइयों के 11.91 बच्‍चे । जबकि 2011 में प्रति सौ हिन्दुओं के 8.93 बच्चे थे और मुसलमानों के 14.4 बच्चे। अर्थात 2001 में प्रति सौ हिन्दू और मुसलमानों के बच्चों की जनसंख्या का अन्तर 4.19 था, जो 2011 में 5.45 हो गया। यह केवल एक राज्य केरल की धार्मिक जनसांख्यिकी का लेखा-जोखा है। पश्चिम बंगाल और असम जाएंगे तो और भी चैंकाने वाले आंकड़ें सामने आएंगे।
 
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संजय कुमार झा

संजय कुमार झा, वरिष्ठ् पत्रकार
आप पिछले दो दशक से अधिक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर सहित कई पत्र -पत्रिकाओं और न्यूज चैनलों के लिए रिपोर्टिंग और संपादन का काम किया है। आप विगत पांच वर्षों से कानूनी विषयों पर युगवार्ता पत्रिका के लिए लिख रहे हैं।