सुखविंदर बावा बोले- पिता त्रिलोचन सिंह बावा के मेडल घर में हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत

22 Oct 2025 17:12:01
लंदन ओलम्पिक 1948की स्वर्ण पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम


- भारतीय हॉकी के 100 साल पूरे होने पर सुनाई जा रही हैं दिग्गज खिलाड़ियों की गौरवशाली कहानियां

नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (हि.स.)। भारतीय हॉकी लंबे समय से विश्व में एक मानक के रूप में देखी जाती रही है। ओलंपिक खेलों में 8 स्वर्ण, 1 रजत और 4 कांस्य पदक जीतकर भारत ने कुल 13 पदक अपने नाम किए हैं, जो इस गौरवशाली विरासत का प्रमाण हैं।

इन्हीं में से एक ऐतिहासिक पदक 1948 के लंदन ओलंपिक में जीता गया था। यह पहला मौका था जब आज़ाद भारत का तिरंगा ओलंपिक में लहराया और राष्ट्रगान गूंजा। इस ऐतिहासिक जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले खिलाड़ियों में से एक थे त्रिलोचन सिंह बावा, जिन्होंने लंदन में भारत की स्वर्णिम जीत में अहम गोल दागे।

वेम्बली स्टेडियम में हुए फाइनल में भारत ने ग्रेट ब्रिटेन को हराकर इतिहास रचा था। त्रिलोचन सिंह बावा ने फाइनल में चौथा और निर्णायक गोल किया था। वहीं, ग्रुप चरण में स्पेन के खिलाफ मुकाबले में उन्होंने भारत के लिए पहला गोल किया, जिससे टीम ने 2-0 से जीत दर्ज की और अपराजित रहते हुए सेमीफाइनल में प्रवेश किया।

त्रिलोचन सिंह बावा भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मज़बूत स्तंभ थे। लम्बे और सशक्त फुल बैक के रूप में विरोधियों के लिए उन्हें पार करना आसान नहीं था। भले ही वे ज्यादा ड्रिब्लिंग नहीं करते थे, लेकिन उनके पास शानदार स्कूप शॉट था जिससे खेल की दिशा बदल जाती थी।

उनकी मेहनत और समर्पण ने ही आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया। उनके पोते राज अंगद सिंह बावा ने 2022 में भारत को अंडर-19 क्रिकेट वर्ल्ड कप जिताने में अहम भूमिका निभाई थी। संयोग देखिए, त्रिलोचन सिंह बावा ने 1948 में ग्रेट ब्रिटेन को हराया था और उनके पोते ने 2022 में इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में पांच विकेट झटके थे।

पिता की इस उपलब्धि को याद करते हुए उनके बेटे सुखविंदर बावा ने हॉकी इंडिया के हवाले से कहा, “पिताजी हमेशा कहा करते थे कि 1948 में लंदन में गोल्ड मेडल जीतना भारतीय हॉकी और भारतीय खेल जगत के लिए एक बहुत बड़ा क्षण था। देश को आज़ादी मिले केवल एक साल हुआ था। जब टीम ओलंपिक पोडियम पर खड़ी हुई और तिरंगा फहराया गया तो वह गर्व का क्षण शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। पिताजी कहा करते थे कि ऐसा गर्व महसूस हुआ मानो ब्लेज़र फट जाएगा!”

उन्होंने आगे कहा, “पिताजी के मेडल हमने घर में फ़्रेम करवाकर लगाए हैं। यह हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। मेरे बेटे ने भी उसी विरासत को आगे बढ़ाया है और देश के लिए खेला है। पिताजी अपने पोते-पोतियों को अक्सर अपने खेल के दिनों की कहानियां सुनाया करते थे। 1948 सच में भारतीय खेल इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है।”

हॉकी इंडिया आने वाले दिनों में इसी अभियान के तहत भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ियों की और भी यादगार कहानियां साझा करेगा, जिनकी वजह से भारत ने बीते 100 वर्षों में विश्व खेल मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे

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