मप्र के इंदौर के गौतमपुरा में हुआ हिंगोट युद्ध,पांच योद्धा घायल

युगवार्ता    21-Oct-2025
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गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध


तुर्रा और कलंगी दलों ने एक दूसरे पर बरसाए अग्निबाणइंदौर, 21 अक्टूबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के गौतमपुरा में दीपावली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक हिंगोट युद्ध हुआ। इस दौरान गौतमपुरा और रूणजी के वीर योद्धा तुर्रा और कलंगी ने दलों में बंटकर करीब डेढ़ घंटे तक एक-दूसरे पर अग्नि बाणों की वर्षा की। इसमें पांच योद्धा घायल हो गए। इस बार हिंगोट युद्ध आधे घंटे पहले ही खत्म हो गया।

इस बार गौतमपुरा में तुर्रा और रूणजी के वीर योद्धा तुर्रा और कलंगी दल के बीच करीब डेढ़ घंटे तक हिंगोट युद्ध चला। देपालपुर एसडीएम राकेश मोहन त्रिपाठी ने बताया कि युद्ध में पांच योद्धा घायल हुए हैं। हालांकि सभी की हालत ठीक बतायी गई है। इनमें से कोई भी गंभीर नहीं है।

नवरात्रि से युद्ध की तैयारी में लग जाते हैं योद्धा

नवरात्र से ही योद्धा युद्ध की तैयारी में लग जाते हैं। वे बड़नगर, इंगोरिया, चंबल और आसपास के क्षेत्रों के जंगल से हिंगोरिया वृक्ष के फल लाते हैं। इसे सुखाकर अंदर का गूदा निकाल दिया जाता है और खोखला बनाया जाता है, फिर उसमें बारूद भरा जाता है, एक सिरे पर मिट्टी से मुंह बंद कर बत्ती लगाई जाती है। दिशा निर्धारण के लिए बांस की पतली डंडी बांधी जाती है। बुजुर्गों के अनुसार, परंपरा मुगलों के आक्रमण से बचाव के लिए शुरू हुई थी। चंबल घाटियों से मुगल सैनिक हमला करते, तो नगरवासी हिंगोट चलाकर उन्हें घोड़े से गिरा देते थे। इस तरह से यह तरीका आत्मरक्षा का प्रतीक बन गया। बाद में यह परंपरा धार्मिक और सामाजिक स्वरूप में बदल गई। युद्ध की शुरुआत भगवान देवनारायण के दर्शन के बाद की जाती है।

तुर्रा दल के पूर्व योद्धा गोपाल खत्री का कहना है कि अब युवा स्वयं हिंगोट बनाने के बजाय दूसरों पर निर्भर हो गए हैं। अब हिंगोट बनाना महंगा हो गया है। पहले जहां एक हिंगोट 8 से 10 रुपये में बन जाता था, वहीं अब इसकी लागत 18 से 20 रुपये तक पहुंच चुकी है। वहीं अब नई पीढ़ी हिंगोट बनाने के लिए मेहनत नहीं करती है। हिंगोट तैयार करने की 21 चरणों की विधि है। वहीं, तुर्रा योद्धा राज वर्मा ने बताया कि हिंगोरिया पेड़ों की कटाई के कारण अब फल आसानी से नहीं मिलते। योद्धाओं को इन्हें लाने के लिए बड़नगर, उज्जैन, बदनावर और धार जैसे दूरस्थ क्षेत्रों तक जाना पड़ता है। इससे इस बार हिंगोट सीमित मात्रा में तैयार हो रहे हैं। पहले आसपास के जंगल में इन पेड़ों की भरमार थी। इन पेड़ों को नहीं बचाया गया तो यह परंपररा निभाना भी मुश्किल हो जाएगा।

गौरतलब है कि दीपावली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर आयोजित होने वाला हिंगोट युद्ध (अग्निबाण युद्ध) खतरनाक किंतु रोमांचक स्वरूप के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। यह युद्ध शाम पांच बजे से शुरू होकर करीब सात बजे तक चलता है। गौतमपुरा और रूणजी के दो दल तुर्रा और कलंगी अग्निबाणों से एक-दूसरे पर वार करते हैं। यह जानलेवा युद्ध नहीं है, बल्कि साहस, परंपरा और लोक आस्था का प्रतीक है। इसमें हार-जीत नहीं, बल्कि शौर्य और परंपरा का प्रदर्शन मायने रखता है। यह युद्ध जितना खतरनाक होता है, उतना ही रोमांचक भी होता है।______________

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

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