राम मंदिर के ध्वजरोहण समारोह से सामाजिक समरसता का संदेश

25 Nov 2025 15:44:00
महर्षि वाल्मीकि मंदिर के समक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी


राम मंदिर


बोलते हुए डॉक्टर मोहन राव भागवत


अयोध्या, 25 नवम्बर (हि.स.)। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा फहरा दी गई है। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच यह ध्वजारोहण अभिजीत मुहूर्त में संपन्न हुआ। इस ऐतिहासिक क्षण ने संपूर्ण अयोध्या को भक्ति भाव से ओतप्रोत कर दिया।

समाराेह में विशिष्ट अतिथि, संत-महंत और हजारों श्रद्धालु मौजूद रहे। राम मंदिर के ध्वजारोहण समारोह में अनुसूचित जाति, जनजाति के संत, महंत, पुजारी, कथावाचकों व जाति बिरादरी के मुखिया, चौधरी, वनवासी संतों को बुलाकर सामाजिक समरसता का संदेश देने का काम भी किया गया है।

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने बाकायदा सामाजिक समरसता गतिविधि के सहयोग से ऐसे लोगों की सूची मंगवाकर उन्हें आमंत्रित ही नहीं किया, अपितु उनको अयोध्या लाने और यहां ठहराने की व्यवस्था की। इसके पीछे ट्रस्ट की मंशा यह थी कि भगवान श्रीराम सबके हैं। राम मंदिर के आन्दोलन के दौरान नारा लगता था कि 'राम ने उत्तर दक्षिण जोड़ा। भेदभाव का बंधन तोड़ा।'' समता ममता के उदगाता, राम से है हम सब का नाता।' इस नारे की सार्थकता आज सिद्ध हुई है। मंदिर परिसर में महर्षि वाल्मीकि, माता शबरी और निषाद राज की प्रतिमा स्थापित होने से श्रीराम की जन्मभूमि सामाजिक समरसता की दिव्य भूमि बन गयी है। अब यहां से युगों-युगों तक समरसता की सरिता प्रवाहित होती रहेगी।

श्रीराम मंदिर के परकोटे में सप्त ऋषियों के मंदिर में महर्षि वाल्मीकि का मंदिर बना है। महर्षि वाल्मीकि, देवी अहिल्‍या, निषादराज गुहा और माता शबरी का मंदिर बना है। इस नाते श्रीराम की जन्मभूमि सामाजिक समरसता की सामार्थ्य भूमि बन गयी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि मंदिर में जाकर पुष्पार्चन कर समरसता का संदेश दिया।

इसके अलावा मंदिर की दीवारों पर समरसता को पुष्ट करने वाले रामायण के दृश्य उकेरे गए हैं। सरकार ने भी अयोध्या में बने एयरपोर्ट का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर रखा है। अयोध्या के अस्पताल का नाम श्रीराम चिकि​त्सालय है तो राजकीय मे​डिकल कॉलेज महाराज दशरथ के नाम से बना है। इसके अलावा देशभर में अयोध्या ऐसा धाम है जहां यादव मंदिर, रेदास मंदिर, निषाद मंदिर, प्रजापति मंदिर, बढ़ई मंदिर और धोबी मंदिर और विभिन्न मंदिर जातीय समरसता का प्रतीक हैं।

समारोह में आमंत्रित लोगों में सामाजिक रूप से पिछड़े और वंचित समुदायों के लोगों को विशेष तौर पर न्योता दिया गया है। थारू, रैदास, पासी, खटिक, वाल्मीकि, कोरी, लोनिया, कश्यप, कहार, धनगर, निषाद, मल्लाह, तेली, नाई, धोबी, मोची, नट, मुसहर, धनकट, पत्थरकट, लोहार, बंजारा, सपेरा, बहेलिया, कंजड़, मदारी, कोल, भील, जोगी, गिहार, वनटांगिया, धरकार व सुपंच, सुदर्शन इत्यादि जातियों के प्रमुख लोगों को आमंत्रित किया था। इस समारोह में वैसे तो पूरे देश से लोग बुलाये गये थे लेकिन उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक अतिथि थे।

विश्व हिन्दू परिषद के सामाजिक समरसता आयाम के प्रमुख देव जी भाई रावत ने कहा कि वैसे तो भगवान श्रीराम का पूरा जीवन समरसतामय है। वनवास के दौरान भागवान राम ने वनवासियों को गले लगाया। निषाद राज से मित्रता ​की, केवट को गले लगाया, शबरी के बेर खाए, गिद्ध राज जटायु को पिता सम्मान दिया, राम मंदिर का पूरा परिसर सामाजिक समरसता का केन्द्र है। मंदिर परिसर के अंदर सामाजिक समरसता को पुष्ट करने वाले अनेक स्थान हैं।

पूर्व मंत्री रमापति शास्त्री ने कहा कि राम जन-जन के हैं। उनको किसी धर्म, सम्प्रदाय या जाति की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। राम मंदिर आन्दोलन में सर्वसमाज के लोगों ने हिस्सा लिया था। आज ध्वजारोहण प्रधानमंत्री ने किया। शास्त्री ने कहा कि विजय के बाद ध्वजारोहण होता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / बृजनंदन

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