यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में श्रीरामचरितमानस का नामांकित होना बड़ी उपलब्धिः डॉ. रमेशचन्द्र गौड़

युगवार्ता    10-Jun-2024   
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भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े अनुपम कृतियों में से एक गोस्‍वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस को यूनेस्‍को के 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्‍ड' एशिया पैसिफ़िक रीजनल रजिस्‍टर में दर्ज किया गया है। इसके साथ 'पंचतंत्र' एवं आनन्‍दवर्धन लिखित 'सहृदय- लोक लोचन' को यूनेस्‍को की उपर्युक्त विश्‍व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। इस बाबत यूनेस्‍को के 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्‍ड' प्रोग्राम के नोडल सेंटर के प्रमुख और इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र के कलानिधि विभाग के प्रमुख डॉ. रमेशचन्‍द्र गौड़ से युगवार्ता के संपादक संजीव कुमार ने विस्‍तृत बातचीत की है। पेश है बातचीत का संपादित अंश-
 
डॉ रमेशचंद्र गौड़
भारतीय ज्ञान परंपरा की अनुपम कृतियों में से एक श्रीरामचरितमानस को यूनेस्‍को की धरोहर में शामिल किया गया है। इसके साथ और कौन-कौन सी कृतियों को यूनेस्‍को की धरोहर में शामिल किया गया है?
वस्‍तुत: यूनेस्‍को का 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्‍ड' प्रोग्राम तीन लेवल पर रजिस्‍टर्ड करता है- इंटरनेशल रजिस्‍टर, नेशनल रजिस्‍टर और रीजनल रजिस्‍टर। इंटरनेशल रजिस्‍टर यूनेस्‍को अपने हेडक्‍वाटर से ऑपरेट करता है। हमलोग एशिया पैशिफिक में आते हैं इसलिए रीजनल रजिस्‍टर का संचालन साउथ कोरिया से होता है। इसका एक अलग रजिस्‍टर मेंटेन किया जाता है। यह रजिस्‍टर 2008 से ऑपरेट किया जा रहा है। लेकिन अब तक भारत की तरफ से कोई नॉमिनेशन शामिल नहीं किया गया था। पिछले साल 2023 में जब इस कैटोगरी में नॉमिनेशन आरंभ हुआ तो उस समय हमलोगों ने फैसला किया कि भारत की तरफ से तीन बहुमूल्‍य कृतियों को हम नॉमिनेट करेंगे। इनमें सर्वप्रथम गोस्‍वामी तुलसीदास कृत 'श्रीराचरितमानस', दूसरा 'पंचतंत्र' और तीसरा आनन्‍दवर्धन कृत 'सहृदय लोकलोचन'। आचार्य अभिनवगुप्‍त ने सहृदय लोकलोचन की टीका भी लिखी है। इन तीनों पाण्‍डुलिपियों को हमने नॉमिनेशन के तौर पर सितंबर 2023 में नामांकित किया। इसका एक पूरा प्रोसेस है। जिसमें एक रजिस्‍टर सब कमिटि होती है। इसमें पहले टेक्‍नीकल इवैल्‍यूशन होता है। उसके बाद फाइनली एशिया पैशिफिक मेमोरी ऑफ द वर्ल्‍ड (मोबकैप) की जनरल मीटिंग होती है उसमें इसका फैसला लिया जाता है। रजिस्‍टर सब कमिटि के रिपोर्ट के आधार पर मंगोलिया की राजधानी उलानबतार में 6-10 मई, 2024 को जनरल मीटिंग हुई। उसमें भारत के प्रतिनिधि और प्रस्‍तावक के तौर पर मुझे आमंत्रित किया गया था। जनरल मीटिंग में मैंने इन तीनों पाण्‍डुलिपियों पर एक प्रजेंटेशन दिया। उसके बाद मेंबर ऑफ स्‍टेट जो वहां उपस्थित थे, उनके वोटिंग के आधार पर सर्वसम्‍मति से हमारी तीनों पाडुलिपियों को यूनेस्‍को के 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्‍ड' रीजनल रजिस्‍टर में दर्ज किया गया।
आप इसके प्रस्‍तावक और पक्षकार भी हैं इसलिए इन कृतियों को यूनेस्‍को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्‍ड में शमिल कराने की यात्रा के बारे में बताएं?
इन तीनों पाण्‍डुलिपियों के डोजियर हमने इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र की हमारी टीम के जरिये ही तैयार करवाई, जबकि पाण्‍डुलिपि हमारे पास नहीं है। श्रीरामचरितमानस की पाण्‍डुलिपि नेशनल म्‍यूजियम के पास है, पंचतंत्र और सहृदय लोकलोचन की पाण्‍डुलिपि भंडारकर ओरियंटल इंस्टिट्यूट पुणे के पास है। 30 सितंबर 2023 इस नॉमिनेशन की आखिरी डेडलाइन थी। इसलिए हमने तीनों पाण्‍डुलिपियों की डोजियर तैयार कर संस्‍कृति मंत्रालय को भेजा। मंत्रालय की स्‍वीकृति के बाद यूनेस्‍को सेल को भेजा गया। यूनेस्‍को सेल ने तीनों डोजियर हमारे यूनेस्‍को कमिशन ऑफ इंडिया को भेजा। उसके बाद डोजियर यूनेस्‍को कमिशन ने सीधे यूनेस्‍को रीजनल कमिटि को भेजा। अगले छह महीने तक यूनेस्‍को रीजनल कमिटि की रजिस्‍टर सब कमिटि ने कई सारे प्रश्‍न और क्‍वेरी रेज किये। उसके बाद हमने नॉमिनेशन डोजियर को रिवाइज किया। 6-10 मई को मंगोलिया की राजधानी में जनरल मीटिंग हुई। वहां मैंने 8 मई को अपना प्रजेंटेशन दिया। प्रजेंटेशन के बाद मेंबर ऑफ स्‍टेट ने वोटिंग की। वोटिंग के बाद इन तीनों पाण्‍डुलिपियों को यूनेस्‍को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्‍ड के रीजनल रजिस्टर में शामिल किया गया और हम को इसका सर्टिफिकेट प्रदान किया गया।

सर्टिफिकेट प्राप्‍त करते हुए डॉ रमेशचंद्र गौड़ 
इस दौर में कितने देश शामिल थे? और इस कैटोगरी में कितने नॉमिनेशन थे?
इसमें एशिया पैसिफिक के सभी देश शामिल होते हैं। इस बार 23 देशों में से 11 देश के 20 नॉमिनेशन थे।
एक तरफ अयोध्‍या में राम मंदिर का बनना और दूसरी तरफ श्रीरामचरितमानस की पाण्‍डुलिपि का विश्‍व धरोहर में शामिल होना। इन दोनों घटनाओं को आप कैसे देखते हैं?
इन दोनों घटनाओं से मुझे बहुत खुशी हो रही है। पहले अयोध्‍या में रामलला अपने मंदिर में विराजे, उसके कुछ महीने बाद श्रीरामचरितमानस को यूनेस्‍को के रीजनल रजिस्‍टर में शामिल किया जाना हमारे लिए बहुत गर्व की बात है। ये और भी महत्‍वपूर्ण हो जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्‍व में, खासकर एशिया में एक अलग स्‍थान रखते हैं। इस रजिस्‍टर के जरिये श्रीरामचरितमानस पूरे विश्‍व में पहुंचेगा। मैं अपने आपको बहुत सौभाग्‍यशाली मानता हूं कि इस कार्य को करने का श्रेय मुझे मिला। लेकिन इस कार्य में कई लोगों का सहयोग मुझे मिला। इसमें इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र के अध्‍यक्ष रामबहादुर राय जी, सदस्‍य सचिव सच्चिदानंद जोशी, संस्‍कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन जी हो, संयुक्‍त सचिव लिली पांडेय जी, डायरेक्‍टर अनीस कुमार, पेरिस के एंबेसेडर और यूनेस्‍को के स्‍थायी सदस्‍य विशाल शर्मा जी आदि सभी के सहयोग से यह सफलता हमें मिली है।
इंटरनेशनल रजिस्‍टर में 11 नॉमिनेशन अब तक हुए हैं लेकिन रीजनल रजिस्‍टर में अब तक एक भी नॉमिनेशन नहीं हुआ था। ऐसा क्‍यों?
