
-हिड़मा के मारे जाने के बाद केंद्र कभी भी बस्तर को कर सकती है नक्सल मुक्त घोषित
जगदलपुर, 19 नवंबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के सुरक्षा बलों को इस बात का मलाल है कि कुख्यात नक्सली कमांडर माड़वी हिड़मा उनकी गोलियों का शिकार नहीं हुआ। माड़वी हिड़मा को मारने (मुठभेड) के लिए बीते 8 महीने में अकेले बस्तर में 10 हजार से ज्यादा सुरक्षा बलों के जवान अभियान चला रहे थे।
छत्तीसगढ़ की पुलिस के अनुसार, माड़वी हिड़मा को गोलियों का शिकार बनाने के लिए जो अभियान चलाए जा रहे थे, उनमें डीआरजी, सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन, एसटीएफ, बस्तर बटालियन और पुलिस के जवान शामिल थे। जवान चप्पे-चप्पे में हिड़मा को ढूंढ रहे थे। दिन-रात जंगलों और पहाड़ों में खोजी अभियान चलाए जा रहे थे। कई बार तो मुठभेड़ होते-होते रह गया और मौका पाकर हिड़मा भाग निकला, लेकिन आतंक का चेहरा बन चुके हिड़मा का खात्मा आंध्र प्रदेश के जवानों की गोलियों से हुआ। बस्तर के सुरक्षा बलों को बस इसी बात का मलाल है कि हिड़मा उनकी गोली से क्यों नहीं मारा गया?
छत्तीसगढ़ पुलिस ने बताया कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ को नक्सल मुक्त करने के लिए सुरक्षा बलों को 10 महीने पहले 31 मार्च 2026 तक की डेडलाइन दी थी, लेकिन अब ऐसा लगता है कि इसके पहले ही केंद्र सरकार बस्तर को नक्सल मुक्त होने की घोषणा कर सकती है, क्योंकि केंद्र सरकार को हिड़मा के ही मारे जाने का इंतजार था। उसके खात्मे से अब दक्षिण बस्तर नक्सल मुक्त माना जाता सकता है। उत्तर बस्तर से पहले ही नक्सलवाद का सफाया हो चुका है।
सेवा निवृत्त अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक-नक्सल आरके. विज बस्तर की नक्सल समस्या को अच्छी तरह से समझते हैं, वे बस्तर रेंज के महानिरीक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। उनका कहना है कि नक्सलियों के पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी बटालियन नंबर-1 के कमांडर माड़वी हिड़मा का मारा जाना सुरक्षाबलों के लिए बड़ी सफलता है। वह शुरू से ही दक्षिण बस्तर में मिलिट्री कार्रवाई में सक्रिय रहा है। वह लक्सलियों के उन लीडरों में शामिल से एक था, जो शस्त्र संघर्ष को जारी रखना चाहता था । इसलिए वह आंध्र प्रदेश की ओर चला गया था।
उन्होंने कहा कि माड़वी हिड़मा के मारे जाने के बाद अब नीचे के कैडर का मनोबल टूटेगा, दक्षिण-पश्चिम बस्तर के नक्सलियों का अभी आत्मसमर्पण करना बाकी है । हालांकि, अभी नक्सलियों के संगठन में कुछ बड़े लीडर जैसे देवजी, मिसिर बेसरा, बारसे देवा, गणपति मौजूद हैं, जो लड़ाई जारी रखना चाहते हैं। वहीं, तेलंगाना और ओडिशा स्टेट कमेटी ने अभी भी लड़ाई जारी रखने के संबंध में बयान जारी किया है, इसलिए हो सकता है कि यह लड़ाई कुछ समय तक और चले, लेकिन नक्सली काफी कमजोर हो चुके हैं और उनकी लड़ने की क्षमता भी कम हो चुकी है। इसलिए विजय अंततः सुरक्षा बलों की होगी। सुरक्षा बलों को चाहिए कि वे अलर्ट रहें और ऑपरेशन जारी रखें। इसके साथ ही राज्य सरकार विकास और पुनर्वास पर फोकस करे।
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) सुंदरराज पी. की ओर से बुधवार बताया गया है कि माड़वी हिडमा का अन्य नाम हिडमालू, हिडमन्ना, संतोष, देवा, विलास, अनिल (उम्र 50 वर्ष), निवासी-पवूर्ती, जगरगुंडा, सूकमा (छत्तीसगढ़) है। उसने गांव की प्राथमिक शाला में पांचवी तक की पढ़ाई की। कोया ,गोंडी, हल्बी, दोरला, हिंदी, छत्तीसगढ़ी, तलेगु भाषा का वह जानकार था। नक्सली संगठन में हिडमा की भर्ती बाल संगठन सदस्य के तौर पर बद्रन्ना ने 1991 में की थी।
आईजी सुंदरराज पी. ने कहा कि बस्तर और पड़ोसी राज्यों में पुलिस व सुरक्षा बलों के निरंतर और समन्वित प्रयासों ने अंततः माडवी हिडमा की हिंसक विरासत का अंत कर दिया है। उसकी निष्क्रियता के साथ क्षेत्र में शांति स्थापना और सामान्य स्थिति बहाली का एक नया अध्याय प्रारंभ होता है। माडवी हिड़मा ने सरकार, पुलिस, सुरक्षाबलों और यहां तक कि अपने परिवार की बार-बार की अपीलों को भी अनदेखा किया और कभी हिंसा का रास्ता नहीं छोड़ा। यह शेष बचे कुछ माओवादी कैडरों और कमजोर नेतृत्व के लिए एक सबक होना चाहिए कि वे वास्तविकता स्वीकार करें और मुख्यधारा में लौटकर शांतिपूर्ण और सार्थक जीवन जिएं।
आईजी ने बताया कि 1991 में वह बाल संगठन के सदस्य के रूप में नियक्त हुआ। 2002 में बालाघाट क्षेत्र में सक्रिय हुआ, 2004 में कोंटा एरिया कमेटी का सचिव बनाया गया। उसके बाद 2007 में कंपनी नंबर 03 का कमांडर बना। 2009 में वह पीएलजीए बटालियन का उप कमांडर बना, जबकि 2009 से 2021 तक वह सैन्य बटालियन का प्रभारी/कमांडर बना । 2011 में वह दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) का सदस्य और बटालियन प्रभारी बना। 2023-24 में सीसीएम के रूप में नक्सली संगठन में सक्रिय रहा।
माड़वी हिडमा इन मुख्य हमलों/साज़िश में शामिल रहावर्ष 2005 – इनजिरम आईईडी विस्फोट हमला: 6 सरक्षाकर्मी बलीदान।
वर्ष 2006 – दरभागुड़ा (एर्राबोर) सलवा जुडूम आंदोलन के दौरन वाहन में विस्फोट: 28 नागरिक मारे गए और 28 घायल।
वर्ष 2006 – मानिकोंटा (एर्राबोर) सलवा जुडूम आदोलन पर हमला: 15 नागरिक मारे गए और 18 घायल।
वर्ष 2006 – कोटाचेरू आईईडी विस्फोट हमला: 9 सुरक्षाकर्मी बलिदान।
वर्ष 2007 – उरपाल मेट्टा हमला (एर्राबोर): 23 जवान बलिदान ।
वर्ष 2007 – एर्राबोर राहत शिविर पर हमला और आगजनी: 33 ग्रामीण मारे गए, सुरक्षाकर्मी भी बलिदान हुए।
वर्ष 2007 – मेटागुड़ा एर्राबोर आईईडी विस्फोट हमला: 8 सुरक्षाकर्मी बलिदान ।
वर्ष 2007 – ताड़मेटला पुलिस-नक्सली मुठभेड़: 12 सरक्षाकर्मी बलिदान ।
वर्ष 2007 – तारलागुड़ा गोलापल्ली पुलिस-नक्सली मुठभेड़: 12 सुरक्षाकर्मी बलिदान।
वर्ष 2009 – मिनपा चिंतागंफा पुलिस-नक्सली मुठभेड़: 10 सुरक्षाकर्मी बलीदान, 7 घायल।
वर्ष 2009 – आसिरगुड़ा इनजिरम आरओपी ड्यूटी : राशन ट्रैक्टर पर आईईडी विस्फोट से हमला: 7 सुरक्षकर्मी बलिदान, 4 ग्रामीण मारे गए।
वर्ष 2010 – ताड़मेटला चिंतागुफा हमला: 76 जवान बलिदान।
वर्ष 2014 - पेंटापड़-भेज्जी में पुलिस पर गोलीबारी, 3 जवान घायल।
वर्ष 2014 – कासलपाड़ किस्टाराम पुुलिस-नक्सली मुठभेड़: 14 सुरक्षाकर्मी बलिदान ।
वर्ष 2015 – पिडमेल चिंतागुफा पुलिस-नक्सली मुठभेड़: 7 सुरक्षाकर्मी (पीसी शंकरराव सहित) बलिदान, 14 घायल।
वर्ष 2017 – बरकापाल चिंतागुफा हमला: 25 सुरक्षाकर्मी बलिदान ।
वर्ष 2017 – बंकुपारा भेज्जी पुलिस-नक्सली मुठभेड़: 12 सुरक्षाकर्मी बलिदान, 2 घायल।
वर्ष 2020 – मिनपा चिंतागुफा हमला: 17 जवान बलिदान।
वर्ष 2021 – टेकलगुडमे मुठभेड़: 22 सुरक्षाकर्मी बलिदान।
वर्ष 2024 – धरमावरम कैंप हमला की वारदातों में शामिल रहा।
उल्लेखनीय है कि माड़वी हिड़मा पर 6 राज्य की सरकारों ने कुल एक करोड़ अस्सी लाख रूपये का इनाम घोषित कर रखा था, जिसमें 40 लाख (छत्तीसगढ़), 50 लाख (महाराष्ट्र), 25 लाख (ओडिशा), 25 लाख (आंध्र प्रदेश), 25 लाख(तेलंगाना ) और 15 लाख (मध्य प्रदेश) की सरकार की ओर से घोषित इनाम शामिल है। ---------------
हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे