
टोक्यो, 10 नवंबर (हि.स.)। जापान ने चीन के राजदूत की ताइवान से जुड़ी टिप्पणियों को “अत्यंत अनुचित” बताते हुए उसकी कड़ी निंदा की है। जापान ने कहा है कि ऐसी टिप्पणियां जापान की संप्रभुता और क्षेत्रीय शांत के खिलाफ हैं।
जापान के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि चीनी राजदूत वू जियाओहाओ की टिप्पणियां जापान की संप्रभुता और क्षेत्रीय शांति के खिलाफ हैं, जो ताइवान पर चीन के दावों को मजबूत करने का प्रयास करती मालूत देती हैं।
जापान की ओर से यह बयान उस समय आया है जब चीन के राजदूत वू जियाओहाओ ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जापान को चेतावनी दी कि यदि वह ताइवान को समर्थन देता है, तो जापानी लोग “आग में झुलस जाएंगे।”
यह टिप्पणी जापान की प्रधानमंत्री सानाए ताकाइची की ताइवान की प्रस्तावित यात्रा के दाैरान आई है। ताकाइची ताइवान के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने की इच्छुक हैं।
इस बीच जापान के विदेश मंत्री योशिमासा हायाशी ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “राजदूत की टिप्पणियां अत्यंत अनुचित और जापान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का उदाहरण हैं। हम चीन से ऐसी बयानबाजी बंद करने और बातचीत के माध्यम से तनाव कम करने की अपेक्षा करते हैं।
जापानी अधिकारियों ने इसे “धमकी” बताते हुए इस बाबत तुरंत विरोध दर्ज कराया है।
गाैरतलब है कि ताइवान जलडमरूमध्य में चीन के सैन्य अभ्यास बढ़ गए हैं, जिन्हें ताइवान “उकसावे वाली” कार्रवाई करार दे रहा है।
उधर ताइवान के विदेश मंत्रालय ने भी जापान के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि यह “क्षेत्रीय लोकतंत्र की रक्षा” का संकेत है। ताइवान के राष्ट्रपति कार्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा, “चीन की आक्रामक बयानबाजी न केवल ताइवान बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए खतरा है। जापान जैसे सहयोगियों का समर्थन महत्वपूर्ण है।”
उधर, चीन के विदेश मंत्रालय ने जापान के विरोध को “अनावश्यक” करार दिया है। चीन के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, “जापान को ताइवान मुद्दे पर चीन की चिंताओं का सम्मान करना चाहिए। हमारी टिप्पणियां शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हैं, न कि किसी को धमकाने के लिए।”
चीन ने जापान पर अमेरिका के साथ मिलकर ताइवान को हथियार बेचने का आरोप लगाया, जो क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा रहा है। यह विवाद उस समय उभरा है जब जापान ने अपनी रक्षा नीति में बदलाव करते हुए ताइवान जलडमरूमध्य की निगरानी को प्राथमिकता दी है। समझा जाता है कि यदि तनाव बढ़ता रहा, तो यह व्यापार मार्गों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित कर सकता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी इस मुद्दे पर चर्चा की मांग उठी है, हालांकि चीन की वीटो शक्ति के कारण इस बाबत कोई ठोस कदम उठा पाना मुश्किल है।
जापान और चीन के बीच सेनकाकू द्वीपों (चीन में डियाओयू के नाम से जाना जाता) पर विवाद के कारण पहले से ही संबंध काफी संवेदनशील हैं। हाल ही में चीनी नौसेना के जापानी जल क्षेत्र में प्रवेश ने तनाव को और भड़काया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / नवनी करवाल