
- हमारे कुछ शिपयार्ड इस दशक में 100 फीसदी स्वदेशी कंटेंट हासिल करने की राह पर
नई दिल्ली, 25 नवंबर (हि.स.)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भरोसा जताया है कि आने वाले एक दशक में भारत शिपबिल्डिंग, शिप रिपेयर और समुद्री इनोवेशन के लिए एक ग्लोबल हब बनेगा। उन्होंने कहा कि आज हम एयरक्राफ्ट कैरियर से लेकर एडवांस्ड रिसर्च वेसल और एनर्जी बचाने वाले कमर्शियल जहाज तक सब कुछ डिलीवर करने में सक्षम हैं। दुनिया के समुद्री इतिहास में भारत की छाप है। हमारे पुरखों के लिए समुद्र सरहद नहीं थे, वे सांस्कृतिक, आर्थिक और स्ट्रेटेजिक जुड़ाव के पुल थे। आज इस विरासत का सम्मान करते हुए हम पुरानी यादों से पीछे मुड़कर नहीं देखते, बल्कि हम एक मकसद के साथ आगे देखते हैं।
रक्षा मंत्री मंगलवार को नई दिल्ली में ‘समुद्र उत्कर्ष’ सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारे पुरखों ने न सिर्फ मसालों, कपास और मोतियों का व्यापार किया, बल्कि वे महाद्वीपों के पार विचार, मूल्य और संस्कृति भी ले गए। भारत के लिए समुद्री व्यापार पर निर्भरता खास तौर पर ज्यादा है। भारत का लगभग 95 फीसदी व्यापार वॉल्यूम के हिसाब से और लगभग 70 फीसदी वैल्यू के हिसाब से समुद्री रास्तों से होता है। ऐसा हिंद महासागर में भारत की स्ट्रेटेजिक लोकेशन और 7,500 किमी. लंबी कोस्टलाइन की वजह से भी है। ट्रांसपोर्टेशन का यह तरीका महाद्वीपों के बीच बल्क कार्गो ले जाने, ग्लोबल सप्लाई चेन को आसान बनाने और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को सपोर्ट करने का सबसे सस्ता और कुशल तरीका बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में हमने म्यांमार भूकंप के दौरान 'ऑपरेशन ब्रह्मा' लॉन्च किया, जिसमें भारतीय जहाज सतपुड़ा, सावित्री, घड़ियाल, करमुक जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्म तैनात किए गए, जिनसे बड़े पैमाने पर ज़रूरी मानवीय राहत पहुंचाई गई। भारत में बने प्लेटफॉर्म ने बार-बार दिखाया है कि वे सिर्फ देश की रक्षा ही नहीं, बल्कि इंसानियत की भी सेवा करते हैं। वर्ष 2015 में यमन में ऑपरेशन राहत से लेकर महामारी के दौरान ऑपरेशन समुद्र सेतु तक भारतीय जंगी जहाजों ने नागरिकों को घर पहुंचाया है, मेडिकल मदद पहुंचाई है और हिंद महासागर में राहत पहुंचाई है। हमारे शिपयार्ड तेजी से पर्यावरण के अनुकूल टेक्नोलॉजी अपना रहे हैं। ये तरक्की हमारे शिपयार्ड को समुद्री विकास में सक्रिय योगदान देने वाले के तौर पर स्थापित करती है। ऐसा करके भारत के शिपयार्ड भविष्य के लिए एक सस्टेनेबल ब्लू इकॉनमी बना रहे हैं।
रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि हमारे शिपयार्ड डिफेंस प्लेटफॉर्म के अलावा कई तरह के खास जहाज डिजाइन और बनाते हैं, जैसे ओशनोग्राफिक रिसर्च शिप, फिशरीज़ प्रोटेक्शन वेसल, हाइड्रोग्राफिक सर्वे शिप, पॉल्यूशन कंट्रोल वेसल और कोस्टल पेट्रोल क्राफ्ट। ये प्लेटफॉर्म हमारे समुद्रों की गहरी साइंटिफिक समझ को मुमकिन बनाते हैं, मरीन इकोसिस्टम की मॉनिटरिंग को मजबूत करते हैं। साथ ही भारत के बड़े कोस्टलाइन और एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन में समुद्री कानून लागू करने की काबिलियत को बढ़ाते हैं। भारतीय नौसेना के पास एडवांस स्टेज में 262 स्वदेशी डिजाइन और डेवलपमेंट प्रोजेक्ट चल रहे हैं। मारे कुछ शिपयार्ड इस दशक में 100 फीसदी स्वदेशी कंटेंट हासिल करने की राह पर हैं। इसका मतलब है कि भारत से सप्लाई होने वाले किसी भी नेवी के जहाज को सप्लाई चेन में कम से कम दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।--------------
हिन्दुस्थान समाचार / सुनीत निगम