
केप टाउन, 21 नवंबर (हि.स.)। कांग्रेस सांसद और संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व अवर महासचिव शशि थरूर ने जाेर देकर कहा है कि गाजा और यूक्रेन जैसे वैश्विक संकटों में ‘असफलताओं’ के बावजूद संयुक्त राष्ट्र(यूएन) प्रासंगिक बना हुआ है। हालांकि वैश्विक सहयाेग काे मजबूत बनाने के लिए इसे और अधिक समावेशी, प्रतिनिधिपूर्ण और प्रतिक्रियाशील बनाना एक बड़ी चुनौती है।
थरूर ने दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में 15वें 'डेसमंड टूटू अंतर्राष्ट्रीय शांति व्याख्यान' में भाग लेते हुए गुरूवार काे यह बात कही। थरूर ने कहा, “आज जब लोग गाजा और यूक्रेन पर यूएन की असफलताओं की निंदा करते हैं, तो मैं फिर से स्वीकार करता हूं कि यूएन पूरी तरह से निर्दाेष नहीं है और न ही कभी रहा था, लेकिन यह बेहद जरूरी बना हुआ है।”
उन्होंने पूर्व यूएन महासचिव डाग हैमरश्शोल्ड के शब्दों का हवाला देते हुए कहा, संयुक्त राष्ट्र संघ 'नरसंहार' को स्वर्ग की ओर ले जाने के लिए नहीं बना, बल्कि मानवता को नरक से बचाने के लिए बना है।” थरूर ने जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र संघ को छोड़ना ‘साझा मानवता के विचार’ को त्यागने जैसा होगा।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र भूखे को भोजन, विस्थापितों को आश्रय और बेआवाजों को आवाज देता रहा है, फिर भले ही यह नौकरशाही और राजनीतिक बाधाओं का सामना कर रहा हो। लेकिन गाजा में इजराइल-हमास संघर्ष और यूक्रेन में रूस के आक्रमण ने सुरक्षा परिषद को ठप कर दिया है, जहां अमेरिका और रूस जैसे स्थायी सदस्यों के वीटो ने कार्रवाई रोकी है।
मीडिया खबराें के अनुसार, थरूर ने इस दाैरान धार्मिक सहिष्णुता पर भी चर्चा की। स्वामी विवेकानंद के ‘सर्व धर्म समभाव’ के सिद्धांत का जिक्र करते हुए उन्हाेंने कहा कि सहनशीलता की जगह ‘स्वीकृति’ को अपनाना चाहिए।
गाैरतलब है कि यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पिछले साल सितंबर में सुरक्षा परिषद की आलोचना करते हुए गाजा, यूक्रेन और सूडान जैसे संघर्षों में परिषद की ‘श्रृखंलाबद्ध असफलताओं’ का जिक्र किया था। गुटेरेस ने कहा था कि परिषद ‘पुरानी, अन्यायपूर्ण और अप्रभावी’ हो चुकी है, जिससे यूएन की विश्वसनीयता को ठेस पहुंची है।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र से जुड़े कई संगठन और एजेंसियां गाजा में मानवीय सहायता पहुंचा रही हैं, जहां 65,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और भुखमरी का संकट है।
यूक्रेन में रूस के आक्रमण के करीब साल पूरे होने पर भी यूएन ने लाखों विस्थापितों को सहायता दी है, लेकिन सुरक्षा परिषद में रूस के वीटो ने शांति प्रयासों को बाधित किया है।
इस बीच
थरूर ने करुणा और आशा पर आधारित टूटू की विरासत को आगे बढ़ाने का आह्वान करते हुए कहा कि वैश्विक शांति के लिए अंतर-धार्मिक स्वीकृति और न्याय के साथ शांति जरूरी है। थरूर ने यूएन को ‘संभावनाओं का प्रतीक’ बताया, जो पूर्णता का नहीं बल्कि मानवता की रक्षा का प्रतीक है।
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हिन्दुस्थान समाचार / नवनी करवाल