इंटरनेशनल रजिस्‍टर प्रोग्राम 1992 से शुरू हुआ था। लेकिन भारत का पहला नॉमिनेशन 1997 में हुआ। 1997 से अब तक इंटरनेशनल रजिस्‍टर में हमने 11 नॉमिनेशन किये हैं। रीजनल कमिटि 1998 में बनी लेकिन रीजनल रजिस्‍टर की शुरुआत 2008 में हुई। लेकिन हमने कभी इसमें नॉमिनेशन नहीं किए। अब तक एक भी नॉमिनेशन इसमें क्‍यों नहीं हुआ था, इसके बारे में मैं नहीं बता सकता। इस‍के लिए जो जिम्‍मेवार लोग थे वही बता सकते हैं कि एक भी नॉमिनेशन क्‍यों नहीं हुआ। 2018 के बाद जब इसकी जिम्‍मेवारी मुझे मिली थी लेकिन कुछ दिनों तक यह रजिस्‍टर बंद था क्‍योंकि रिव्‍यू प्रोसेस चल रहा था। 2021 में रिव्‍यू प्रोसेस पूरा हुआ। 2023 में जैसे ही इस नॉमिनेशन प्रोसेस की घोषणा हुई, हमने तीन नॉमिनेशन एक साथ किये। और इसमें हमें सफलता मिली। इस प्रोग्राम को पहले जितनी अहमियत मिलनी चाहिए थी, उतनी अहमियत नहीं मिली।
आजादी के 60-70 साल बाद भी हमारा कोई नेशनल रजिस्‍टर नहीं है। क्‍या सरकार या मंत्रालय की प्राथमिकता में यह काम नहीं है?
आईजीएनसीए एक नोडल सेंटर के तौर पर काम कर रही है। हमने अपनी जिम्‍मेदारी निभाते हुए नेशनल रजिस्‍टर के बाबत एक पूरा प्रोप्रोजल बनाकर सरकार को दे दिया है। अब मंत्रालय उसको देख रहा है। मुझे पूरी उम्‍मीद है कि इस पर जल्‍द जल्‍द कार्रवाई होनी चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री ने पंच प्रण की बात की है। उसमें से एक प्रण है- अपनी विरासत पर गर्व करना। रामायण-महाभारत, वेद-पुराण, गीता, उपनिषद, गुरु ग्रंथ साहिब थिरुकुल आदि हमारी विरासत ही है। हमारे देश के कोने-कोने में हमारी विरासत फैले हुए हैं। इंटरनेशनल और रीजनल रजिस्‍टर में एक वर्ष में हम सिर्फ पांच नॉमिनेशन कर सकते हैं लेकिन नेशनल रजिस्‍टर में एक साल में हम हजारों नॉमिनेशन कर सकते हैं। इसलिए हमारे लिए सबसे महत्‍वपूर्ण नेशनल रजिस्‍टर है। अगर हम मेमोरी ऑफ द वर्ल्‍ड नेशनल रजिस्‍टर बना लेते हैं तो यह हमारे देश के अंदर होगा। टेक्‍नोलॉजी के जमाने में हमारी जो विरासत है उसे लोगों तक पहुंचाना और भी आसान है। आशा है जल्‍द ही भारत सरकार इस दिशा में कार्य करेगी। मुझे पूरा विश्‍वास है कि इस साल यह कार्य शुरू हो जाएगा।
इस क्षेत्र में जितना काम होना चाहिए था उतना हुआ नहीं है। आपका क्‍या मानना है इस मामले में जागरूकता की कमी है या संसाधन की कमी आड़े आ रही है?
