
वाराणसी, 16 नवंबर (हि.स.)।मिथिलेशनन्दिनीशरण महाराज ने अपनी ही आग में जो जल मरे, जहां अधजली चिताओं से मिलकर, रचा है शब्दोत्सव (काशी), इन पंक्तियों को रखते हुए कहा कि काशी के अर्थों में महत्वपूर्ण है 'उत्सव'। अब 'उत्सव' कम रह गए हैं। शब्दोत्सव में शब्द जुड़ा है। जब उत्स बचा रहेगा, तभी उत्सव होगा। काशी, बुद्ध और शंकराचार्य को एक साथ जगह देती है। काशी की गुणवत्ता सिर्फ चंदन कमंडल में नहीं है, बल्कि चांडाल के शब्द में भी दिखता है। यहां गुरु का शब्द उच्चारण किसी उत्सव की तरह प्रतिदिन होता है।
आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण महाराज यहां रविवार काे वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग और विश्व संवाद केंद्र (काशी) की ओर से स्वतंत्रता भवन में आयोजित काशी शब्दोत्सव 2025 'विश्व कल्याण : भारतीय संस्कृति' को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
मिथिलेशनन्दिनीशरण ने कहा कि शब्द को महत्व देते हुए शब्दों की संपदा को संस्कृत कहा जाता है। हमें उनमें निहित उत्सव दिखाई देगा। हम शब्दों के प्रति सावधान कम हैं। युवा पीढ़ी थोड़ा कम ज्यादा है। प्रत्येक शब्द की अपनी सर्दी है, गर्मी है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श.चन्द्र