जेडएसआई का नया अध्ययन - भारत में नेवला शिकार और तस्करी पर लगेगा लगाम

19 Nov 2025 17:11:00
नेवला


कोलकाता, 19 नवम्बर (हि.स.)। प्राणी सर्वेक्षण विभाग (जेडएसआई) के वैज्ञानिकों ने भारत में पाई जाने वाली सभी नेवला प्रजातियों की पहचान के लिए बाल संरचना आधारित एक व्यापक प्रणाली विकसित की है, जिससे नेवले के अवैध शिकार और उनकी तस्करी पर प्रभावी रोकथाम में मदद मिलेगी। यह अध्ययन ‘डिस्कवर कंजर्वेशन’ शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और वन्यजीव प्रवर्तन एजेंसियों के लिए इसे एक महत्वपूर्ण फोरेंसिक साधन माना जा रहा है।

जेडएसआई के वैज्ञानिक एम. कमलकन्नन, जिन्होंने अध्ययन की अवधारणा तैयार की और इसे नेतृत्व प्रदान किया, ने बताया कि यह शोध उस फोरेंसिक कमी को पूरा करता है, जिसमें बालों की संरचना के आधार पर प्रजाति-स्तरीय पहचान संभव नहीं थी। उन्होंने कहा कि अब जब्त की गई वस्तुओं में पाए गए नेवले के बालों की पहचान आसानी से की जा सकेगी, जिससे अवैध व्यापार पर रोक लगेगी।

भारत में नेवले की छह प्रजातियां पाई जाती हैं - स्मॉल इंडियन मंगूस, इंडियन ग्रे मंगूस, इंडियन ब्राउन मंगूस, रूडी मंगूस, क्रैब-ईटिंग मंगूस और स्ट्राइप-नेक्ड मंगूस। ये छोटे मांसाहारी जीव पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके बावजूद, उच्च गुणवत्ता वाले पेंट ब्रश बनाने में नेवले के बाल की मांग के कारण देश में उनका बड़े पैमाने पर शिकार और तस्करी होती है।

विशेषज्ञों के अनुसार हर वर्ष करीब एक लाख नेवले मारे जाते हैं और मात्र एक किलोग्राम उपयोगी बाल बनाने के लिए करीब 50 जानवरों की आवश्यकता पड़ती है। ये ब्रश भारत के भीतर बेचे जाने के साथ-साथ मध्य पूर्व, अमेरिका और यूरोप तक अवैध रूप से भेजे जाते हैं। तस्करी के प्रमुख मार्ग उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु से होकर गुजरते हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय तस्करी अक्सर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और भारत-नेपाल, भारत-बांग्लादेश सीमाओं के रास्ते होती है।

वन्यजीव संरक्षण को मजबूत करने के लिए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत सभी छह नेवला प्रजातियों को क्रमबद्ध रूप से शेड्यूल-I श्रेणी में शामिल किया गया है। इसके बावजूद, जब्त किए गए ब्रशों में बालों की पहचान प्रवर्तन एजेंसियों के लिए चुनौती बनी हुई थी, क्योंकि प्रोसेसिंग में बालों का वह हिस्सा हट जाता है, जिसमें डीएनए मौजूद होता है। ऐसे मामलों में 'ट्राइको-टैक्सोनॉमी', यानी बाल संरचना का अध्ययन, वैज्ञानिक, त्वरित और सरल तरीका साबित होता है।

जेडएसआई की निदेशक धृति बनर्जी ने कहा कि विभाग को देशभर की एजेंसियों से नियमित रूप से जब्त सामग्री भेजी जाती है और यह अध्ययन हमारी वन्यजीव फोरेंसिक क्षमता को और मजबूत करेगा। कोरिया के पुक्योंग नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और अध्ययन सहयोगी डॉ. शांतनु कुंडू ने कहा कि सूक्ष्म विश्लेषण और सांख्यिकीय मॉडलिंग का संयोजन पहचान प्रक्रिया को अधिक सटीक और वैज्ञानिक बनाता है।

यह अध्ययन न केवल अवैध तस्करी पर रोक लगाएगा, बल्कि भारत की जैव विविधता की सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।--------------------

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

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