इस मामले में जागरूकता और संसाधन दोनों की कमी है। लोगों को इस बारे में बहुत ज्‍यादा जानकारी नहीं है। संसाधन की कमी तो है ही। क्‍योंकि 2014 में आईजीएनसीए को संस्‍कृति मंत्रालय ने नोडल सेंटर बना दिया, लेकिन इसके लिए न तो कोई अलग से फंड की व्‍यवस्‍था है, न ही अलग से मानव संसाधन की व्‍यवस्‍था है। 2014 से 2018 तक मैं यहां नहीं था इस मामले में कोई काम हुआ ही नहीं। क्‍योंकि आईजीएनसीए में इसकी समझ रखने वाला कोई व्‍यक्ति था ही नहीं। जब 2018 मैं वापस आईजीएनसीए में आया तो इस कार्य को आगे बढ़ाया। इसलिए हमें नयी पीढ़ी को इसके लिए ट्रेंड भी करना है, और नयी पीढ़ी को जागरूक भी बनाना है। साथ ही हमें संसाधनों की भी जरूरत है। क्‍योंकि काम करने या डोजियर बनाने के लिए अगर किसी व्‍यक्ति को नियुक्‍त करना है तो उसके श्रम की कीमत देनी होगी, तभी काम हो पाएगा। सिर्फ डोजियर बनाना ही नहीं बल्कि उस धरोहर को प्रमोट करना भी जरूरी है। नेशनल रजिस्‍टर के साथ नेशनल डिजिटल मैन्‍यूक्रिप्‍ट डिजिटल लाइब्रेरी भी बननी चाहिए। क्‍योंकि वह पाण्‍डुलिपि किसी भी लाइब्रेरी में हो उसकी डिजिटल कॉपी नेशनल डिजिटल डिपोजिट्री में होनी चाहिए। क्‍योंकि पाण्‍डुलिपि को अगर हम नेशनल रजिस्‍टर में ला रहे हैं और वह लाइब्रेरी उसको ठीक से नहीं रखती है और थोड़े दिन बाद वह पाण्‍डुलिपि खत्‍म हो जाती है तो उस रिकॉग्निशन का कोई वैल्‍यू नहीं रह जाती। इस रिकॉग्निशन की वैल्‍यू यह भी है कि वह पाण्‍डुलिपि सुरक्षित रहे। हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए, हमेशा के लिए सुरक्षित रहे।

श्रीरामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदय लोकलोचन की पाण्‍डुलिपि 
सुनने में आया है कि यूनेस्‍को के इंटरनेशनल रजिस्‍टर के लिए आपने कोई दो नामांकन भेजा हुआ है?
यूनेस्‍को के इंटरनेशनल रजिस्‍टर 2024-2025 के लिए हमने दो नॉमिनेशन भेजा है। पहला नॉमिनेशन श्रीमदभगवदगीता का सबसे प्राचीनतम पाण्‍डुलिपियों के कलेक्‍शन का है। वहीं दूसरा नॉमिनेशन हमने भरतमुनि के नाटयशास्‍त्र का किया है। इन नॉमिनेशन का प्रोसेस चल रहा है। अगले साल मार्च 25 तक इंटरनेशनल एडवाइजरी कमिटि की मीटिंग होगी। पूरे विश्‍व से 14 विशेषज्ञ इसमें शामिल हैं। उसमें एशिया क्षेत्र से एक विशेषज्ञ व्‍यक्तिगत तौर पर मैं भी हूं। वह कमिटि तय करेगी कि कौन सी पाण्‍डुलिपि यूनेस्‍को की विश्‍व धरोहर की सूची में शामिल होगी या नहीं। उसके बाद यूनेस्‍को का एक्‍जीक्‍यूटिव बोर्ड उसे अप्रूव करेगा। फिर उन नामों की घोषणा होगी। आशा है कि मई-जून 2025 के आसपास हमें इन नामों की घोषणा सुनने को मिल सकती है।
नोडल केंद्र प्रमुख के रूप में आगे आपकी क्‍या योजना है? यूनेस्‍को के इंटरनेशनल और रीजनल रजिस्‍टर में भारत की पाण्‍डुलिपियों को शामिल कराने के लिए आपकी क्‍या प्राथमिकताएं हैं?
