
पेरिस, 22 नवम्बर (हि.स.)। वैश्विक मंचों के भविष्य पर तीखे और साहसिक वक्तव्यों के लिए प्रसिद्ध फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। 2019 में नाटो को “ब्रेन-डेड” करार देकर चौंकाने वाले मैक्रों ने अब दक्षिण अफ्रीका में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में कहा है कि यह मंच अपने चक्र के अंत तक पहुंच रहा है और इसके अस्तित्व पर भी जोखिम मंडरा रहा है।
जी-20 का सबसे प्रभावशाली सदस्य अमेरिका इस बार सम्मेलन से अनुपस्थित रहा, जिसे मैक्रों ने समूह की कमजोर होती एकता का प्रमुख संकेत बताया। जोहान्सबर्ग में अपने उद्घाटन संबोधन में उन्होंने कहा कि पहली बार अफ्रीकी महाद्वीप पर हो रहा यह शिखर सम्मेलन ऐतिहासिक है, “लेकिन साथ ही यह संकेत देता है कि जी-20 शायद अपने स्वाभाविक अंत की ओर बढ़ रहा है।”
सम्मेलन की औपचारिक ‘फैमिली फोटो’ ने भी इस क्षीण पड़ती ऊर्जा को उजागर किया। आमतौर पर बड़े नेताओं की उपस्थिति वाली यह फोटो ग्लोबल नेतृत्व का प्रतीक मानी जाती है, लेकिन इस बार कई प्रमुख नेता गायब रहे और तस्वीर बेहद फीकी दिखाई दी। सात नेताओं की जगह प्रतिनिधियों को शामिल किया गया, जबकि इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी भी मूल लाइन-अप से अनुपस्थित रहीं।
मैक्रों ने कहा कि भू-राजनीतिक संकटों पर वैश्विक सहमति बनाना कठिन हो गया है और मानवीय कानूनों की रक्षा तथा देशों की संप्रभुता—खासकर यूक्रेन के संदर्भ में—चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि “हम साझा मानक स्थापित करने में संघर्ष कर रहे हैं,” और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए तत्काल सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मैक्रों की ये टिप्पणियां केवल वैश्विक संस्थाओं की कमजोरी दर्शाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी अपनी राजनीतिक यात्रा का दार्शनिक आकलन भी हैं। 2027 में उनके कार्यकाल के समाप्त होने के साथ वे जी-7 के सबसे अनुभवी नेताओं में एक बने हुए हैं और बहुपक्षीय ढांचे के भविष्य को लेकर लगातार चिंता जताते रहे हैं।
यूरोप की सामरिक स्वतंत्रता के लिए उनकी “सच्ची यूरोपीय सेना” जैसी पुरानी मांगें भी अब अंतरराष्ट्रीय बहस का हिस्सा हैं, हालांकि आलोचकों का कहना है कि फ्रांस अपने दावों के अनुरूप कदम उठाने में अक्सर पीछे रह जाता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / आकाश कुमार राय