
काठमांडू, 24 नवंबर (हि.स.)। नेपाल के विदेश मंत्रालय का कहना है कि विदेशों में बसे नेपाली नागरिकों के लिए किसी प्रकार से मतदान की व्यवस्था बनाना सम्भव नहीं है।
थिंक टैंक नीति अनुसन्धान प्रतिष्ठान ने विदेशों में कार्यरत नेपाली नागरिकों को तीन प्रकार के मतदान-विकल्प उपलब्ध कराने के उपायों पर एक अध्ययन सरकार को प्रस्तुत किया था — जिसमें दूतावास में व्यक्तिगत उपस्थिति द्वारा मतदान, तकनीक-सहायित डाक मतदान और इंटरनेट मतदान शामिल थे।
विदेश मन्त्रालय ने विश्वभर में फैले नेपाली दूतावासों-मिशनों को पत्र लिखकर पूछा था कि विदेश-स्थलीय मतदान संभव है या नहीं। इस पर मिशनों से मिली प्रतिक्रिया के बाद दूतावासों में उपस्थित होकर मतदान करवाना सम्भव न होने का निष्कर्ष निकाला गया।
नीति अनुसन्धान प्रतिष्ठान के अध्ययन में कहा गया कि विदेश में नेपाली मिशनों में औसतन केवल 4.2 कर्मचारी हैं, जिससे मतदान व्यवस्था सम्भव नहीं है। नेपाल के ४४ देशों में मिशन हैं, जहाँ कुल १८६ कर्मचारी कार्यरत हैं। उदाहरणतः मलेशिया में २२, जबकि कुछ महावाणिज्य दूतावासों में मात्र २ कर्मचारी हैं।
नीति अनुसन्धान प्रतिष्ठान ने सुझाव दिया कि यदि व्यक्ति-उपस्थिति द्वारा मतदान करवाना हो तो नेपाल से कर्मचारी भेजना पड़ेगा। विदेश में नेपाली नागरिकों को मतदान सुविधा उपलब्ध कराने में मंत्रालय ने निम्नलिखित दस प्रमुख चुनौतियाँ उजागर की हैं:
1. तथ्यांक-अभाव: मंत्रालय के अनुसार लगभग १११ देशों में संस्थागत रूप से तथा १७८ देशों में नेपाली नागरिक हैं, परंतु यह सुनिश्चित तथ्य नहीं कि “कितने नेपाली कहाँ हैं”। उदाहरणस्वरूप यूएई के आबूधाबी व दुबई में कितने नेपाली है, इसका कोई आंकड़ा नहीं है — इसलिए मतदान केन्द्र कहाँ खोलें, यह तय करना मुश्किल है।
2. सुरक्षा में जटिलताएँ: विदेश स्थित दूतावासों को स्थानीय सरकार द्वारा २ सुरक्षाकर्मी उपलब्ध कराए जाते हैं। यदि नेपाल को खुद व्यवस्था करनी पड़े तो यह महँगा और अनिश्चित होगा। यदि विदेशी देश के सुरक्षाकर्मी उल्लंघन करें, तो कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकता है।
3. दूतावास में पर्याप्त स्थान नहीं: कई दूतावास कम फ्लोर या अपार्टमेंट में हैं — उदाहरण के लिए ग्वाङ्झो में नेपाली मिशन २१वें तल पर, न्यू यॉर्क में १७वें तल पर, मलेशिया में २२वें तल पर। ऐसी स्थिति में लाइन लगाकर मतदान करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।
4. कर्मचारी व प्रवासी नागरिकों के बीच तनाव: विदेश में नेपाली कर्मचारी एवं प्रवासी नागरिक दूतावास व सरकार के प्रति नकारात्मक रवैया रखते हैं, जिससे मतदान के दौरान कर्मचारी सुरक्षा व व्यवस्था में समस्या उत्पन्न हो सकती है।
5. दूतावास के बाहर मतदान व्यवस्था का प्रश्न: यदि दूतावास नहीं चल सके तो स्कूल या सामुदायिक स्थल भाड़ा पर लिए जाने पड़ेंगे — इसके लिए भी सुरक्षा तथा व्यवस्थापन की जिम्मेदारी सरकार पर होगी। उदाहरणस्वरूप कुवैत में एक स्कूल-स्थल के लिए मिस्र ने ६ हजार दिनार भाड़ा चुकाया था, जबकि मात्र १५ हजार मतदाता ही आए थे।
6. मतदान दिवस की चुनौतियाँ: विदेश में शिफ्ट व छुट्टियाँ का समय भिन्न है — उदाहरण के लिए खाड़ी देश जहाँ रविवार कामकाजी दिन हो सकता है। कर्मचारियों को दूतावास आने-जाने में घंटों लग सकते हैं।
7. कहाँ दूतावास नहीं है: कुछ देशों में नेपाल का कोई मिशन नहीं है — उदाहरणस्वरूप कैरेबियाई देश तथा सूडान। ऐसे स्थानों में मतदान व्यवस्था कैसे हो सकेगी, यह तय नहीं है।
8. दोहरी नागरिकता की सत्यापन समस्या: अध्ययन में सुझाव दिया गया कि पासपोर्ट पुनः जारी तथा पीआर/टीआर धारक नेपाली नागरिक को मतदान अधिकार देना चाहिये, लेकिन विदेश नागरिकताधारी के प्रमाण-पुष्टि करना कठिन है।
9. मतदाताओं में डिजिटल साक्षरता की कमी: खाड़ी देश के हजारों नेपाली कामगारों को ई-सन्देश या घोषणाएँ समझना भी कठिन है।
10. बजट की कमी: विदेश स्थित मिशनों को मतदान-प्रशिक्षण व व्यवस्थापन हेतु पर्याप्त बजट नहीं मिलता — वार्षिक दस लाख रूपए की बजट से ऐसी बड़ी व्यवस्था संभव नहीं है।
इन सब चुनौतियों के बावजूद विदेश सचिव अमृत राई ने यह भी कहा है कि चुनौतियों के बावजूद विदेश स्थित नेपाली नागरिकों द्वारा मतदान करवाने का पायलट कार्यक्रम कुछ देशों में चलाया जा सकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज दास