

- भोपाल में हुआ डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक का विमोचन
- मप्र के भोपाल में दी नैरेटिव के चक्रव्यूह से सावधान रहने की चेतावनी, परंपराओं और राष्ट्रवाद पर स्पष्ट संदेश
भोपाल, 21 नवंबर (हि.स.)। पुस्तकें राष्ट्र निर्माण का आधार हैं और उनका उद्देश्य सोए हुए मन को जगाना है, लेकिन आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कई लोग जागकर भी सोने का विकल्प चुन रहे हैं, जिन तक सत्य पहुंचाना अत्यंत कठिन होता जा रहा है। आज कुछ लोग राष्ट्र की अवधारणा को अत्यंत सीमित कर रहे हैं, जबकि भारत का राष्ट्रवाद समावेशी और व्यापक विचारधारा है जो किसी एक समुदाय, भाषा या विचारधारा तक सीमित नहीं। उक्त उद्गार पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को भोपाल में आयोजित एक साहित्यिक कार्यक्रम में वक्त किए।
दरअसल, वे मप्र की राजधानी भोपाल स्थित रवींद्र भवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य और पूर्व सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य की नई पुस्तक “हम और यह विश्व” के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे। यह धनखड़ का उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद किसी बड़े मंच पर पहला सार्वजनिक संबोधन था। उन्होंने कहा कि “संस्था लड़ सकती है…व्यक्ति नहीं। व्यक्तिगत स्तर पर लड़ना कठिन होता है, इसलिए हमें राष्ट्रीय और संस्थागत ताकत को समझना होगा।”
पुस्तक का विमोचन करते हुए धनखड़ का कहना था कि भोपाल आकर इस पुस्तक पर बोलने का अवसर उनके लिए सौभाग्य की बात है। हम और यह विश्व सिर्फ एक पुस्तक नहीं बल्कि भारत के गौरवशाली अतीत का दर्पण और भविष्य निर्माण की दिशा दिखाने वाला ग्रंथ है। यह पुस्तक आठ वर्षों के अनुभवों का संग्रह है, जिसमें श्री प्रणब मुखर्जी पर दो महत्लेवपूर्ण लेख भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा, “यह रचना भारत की गौरवशाली परंपराओं और इतिहास का दर्पण है। यदि हम सतह से नीचे उतरें, तो समझ पाएंगे कि हमारा अतीत कितना वैभवशाली रहा है।” इसके साथ ही पूर्व उप राष्ट्रपति का कहना था कि “भगवान करे कोई नैरेटिव के चक्कर में न फंसे। इस चक्रव्यूह में जो फंस गया उसका निकलना कठिन है। हालांकि मैं अपने बारे में नहीं कह रहा।” उन्होंने बिना किसी नाम का उल्लेख किए उन प्रवृत्तियों पर निशाना साधा जो समाज में गलत वैचारिक नैरेटिव फैलाकर सत्य को धूमिल करने की कोशिश कर रही हैं।
इस बीच वे हिन्दी भाषा से सीधे अंग्रेजी में बोलने लगे, साथ ही उनका तर्क था कि मैं अंग्रेजी में इसलिए बोल रहा हूं ताकि जो लोग देश की सकारात्मक छवि को समझना नहीं चाहते, वे भी स्पष्ट और सीधे शब्दों में भारत के वास्तविक स्वरूप से परिचित हों। उन्होंने यह भी कहा कि आज का भारत तेजी से बदल रहा है, हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है और विश्व मंच पर एक मजबूत, आत्मविश्वासी और निर्णायक देश के रूप में उभर रहा है। इसके साथ ही संबोधन के दौरान जब उन्हें फ्लाइट टाइम की याद दिलाई गई तो उन्होंने कहा कि कर्तव्य सर्वोपरि फ्लाइट बाद में। “मैं फ्लाइट की चिंता में अपने कर्तव्य को नहीं छोड़ सकता।” इस कथन पर पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। उन्हें पुस्तक के लेखक डॉ. वैद्य को भारत की महान ज्ञान परंपरा का मनीषी बताया और उनके पिताजी से मिलने की अपनी इच्छा एवं उनके विशद् ज्ञान का भी जिक्र किया।
