
नई दिल्ली, 19 नवंबर (हि.स.)।
भारत की पहली स्वदेशी “सीआरआईएसपीआर” आधारित सिकल सेल रोग से मुक्ति के लिए जीन थेरेपी बुधवार को लॉन्च की गई। इस जीन थेरेपी का नाम “बिरसा 101” रखा गया है, जो भगवान बिरसा मुंडा को समर्पित है। सीआरआईएसपीआरएक जीनोम संपादन तकनीक है, जो डीएनए को काटने और उसमें स्थायी बदलाव करने के लिए आणविक कैंची की तरह काम करती है। बुधवार को ओखला में आयोजित समारोह में सीएसआईआर–आईजीआईबी द्वारा विकसित इस तकनीक को सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया को आधिकारिक रूप से हस्तांतरण करने के लिए समझौता हुआ। इस समझौते के तहत सीआरआईएसपीआर तकनीक को बड़े पैमाने पर, किफ़ायती उपचारों में बदला जाएगा। जिससे यह शोध केवल प्रयोगशालाओं में न रहकर वास्तविक मरीजों तक पहुंच पाएगा।
इस मौके पर मौजूद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एवं परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह ऐतिहासिक क्षण है और भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और जीनोमिक चिकित्सा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
उन्होंने कहा कि इस जीन थैरेपी का विकास और तकनीक हस्तांतरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 तक सिकल सेल–मुक्त भारत के विज़न की दिशा में एक बड़ा कदम है और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को भी आगे बढ़ाता है।
डॉ. सिंह ने बताया कि सीएसआईआर –आईजीआईबी द्वारा विकसित इस थैरेपी ने सिद्ध किया है कि भारत अत्याधुनिक जीन थैरेपी को दुनिया की तुलना में बहुत कम लागत में बना सकता है। जहां ऐसी थैरेपी की कीमत विदेशों में 20–25 करोड़ रुपये तक होती है। यह नवाचार विशेष रूप से मध्य और पूर्वी भारत की आदिवासी जनसंख्या के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा।
उन्होंने वैज्ञानिक संस्थानों को सरल भाषा में इन्फ़ोग्राफ़िक्स और सोशल मीडिया के माध्यम से जनता को इस उपलब्धि के बारे में जागरूक करने का आग्रह किया।
डॉ. सिंह ने बताया कि भारत में सरकारी वैज्ञानिक संस्थानों और उद्योग के बीच बढ़ती साझेदारी से कोरोना, एचपीवी समेत कई महत्वपूर्ण वैक्सीन विकसित हुईं। अब यही सहयोग जीन थैरेपी के क्षेत्र में भी तेजी लाई जा रही है।
उन्होंने कहा कि केवल सरकार पर निर्भर रहकर बायोटेक्नोलॉजी का विस्तार संभव नहीं है। इसमें उद्योग की भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण है।
डॉ. सिंह ने कहा कि “बीआईआरएसए 101” और सीआरआईएसपीआर प्लेटफ़ॉर्म को सीरम इंस्टीट्यूट जैसे दुनिया के प्रमुख निर्माता को सौंपने से यह सुनिश्चित होगा कि यह थेरेपी किफ़ायती, बहुसंख्यकों के लिए और वैश्विक मानकों के अनुरूप होगा, विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों के लिए यह वरदान साबित होगा।
इस मौके पर सीरम इंस्टीट्यूट का वक्तव्य
सीरम इंस्टीट्यूट के एक्ज़िक्युटिव डायरेक्टर डॉ. उमेश शालिग्राम ने कहा कि
दुनिया में जीन थैरेपी की कीमत 3 मिलियन डॉलर से भी अधिक होती है और यह धनी लोगों की पहुंच से भी बाहर है। हमारा मिशन है कि भारतीय नवाचार को सबसे गरीब तक पहुंचाया जाए। सीरम इंस्टीट्यूट ने अब तक 30 मिलियन से अधिक जीवन बचाए हैं, और हम 2047 तक सिकल सेल–मुक्त भारत के विज़न को पूर्ण समर्थन देते हैं।
क्या है जीन थेरेपी
जीन थेरेपी एक चिकित्सीय तकनीक है जो किसी आनुवंशिक बीमारी को ठीक करने में सक्षम है। इसका उद्देश्य आनुवंशिक बीमारी को ठीक करना है। इस थेरेपी से न केवल सिकल सेल एनिमिया जैसे बीमारियों को ठीक किया जा सकता है बल्कि आने वाले पीढ़ी को भी कई बीमारियों से मुक्ति मिल सकती है। इस तकनीक से रोग पैदा करने वाले दोषपूर्ण जीन को उसके स्वस्थ संस्करण से बदलकर या निष्क्रिय किया जाता है। यह कैंसर, हीमोफिलिया, और हृदय रोग जैसी कई बीमारियों के इलाज के लिए एक आशाजनक तरीका है। हालांकि अभी इस तकनीक का बेहद कम प्रयोग हो रहा है क्योंकि इस पर होने वाला खर्च करोड़ों रुपये में जाता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी