मप्र स्थापना दिवस पर अभ्युदय मध्य प्रदेश” के रूप में दिखा संस्कृति, परंपरा और प्रगति का संगम

03 Nov 2025 23:38:01
मध्य प्रदेश ने अपने 70वें स्थापना दिवस पर “अभ्युदय मध्य प्रदेश”


मध्य प्रदेश ने अपने 70वें स्थापना दिवस पर “अभ्युदय मध्य प्रदेश”


मध्य प्रदेश ने अपने 70वें स्थापना दिवस पर “अभ्युदय मध्य प्रदेश”


- उत्सव के अंतिम दिन ड्रोन शो, महानाट्य सम्राट विक्रमादित्य और सुप्रसिद्ध गायिका स्नेहा शंकर की सुगम संगीत प्रस्तुति

भोपाल, 3 नवंबर (हि.स.)। देश के हृदय- मध्य प्रदेश ने अपने 70वें स्थापना दिवस पर “अभ्युदय मध्य प्रदेश” के रूप में संस्कृति, परंपरा और प्रगति का ऐसा संगम हुआ, जिससे हर दिल गर्व और उत्साह से भर गया। तीन दिनों तक चले इस भव्य समारोह में प्रदेश की लोक कलाओं, विविधताओं और विकास गाथा के मंचन ने बीते 70 वर्षों की यात्रा को सजीव कर दिया। सोमवार की शाम समारोह के समापन पर हर चेहरा मध्य प्रदेश के उज्ज्वल भविष्य की नई उम्मीदों से झिलमिला रहा था।

स्थापना दिवस के उत्सव के तीसरे एवं अंतिम दिवस भी भव्य ड्रोन शो का प्रदर्शन किया गया। इस शो में 2000 ड्रोन ने एक साथ विरासत से विकास'' पर केन्द्रित आसमान में आकृतियां बनाईं। इन आकृतियों में मध्य प्रदेश की समृद्ध विरासत के साथ सशक्त वर्तमान और उज्ज्वल भविष्य की आकृतियां आसमान को रोशन कर रही थीं। इसमें उद्योग और आधुनिकरण, रोजगार, विज्ञान, नीलकंठ आलोक, संस्कृति और विकास का संगम इत्यादि देखने को मिला।

सोमवार की शाम सर्वप्रथम महानाट्य सम्राट विक्रमादित्य का भव्य मंचन हुआ। दर्शकों के उत्साह और उमंग को देखते हुए इसका पुनः प्रदर्शन किया गया। यह महानाट्य मध्य प्रदेश के वैभवशाली अतीत के उस प्रेरणा–पुरुष की गाथा प्रस्तुत करता है, जिन्होंने न्याय, नीति और पराक्रम के बल पर उज्जयिनी एवं मध्य प्रदेश की भूमि को स्वर्ण युग में पहुँचाया। मंचन में सम्राट विक्रमादित्य के अदम्य साहस, उनकी प्रजावत्सलता और विद्या-संस्कृति के प्रति उनके समर्पण को सजीव रूप में प्रदर्शित किया गया।

भव्य संगीत, आकर्षक सेट, ऊंट, हाथी, घोड़े, पालकियों ने दर्शकों को उसी युग में पहुंचा दिया। कलाकारों के उत्कृष्ट अभिनय ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। इस महानाट्य की प्रस्तुति उज्जैन की संस्था विशाला सांस्कृतिक एवं लोकहित समिति द्वारा दी गई, जिसका निर्देशन संजीव मालवीय ने किया है। तीन अलग स्टेज पर अत्याधुनिक ग्राफिक, आश्रम एवं जंगल के भव्य सेट के साथ ही भव्य महाकाल मंदिर के प्रतिरूप सेट और 150 कलाकारों ने महानाट्य को जीवंत बना दिया।

विक्रमादित्य केवल योद्धा नहीं, बल्कि न्यायप्रिय और प्रजावत्सल शासक थे। “बेताल पच्चीसी” और “सिंहासन बत्तीसी” उनकी विवेकपूर्ण न्याय कथाओं से परिपूर्ण हैं। उनके दरबार में कालिदास, वराहमिहिर, धन्वंतरि जैसे नवरत्न विद्या और संस्कृति के प्रतीक बने। यह युग भारत के विज्ञान, साहित्य और खगोल की प्राचीन समृद्धि का प्रमाण है।

स्वर की कोमलता ने हृदय को छुआ

महानाट्य “सम्राट विक्रमादित्य” की यादगार और भव्य प्रस्तुति के बाद सुप्रसिद्ध गायिका स्नेहा शंकर एवं साथी, मुंबई द्वारा सुगम संगीत की मनमोहक प्रस्तुति दी गई। उनकी गायकी में ऐसा सुरीलापन और आत्मीयता झलकी, मानो हर सुर में एक कहानी, हर ताल में एक भावना बसी हो। मधुर स्वर लहरियों ने वातावरण को भावनाओं के सागर में डुबो दिया। श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे- कभी स्वर की कोमलता ने हृदय को छुआ, तो कभी लय की गहराई ने मन को आल्हादित कर दिया। उनकी आवाज में था संगीत का जादू, जिसमें संवेदना, समर्पण और सहजता का अद्भुत संगम था- एक ऐसी प्रस्तुति जो देर तक श्रोताओं के मन में गूंजती रही।

अहिराई नृत्य में अहीर नायकों की गाई जाती हैं वीर गाथाएं

सायंकालीन प्रस्तुतियों से पूर्व मध्य प्रदेश के लोक एवं जनजातीय नृत्यों की प्रस्तुति हुई। इसमें संतोष यादव एवं साथी, सीधी द्वारा अहिराई लाठी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। बघेलखंड में यादव समुदाय द्वारा ‘अहिराई नृत्य’ अहीर नायकों की वीर गाथाएँ गाई जाती है। वहीं, शिशुपाल सिंह एवं साथी, टीकमगढ़ द्वारा मोनिया नृत्य प्रस्तुत किया गया। बुंदेलखंड का यह लोकनृत्य कार्तिक माह में अमावस्या से पूर्णिमा तक किया जाता है। अनुजा जोशी एवं साथी, खंडवा द्वारा गणगौर नृत्य की प्रस्तुति दी गई। गणगौर निमाड़ी जन-जीवन का गीति काव्य है। स्वाति उखले एवं साथी, उज्जैन द्वारा मटकी नृत्य की प्रस्तुति दी। विभिन्न अवसरों पर मालवा के गाँव की महिलाएँ मटकी नाच करती है।

कार्यक्रम में अरविंद यादव एवं साथी, सागर द्वारा बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। बुन्देलखण्ड अंचल में जन्म विवाह और तीज-त्यौहारों पर बधाई नृत्य किया जाता है। अगले क्रम में लालबहादुर घासी एवं साथी द्वारा घसियाबाजा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। सरगुजा जिले के सुदूर ग्रामीण अँचल में रहने वाले विशेष कर घासी जाति का यह परम्परागत नृत्य एवं जीविका का साधन है। इसके बाद संदीप उइके एवं साथी, सिवनी द्वारा गोण्ड जनजातीय नृत्य गुन्नूरसाई की प्रस्तुति दी गई।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

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