कार्यक्रम में लेखक डॉ. मनमोहन वैद्य ने धनखड़ को अपना अभिभावक बताते हुए उनका आभार व्यक्त किया। इसके साथ ही उनका कहना था कि भारत को पहले स्वयं से गहरायी से जानकर फिर इस पुस्तक में उसे समाहित करने का एक प्रयास हुआ है। भारत को बनाने से पहले आवश्यक है कि हम पहले भारत को माने, उसके बाद भारत को जाने, फिर भारत के बने और उसके बाद भारत को बनाएं।
डॉ. वैद्य ने अपने संबोधन की शुरुआत उस अनुभव से की जिसने उन्हें लेखन की ओर प्रेरित किया। संघ के तृतीय वर्ष प्रशिक्षण वर्ग में जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया था, तब कुछ लोगों ने बिना कारण विरोध किया। इस एक घटना ने लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में केवल 1 से 6 जून के बीच 378 लोगों ने उनसे मिलने का अनुरोध किया था, जो यह दर्शाता है कि संघ को लेकर समाज में संवाद की गहरी उत्सुकता है। संघ पर बेवजह किया गया विरोध कई बार संघ की स्वीकार्यता को और बढ़ा देता है। जॉइन आरएसएस वेबसाइट का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि सिर्फ उस वर्ष अक्टूबर माह में ही 48,890 लोगों ने स्वयंसेवक के रूप में जुड़ने का अनुरोध किया। यह भारत के सामाजिक परिवर्तन और संगठन के प्रति बढ़ते आकर्षण को दर्शाता है।
भारत की अवधारणा पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमें उन कथनों को समझना होगा जो हमारी सोच को प्रभावित करते हैं। उन्होंने लोकप्रिय गीत “सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा” की पंक्ति “हम बुलबुले हैं इसके” पर बताया कि ऐसे भाव हमें अपनी मूल चेतना से दूर करते हैं। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि भारत में सांस्कृतिक विविधता है। अपितु यह कहना अधिक सही है कि भारत की संस्कृति एक ही है जो विविध रूपों में प्रकट होती है। भारत में विविधता मूल संस्कृति की शाखाएं हैं, उसका विकल्प नहीं।
साथ ही डॉ. वैद्य ने कहा कि वेलफेयर स्टेट की अवधारणा भारत की अपनी अवधारणा नहीं है, बल्कि पश्चिम से आयातित विचार है। भारत की परंपरा समाज-आधारित दायित्व पर आधारित रही है। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक चार महत्वपूर्ण खंडों में विभाजित है और प्रत्येक खंड भारत के विमर्शों पर नई दृष्टि प्रदान करता है। इस अवसर पर संत रीतेश्वर महाराज जी का सभी को आशीर्वचन प्राप्त हुआ।
अध्ययन ही भारत की परंपरा का मूल: विष्णु त्रिपाठी
इस अवसर पर जागरण समूह के समूह संपादक विष्णु त्रिपाठी ने कहा कि यह पुस्तक सिर्फ घर या पुस्तकालय में संग्रह के लिए नहीं लिखी गई है, बल्कि इसके अध्ययन, मनन और भाष्य की आवश्यकता है। भारत की परंपरा किसी एक पुस्तक या एक मत पर आधारित नहीं है। यहां ज्ञान की अनेक धाराएं हैं। हमारी आध्यात्मिकता भी अध्ययन और चिंतन से ही जन्म लेती है।
कार्यक्रम की शुरुआत में राजीव तुली ने सुरुचि प्रकाशन की परंपरा और भविष्य की दिशा का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि सुरुचि प्रकाशन समाज जीवन के विविध महत्वपूर्ण विषयों पर लगातार पुस्तकों, शोध कृतियों और विचारपरक सामग्री का प्रकाशन कर रहा है।आने वाले महीनों में वॉकिज़्म, पंच परिवर्तन और अन्य बौद्धिक मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण प्रकाशन सामने आने वाले हैं।
कार्यक्रम में गणमान्य नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और बौद्धिक जगत से जुड़े अनेक प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. साधना बलवटे ने किया। अंकुर पाठक ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उपस्थित सभी अतिथियों, गणमान्यजनों और पुस्तक प्रेमियों का धन्यवाद किया। वंदे मातरम् के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी