राजनीति के भस्मासुर

युगवार्ता    07-May-2024   
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आंदोलन को साधन बनाकर आमजन का रहनुमा बनने वाली ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल सत्ता मिलते ही पलट गए। पश्चिम बंगाल और दिल्ली के आम लोगों ने इन दोनों को चुनावों में ऐतिहासिक जीत दिलाई। सत्ता मिलते ही ये तथाकथित रहनुमा भ्रष्टाचार के दलदल में समाते चले गए। दोनों ही सरकारों के कई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं। आज स्थिति यह हो गई है कि ये राजनीति के भस्मासुर बन गए हैं।

अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने इस बार कांग्रेस से इतर दो चेहरे मजबूती से टक्कर देने का इरादा रखते हैं। एक हैं, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो दूसरे हैं, आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। ये दोनों ही आंदोलन की कोख से निकलकर सत्ता तक पहुंचे हैं। ममता बनर्जी सिंगुर में बड़ा आंदोलन कर बंगाल में चार दशक से चली आ रही वामपंथी सरकार को उखाड़ फेंकने में कामयाब हुई। वहीं अरविंद केजरीवाल केंद्र की मनमोहन सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ कथित जनलोक आंदोलन से 15 साल पुरानी शीला दीक्षित की सरकार को दिल्ली से सत्ताच्युत कर दिया था। अपने-अपने राज्य में दोनों का मजबूत जनाधार है लेकिन कुछ ही वर्षों में दोनों की सरकार पर भ्रष्टाचार के कई दाग लग चुके हैं। दाग भी इतना गाढ़े की छुड़ाए नहीं छूट रहे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो भ्रष्टाचार के आरोप में जेल तक पहुंच चुके हैं। फिर ये दोनों इस चुनाव में कैसे प्रधानमंत्री मोदी से बीस साबित होंगे। इस पर हर ओर संशय है।
अन्ना आंदोलन से अरविंद केजरीवाल को देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नए नेता के रूप में पहचान मिली। तब वे अन्ना हजारे के मंच से कहा करते थे, 'जैसा अन्ना जी ने कहा है कि इस कुर्सी के अंदर कुछ न कुछ समस्या जरूर है। जो इसके ऊपर बैठता है, वही भ्रष्ट हो जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस आंदोलन से जब विकल्प निकलेगा और वे लोग जब कुर्सी पर जाकर बैठेंगे, कहीं वे ही न भ्रष्ट हो जाएं। कहीं वे ही न गड़बड़ करने लग जाएं। यह हम लोगों के मन में बहुत बड़ी चिंता है। हमारे मन में डर भी है कि इस आंदोलन से जब राजनीतिक विकल्प खड़ा होगा तो कहीं ऐसा न हो जाए कि उसमें से भ्रष्टाचार को जन्म देने की कोई प्रवृत्ति निकले। यह आंदोलन व्यवस्था परिवर्तन के लिए है। सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं।ह्ण उस समय तक केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा नहीं किया था। मगर जब अरविंद केजरीवाल ने कथित आंदोलन के प्रमुख लोगों के सामने राजनीतिक दल बनाने का प्रस्ताव रखा तो अन्ना हजारे सहित कई अन्य प्रमुख लोगों ने उस प्रस्ताव का विरोध किया। उस समय भी केजरीवाल ने यही लाइन्स सबको सुनाया। उससे कुछ नेता तो केजरीवाल से सहमत हो गए। लेकिन अन्ना हजारे अंतत: राजनीतिक दल बनाने पर राजी नहीं हुए। इस मतभेद के बाद से ही अन्ना हजारे इन लोगों के साथ से अलग हो गए।
अरविंद केजरीवाल की वह लाइन्स सही साबित होती दिख रही है। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ाई लड़कर दिल्ली की सत्ता पर बैठते ही अरविंद केजरीवाल खुद ही भ्रष्टाचार में घिरते चले गए। उनकी सरकार पर एक के बाद एक भ्रष्टाचार के आरोप लगते गए और उसकी जांच दिल्ली के सतर्कता विभाग से होते हुए सीबीआई और ईडी तक पहुंच गई है। आधा दर्जन से ज्यादा मामलों की जांच सीबीआई कर रही है। मुख्यमंत्री स्वयं जेल में हैं। उनके उपमुख्यमंत्री और नंबर तीन मंत्री सत्येंद्र जैन भी जेल में हैं। इनके दिल्ली से राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी शराब घोटाले के आरोप में महीनों जेल में रहकर जमानत पर अभी-अभी बहार आये हैं। इनके पहले कार्यकाल में भी कई मंत्री और विधायक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कई को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। कमोबेश यही स्थिति बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की है। उनकी सरकार पर भी भ्रष्टाचार के एक-दो नहीं दर्जन भर आरोप लगे हैं। जबकि दोनों नेता सार्वजानिक जीवन में आम लोगों के सामने खुद की आमजन वाली छवि बनाई है। ममता बनर्जी सूती साड़ी और हवाई चप्पल में ही हमेशा दिखती हैं तो अरविंद केजरीवाल भी एक साधारण सा हाफ शर्ट-पेंट और चप्पल में दीखते हैं। लेकिन जब से अरविंद केजरीवाल की ह्यशीशमहलह्ण (मुख्यमंत्री आवास) की तस्वीरें और जानकारी बाहर आई है तब से आमजन वाली इनकी छवि बदलने लगी है।
ये दोनों ही नेता अपने साफ सुथरी छवि के साथ राजनीति में कदम रखे थे। लेकिन आज सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार के आरोप और जांच इनकी सरकार के घोटालों की हो रही है। दोनों के कई-कई मंत्री भ्रष्टाचार में डूबे हुए और जेल में हैं। अरविंद केजरीवाल तो खुद ही शराब घोटाले में जेल में हैं। ममता बनर्जी पर सबसे पहला आरोप शारदा और नारदा घोटालों की की लगी। इसकी आंच इनके मंत्रियों से होते हुए ममता बनर्जी तक पहुंच गई। तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शीश महल और शराब घोटाले में सीधे आरोपी हैं। इसकी जांच सीबीआई कर रही है। शराब घोटाले में पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से होते हुए जांच, सांसद संजय सिंह से आगे बढ़कर अरविंद केजरीवाल पर पहुंच गई। इसमें भी विडंबना यह है कि ये लोग जांच एजेंसियों को सहयोग भी नहीं कर रहे हैं। पारंपरिक राजनेताओं की तरह विपक्ष की चाल और सरकार गिराने की साजिश जैसे पुराने बयान देते फिर रहे हैं।
यह बात भी सही है कि कांग्रेस के कमजोर होने के कारण विपक्षी खेमे से ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों को ही प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जाता है। इसके लिए ममता बनर्जी से काम भी शुरू किया। 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी का विस्तार करने के लिए आगे बढ़ी। इसके लिए वे गोवा सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में चुनाव भी लड़ी लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। फिर वे आईएनडीआईए गठबंधन में प्रधानमंत्री के दावेदार बनने की भरसक कोशिश की, लेकिन वहां भी उन्हें सफलता नहीं मिली। आखिरकार वे इस विपक्षी गठबंधन से निकल गई। इसी प्रकार दिल्ली में दोबारा सत्ता वापसी करने और पंजाब में पार्टी को ऐतिहासिक मिलने के बाद से अरविंद केजरीवाल भी प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर देखने लगे। इनके पार्टी के नेता 2024 का मुकाबला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल होने की बात करने लगे थे। जो इस चुनाव में नहीं हो रहा है। कहीं न कहीं इसका कारण इन दोनों नेताओं की साफ-सुथरी छवि से भ्रष्ट नेताओं वाली होना कहा जा सकता है।
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गुंजन कुमार

गुंजन कुमार (ब्‍यूरो प्रमुख)
प्रिंट मीडिया में डेढ़ दशक से ज्‍यादा का अनुभव। 'दैनिक हिंदुस्तान' से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त कर 'हरिभूमि' में कुछ समय तक दिल्ली की रिपोर्टिंग की। इसके बाद साप्ताहिक 'दि संडे पोस्ट' में एक दशक से ज्यादा समय तक घुमंतू संवाददाता के रुप में काम किया। कई रिपोर्टों पर सम्मानित हुए। उसके बाद पाक्षिक पत्रिका 'यथावत' से जुड़े। वर्तमान में ‘युगवार्ता’ पत्रिका में बतौर ब्‍यूरो प्रमुख कार्यरत हैं।