सबसे पहली प्राथमिकता हमारी यह है कि हमारा नेशनल रजिस्‍टर जल्‍द से जल्‍द प्रारंभ हो। हमारी दूसरी प्राथमिकता यह है कि पूरे भारत में हम एक जागरूता पैदा कर सकें। साथ ही कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम शुरु कर सकें। जिससे देश की विभिन्‍न लाइब्रेरी नॉमिनेशन डोजियर खुद तैयार कर हमें भेज सकें। तीसरी प्राथमिकता दक्षिण एशिया में कई सारे कॉमन हेरिटेज हैं उन्‍हें हम संयुक्‍त रूप से नॉमिनेट कर सकते हैं। हमारे कई पड़ोसी देश ऐसे हैं जिन्‍हें इस मामले में सपोर्ट की जरूरत है। इसलिए इस साल हमारी कोशिश यह है कि दक्षिण एशियाई देशों की संस्‍थाओं के लिए एक कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोगाम आयोजित कर सकें। उसमें हर देश से एक-दो प्रतिनिधि अवश्‍य आएं। इसके साथ-साथ हमारी कोशिश है कि नॉमिनेशन के लिए जब अगली घोषणा हो उससे पहले ही हम नॉमिनेशन डोजियर की तैयारी कर लें। क्‍योंकि जब घोषणा होती है तब नॉमिनेशन डोजियर जमा करने के लिए दो-तीन महीने का ही समय होता है। अभी हमारी प्राथमिकता में कौटिल्‍य का अर्थशास्‍त्र, अशोकन इन्‍सक्रिप्‍शन और बाल्मिकी रामायण का संयुक्‍त नॉमिनेशन, गुरु ग्रंथ साहिब और थिरूकुरल आदि का नॉमिनेशन करना है। इसके साथ-साथ हमें देश के विभिन्‍न क्षेत्रों के बहुत ही महत्‍वपूर्ण, मूल्‍यवान और दुर्लभ पाण्‍डुलिपियों का नॉमिनेशन भेजना है।
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संजीव कुमार

संजीव कुमार (संपादक)
आप प्रिंट मीडिया में पिछले दो दशक से सक्रिय हैं। आपने हिंदी-साहित्य और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। आप विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी जुडे रहे हैं। राजनीति और समसामयिक मुद्दों के अलावा खोजी रिपोर्ट, आरटीआई, चुनाव सुधार से जुड़ी रिपोर्ट और फीचर लिखना आपको पसंद है। आपने राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा की पुस्तक ‘बेलाग-लपेट’, ‘समय का सच’, 'बात बोलेगी हम नहीं' और 'मोदी-शाह : मंजिल और राह' का संपादन भी किया है। आपने ‘अखबार नहीं आंदोलन’ कहे जाने वाले 'प्रभात खबर' से अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत की। उसके बाद 'प्रथम प्रवक्ता' पाक्षिक पत्रिका में संवाददाता, विशेष संवाददाता और मुख्य सहायक संपादक सह विशेष संवाददाता के रूप में कार्य किया। फिर 'यथावत' पत्रिका में समन्वय संपादक के रूप में कार्य किया। उसके बाद ‘युगवार्ता’ साप्तहिक और यथावत पाक्षिक के संपादक रहे। इन दिनों हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ पाक्षिक पत्रिका के संपादक हैं।