नई दिल्ली, 12 नवंबर (हि.स.)। देश में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभावों को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बुधवार को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए नवीनतम स्वास्थ्य परामर्श जारी किया है। इस परामर्श में विशेष रूप से अस्पतालों में चेस्ट क्लीनिक स्थापित करने और स्वास्थ्य सुविधाओं को तत्काल सुदृढ़ करने का निर्देश दिया गया है।
यह परामर्श राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनपीसीसीएचएच) के अंतर्गत राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा तैयार किया गया है और इसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) तथा विभिन्न स्वास्थ्य विशेषज्ञ संस्थानों के सहयोग से अद्यतन दिशा-निर्देश शामिल किए गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि चेस्ट क्लीनिक श्वसन और हृदय रोगों की स्क्रीनिंग, पहचान, जोखिम मूल्यांकन और उपचार के लिए विशेष केंद्र के रूप में कार्य करेंगे।
इन क्लीनिकों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, उपजिला अस्पतालों, जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में स्थापित किया जाएगा, विशेषकर उन शहरों में जो राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत गैर-अनुपालन श्रेणी में आते हैं। क्लीनिकों में प्रतिदिन कम से कम दो घंटे तक विशेष सत्र चलाए जाएंगे, जिसमें प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी रोगियों की जांच करेंगे और गंभीर मामलों को उच्च संस्थानों में रेफर करेंगे।
मंत्रालय ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए अपने स्वास्थ्य तंत्र को सशक्त करें। राज्य स्वास्थ्य विभागों को कहा गया है कि वे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से दैनिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स – एक्यूआई) की जानकारी प्राप्त कर स्वास्थ्य संस्थानों और आम जनता को समय पर अवगत कराएं। सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और जिला अस्पतालों को प्रदूषण से उत्पन्न रोगों के उपचार के लिए आवश्यक दवाओं, ऑक्सीजन, नेब्युलाइज़र, वेंटिलेटर और आपात उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।
एडवाइजरी में कहा गया है कि बच्चे, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं और श्वसन या हृदय रोगों से पीड़ित लोग वायु प्रदूषण के प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इन वर्गों में सांस लेने में कठिनाई, खांसी, आंखों में जलन, सीने में दर्द, सिरदर्द और थकान जैसी समस्याएं अधिक पाई जाती हैं।दीर्घकालिक संपर्क से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
मंत्रालय ने वायु प्रदूषण के प्रति जनजागरूकता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। “क्या करें और क्या न करें” में लोगों से अपील की गई है कि वे सुबह-शाम सैर या दौड़ने से बचें, धूलभरे इलाकों से दूर रहें, घर में अगरबत्ती या मच्छर कॉइल का सीमित उपयोग करें और खूब पानी पिएं।
अस्थमा या हृदय रोग से पीड़ित लोगों को सलाह दी गई है कि वे एन-95 या एन-99 मास्क पहनें और अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।
स्कूलों को निर्देश दिया गया है कि वे विद्यार्थियों को वायु गुणवत्ता की जानकारी दें और खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों में बाहरी गतिविधियों (आउटडोर एक्टिविटीज) को सीमित करें। निर्माण और विध्वंस स्थलों पर धूल नियंत्रण उपाय अपनाने, पानी का छिड़काव करने, निर्माण सामग्री को ढककर रखने और श्रमिकों को सुरक्षात्मक उपकरण प्रदान करने के निर्देश दिए गए हैं।
दिल्ली-एनसीआर में स्वास्थ्य क्षेत्र की प्रतिक्रिया “ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रैप)” के अनुरूप होगी। ‘सीवियर+’ या ‘इमरजेंसी’ स्तर पर अस्पतालों में अतिरिक्त बिस्तरों, दवाओं और चिकित्साकर्मियों की तैनाती सुनिश्चित की जाएगी। साथ ही आपातकालीन सेवाओं को सशक्त बनाया जाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि वे वायु प्रदूषण को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात चुनौती के रूप में लें और सभी संबंधित विभागों — स्वास्थ्य, पर्यावरण, परिवहन, नगर विकास और श्रम — के बीच समन्वय सुनिश्चित करें। एडवाइजरी में कहा गया है कि “जन-जागरूकता, व्यवहार परिवर्तन और समुदाय की भागीदारी ही वायु प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है।”
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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार