एकता के लिए एकरूपता आवश्यक नहींः मोहन भागवत

21 Nov 2025 19:07:00
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत मणिपुर प्रवास के दूसरे दिन आज जनजातीय प्रतिनिधियों के साथ संवाद कार्यक्रम की तस्वीर।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत मणिपुर प्रवास के दूसरे दिन आज जनजातीय प्रतिनिधियों के साथ संवाद कार्यक्रम की तस्वीर।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत मणिपुर प्रवास के दूसरे दिन आज जनजातीय प्रतिनिधियों के साथ संवाद कार्यक्रम की तस्वीर।


इम्फाल, 21 नवम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मणिपुर प्रवास के दूसरे दिन शुक्रवार को यहां जनजातीय प्रतिनिधियों के साथ संवाद किया। उन्होंने समाज में स्थायी शांति, सौहार्द और प्रगति के लिए एकता एवं चरित्र निर्माण को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि भ्रातृत्व ही भारत का धर्म है। उन्होंने कहा कि एकता के लिए एकरूपता आवश्यक नहीं है। डॉ. भागवत ने कहा कि संघ पूर्णतः सामाजिक संगठन है, जिसका उद्देश्य समाज को जोड़ना है। संघ किसी के विरुद्ध नहीं है। यह मित्रता, स्नेह और सद्भाव से समाज को मजबूत बनाने का कार्य करता है। उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यतागत चेतना हजारों वर्षों पुरानी है। उन्होंने कहा, “हमारी विविधता सुंदर है, पर हमारी चेतना एक है। एकता के लिए एकरूपता आवश्यक नहीं। अध्ययन बताते हैं कि भारत के लोगों का सांस्कृतिक और आनुवंशिक डीएनए 40 हजार वर्षों से एक है। डॉ. भीमराव अंबेडकर को उद्धृत करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि संविधान के मूल मूल्य- स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व- भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरित हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देश इसलिए असफल रहे क्योंकि उन्होंने भाईचारा नहीं अपनाया; जबकि भारत में भ्रातृत्व ही धर्म है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ राजनीति नहीं करता और न किसी संगठन को निर्देशित करता है। उन्होंने कहा कि संघ मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण का अभियान है। इसकी सच्चाई जाननी हो तो शाखा में आइए। जनजातीय नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों पर उन्होंने भरोसा दिलाया, “आपके मुद्दे हम सबके मुद्दे हैं।” संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि औपनिवेशिक नीतियों ने कई क्षेत्रीय विभाजनों की नींव रखी, जिन्हें संवाद और संवैधानिक ढांचे के भीतर ही हल किया जाना चाहिए। उन्होंने संघ के पंच परिवर्तन- सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वबोध और नागरिक कर्तव्य का उल्लेख करते हुए जनजातीय समुदायों से अपनी परंपराओं, भाषाओं और स्वदेशी जीवन शैली को गर्व के साथ अपनाने का आह्वान किया। डॉ. भागवत ने कहा कि आज विश्व भारत की ओर मार्गदर्शन के लिए देख रहा है। हमें एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण करना है और संघ इसी दिशा में कार्यरत है। डॉ. भागवत ने कहा कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र-सभ्यता है, जिसकी झलक रामायण, महाभारत से लेकर ब्रह्मदेश और वर्तमान अफगानिस्तान तक मिलती है। उन्होंने कहा कि हिंदू सभ्यता स्वीकार्यता, परस्पर सम्मान और साझा चेतना पर आधारित है। उन्होंने युवाओं से सांस्कृतिक आत्मविश्वास के साथ नेतृत्व करने, परिवार और मूल्यों को प्राथमिकता देने तथा पश्चिमी भौतिकतावाद और अतिवादी व्यक्तिवाद से सावधान रहने की अपील की। उन्होंने युवाओं से आग्रह करते हुए कहा कि जब भारत उठेगा, तब ही विश्व उठेगा।कार्यक्रम के बाद भास्कर प्रभा परिसर में पारंपरिक मणिपुरी भोजन का आयोजन किया गया। इस दौरान 200 से अधिक जनजातीय प्रतिनिधियों ने सम्मिलित होकर सामाजिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत किया। जनजातीय नेतृत्व संवाद और सामूहिक भोज का यह आयोजन “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना को साकार करते हुए संपन्न हुआ।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीप्रकाश

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