नई दिल्ली, 13 अक्टूबर (हि.स.)। मंगोलिया के राष्ट्रपति खुरेलसुख उखना की चार दिवसीय भारत यात्रा के अवसर पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भारत और मंगोलिया के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने में लद्दाख के प्रतिष्ठित बौद्ध भिक्षु और पूर्व राजदूत 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे के योगदान को याद किया। उन्होंने कहा कि रिनपोछे ने साम्यवाद के पतन के बाद मंगोलिया में बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण, भारत-मंगोलिया संबंधों के सशक्तीकरण और पूर्व सोवियत संघ में बौद्ध परंपरा को पुनर्जीवित करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी।
जयराम रमेश ने सोमवार को एक्स पोस्ट में कहा कि मंगोलिया के राष्ट्रपति की यह यात्रा न केवल द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने का अवसर है, बल्कि यह उस ऐतिहासिक योगदान की भी याद दिलाती है जो कुशोक बकुला रिनपोछे ने निभाया। रिनपोछे को वर्ष 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मंगोलिया में भारत का राजदूत नियुक्त किया था। जनवरी 1990 में उन्होंने पदभार ग्रहण किया और दस वर्षों तक वहां भारत का प्रतिनिधित्व किया, जो एक असामान्य रूप से दीर्घावधि राजनयिक कार्यकाल था।
रमेश ने कहा कि कुशोक बकुला रिनपोछे ने मंगोलिया में बौद्ध धर्म की पुनर्स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई और आज भी वहां उन्हें अपार श्रद्धा से याद किया जाता है। उन्होंने भारत और पूर्व सोवियत संघ में भी बौद्ध परंपराओं के पुनर्जागरण को गति दी। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि 10 जून 2005 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लेह एयरपोर्ट का नाम बदलकर ‘कुशोक बकुला रिनपोछे हवाई अड्डा’ रखा और उन्हें आधुनिक लद्दाख का शिल्पकार बताया।
उल्लेखनीय है कि भारत और मंगोलिया के बीच राजनयिक संबंध दिसंबर 1955 में स्थापित हुए थे और भारत ने अक्टूबर 1961 में मंगोलिया को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कुशोक रिनपोछे (1917–2003) को तिब्बती बौद्ध परंपरा में 19वें बकुला रिनपोछे के रूप में मान्यता प्राप्त थी। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे और जीवन के उत्तरार्ध में राजनीति, समाजसेवा और कूटनीति में उल्लेखनीय योगदान दिया।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रशांत शेखर