एआई माध्यम से जनजातीय संस्कृति और विरासत को जीवंत करता स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय

13 Nov 2025 17:58:01
शहीदी वीर नारायण सिंह


जनजाति स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय


जनजाति स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय


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जनजाति स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय


नई दिल्ली, 13 नवंबर (हि.स.)। जनजाति संस्कृति और उनकी अनूठी विरासत को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से प्रदर्शित करने वाला छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर स्थित शहीद वीर नारायण सिंह स्मारक एवं जनजाति स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय बन गया है। मौजूदा समय में देश में चार जनजातीय संग्रहालय हैं।

नवा रायपुर स्थित इस संग्रहालय का उद्घाटन पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। इस संग्रहालय में इस्तेमाल की गयी आई तकनीक से लोगों को न सिर्फ जनजातीय संस्कृति को समझने का मौका मिल रहा है बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में उनके अमिट योगदान से भी रूबरू हो रहे हैं।

संग्रहालय में प्रवेश करते ही जनजातीय जीवन और आस्था के प्रतीक के साथ उनके संघर्ष के साक्षी साल, साजा एवं महुआ पेड़ का रेप्लिका आगंतुकों का स्वागत करता दिखाई देता है। इसी हॉल में जनजातीय लोगों की संघर्ष की ढेरों कहानियां डिजिटल एवं चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित की गयी हैं। यहीं से करीब 16 गैलरियों में छत्तीसगढ़ के जनजातीय जीवन के तमाम पहलू आपके आंखों के सामने से गुजरेंगे। गैलरी एक में प्रवेश करते ही अंग्रेजों के आने से पहले छत्तीसगढ़ के जनजातीय की जीवन शैली, कला कौशल, संस्कृति की झलक आपको इसी काल खंड में ले जाएगी। अबुझमाड़िया में गोटुल, भुंजिया जनजाति में लाल बंगला इत्यादि, जनजातीय में परम्परागत कला कौशल जैसे बांसकला, काष्ठकला, चित्रकारी, गोदनाकला, शिल्पकला को जान सकेंगे। संस्कृति को दर्शाते तमाम पुतले इतने जीवंत लगते हैं मानो स्वागत कर अपने आंगन में आपको आमंत्रण देते प्रतीत होते हैं। डिजिटल लाइट्स और साउंड फैक्ट्स के प्रयोग से कहानी का रोमांच बढ़ता जाता है। गैलरी तीन से शुरू होती है ब्रिटिश हुकूमत की बढ़ती दखलंदाजी और उनकी क्रूरता जिसका डट कर सामना करते जनजातीय लोग। सबसे पहले हलबा क्रांति को दर्शाया गया है जो 1774 ई से 1779 के बीच लड़ी गई। बस्तर के डोंगर क्षेत्र में ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते दखलंदाजी और राज सत्ता के समर्थन में उतरे हलबा जनजातीय लोगों ने पहला संघर्ष किया। फिर गैलरी चार में सरगुजा की क्रांति के बारे में बताया गया। जैसे-जैसे कदम आगे बढ़तें हैं वैसे-वैसे तमाम प्रदर्शित क्रांति के साक्षी बनते जा रहे जान पड़ते हैं। गैलरी के बढ़ते क्रम में भोपालपट्टनम क्रांति, परलकोट क्रांति, तारापुर क्रांति, मेरिया क्रांति, कोई क्रांति, लिंगागिरी क्रांति, मुरिया क्रांति, और गुंडाधुर एवं लाल कालिन्द्रा सिंह के नेतृत्व में हुई प्रतिष्ठित भूमकाल क्रांति में जनजातीय लोगों का शौर्य को जानने मौका मिलता है। संग्रहालय में प्रदर्शित सभी कहानी से लेकर उसके प्रस्तुतीकरण को जीवंत करने में एआई, लाइटिंग और पुतलों के कॉस्ट्यूम्स तक को करीने से गहन अध्ययन के आधार पर प्रदर्शित किया है। साउंड इफेक्ट और विजुअल इफेक्ट्स और इंटरेक्टिव इंटरफेस के माध्यम से लोग जनजातीय लोगों के जीवन को महसूस भी कर सकते हैं। विशेष बात इस संग्रहालय में यह भी है कि इसमें जनजातीय समाज में महिलाओं की भूमिका को भी प्रमुखता से उजागर किया गया है। इसमें रानी चो-रिस क्रांति (1878) को उजागर किया गया है जो महिलाओं के नेतृत्व वाला एक अग्रणी विरोध प्रदर्शन था। शहीद वीर नारायण सिंह और 1857 का विद्रोह: ब्रिटिश अत्याचार के विरुद्ध उनके प्रतिरोध और उनकी शहादत का वर्णन करता है। अपनी 650 मूर्तियों, डिजिटल कहानी-कथन, और सांस्कृतिक प्रदर्शनों के माध्यम से यह भारत की जनजाति विरासत के गुमनाम नायकों का सम्मान करते हुए सीखने और प्रेरणा के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में कार्य करता है।छत्तीसगढ़ आदिवासी संग्रहालय में न सिर्फ आप जनजातीय लोगों की संस्कृति को करीब से देख सकते हैं बल्कि महसूस भी कर सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से संग्रहालय में कैमरा लगाया गया है, जिसमें कई ऐसी तकनीक विकसित की गई है जिसमें अगर आप कैमरे के सामने आते हैं तो आपकी पूरी वेशभूषा आदिवासियों की तरह दिखने लगेंगे। उस तस्वीर को आप सदैव अपनी स्मृतियों में सहज कर रख सकेंगे।इंटरैक्टिव कियोस्क से जनजातीय लोगों के बारे में और अधिक जानकारी ले सकेंगे।उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने जनजाति संस्कृति और विरासत के संवर्धन और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके अमूल्य योगदान को सामने लाने के लिए, 11 जनजाति स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय विकसित कर रही हैं। इनमें से चार का उद्घाटन अब तक हो चुका है, जो रांची (झारखंड), छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश), जबलपुर (मध्य प्रदेश) और रायपुर (छत्तीसगढ़) में हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी

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