उज्जैन में हरि-हर मिलन : गोपाल मंदिर पहुंचे बाबा महाकाल, श्रीहरि को सौंपा सृष्टि का भार

04 Nov 2025 12:45:01
उज्जैन में हरि-हर मिलन


भस्म आरती में भगवान महाकाल का श्रृंगार


उज्जैन, 04 नवंबर (हि.स.)। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में प्रतिवर्ष की भांति इस साल भी हरि-हर मिलन का अद्भुत नजारा देखने को मिला। यहां सोमवार को कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी (वैकुण्ठ चतुर्दशी) की अर्द्ध रात्रि को भगवान महाकाल गोपाल मंदिर पहुंचे और श्री हरि (भगवान विष्णु) और हर (भगवान शिव) को सृष्टि के संचालन का भार सौंपा। इस दौरान हजारों श्रद्धालु इस अनूठे मिलन के साक्षी बने। इस मौके पर उज्जैन कलेक्टर रोशन सिंह, महाकाल मंदिर प्रशासक प्रथम कौशिक भी मौजूद रहे।

पुराणों के अनुसार देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बली के यहां विश्राम करने जाते हैं, इसलिए उस समय संपूर्ण सृष्टि की सत्ता का भार शिव के पास होता है। भगवान महाकाल यही भार लौटाने के लिए वैकुंठ चतुर्दशी पर चांदी की पालकी में सवार होकर अपनी बिल्वपत्र की माला पहनकर भगवान विष्णु के पास पहुंचते हैं। खास बात यह है कि दो देवों का अद्भुत मिलन का यह नजारा वर्ष में केवल एक बार ही देखने को मिलता है।

परम्परा के मुताबिक महाकालेश्वर मंदिर से सोमवार की रात 11 बजे सवारी गोपाल मंदिर के लिए धूमधाम से निकली। आतिशबाजी के बीच सवारी महाकाल चौराहा, गुदरी बाजार, पटनी बाजार होते हुए गोपाल मंदिर पहुंची। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने आतिशबाजी करते हुए भगवान महाकाल की सवारी का स्वागत किया। भगवान महाकाल की सवारी निकलने से पहले ही श्रद्धालु रास्ते भर आतिशबाजी करते नजर आए।

गोपाल मंदिर पहुंचने पर भगवान विष्णु और भगवान शिव का मिलन, हरि-हर मिलन के रूप में हुआ। मंत्र उच्चारण के साथ करीब एक घंटे तक पूजन-पाठ चलने के बाद भगवान शिव की बेलपत्र की माला भगवान विष्णु को और भगवान विष्णु की तुलसी की माला भगवान महाकाल पहनाकर सत्ता परिवर्तन की परम्परा निभाई गई। इस दौरान दोनों ही देवताओं को एक-दूसरे के प्रिय वस्तुओं का भोग लगाया गया। पूजन पश्चात रात 2 बजे भगवान महाकाल की सवारी पुन: मंदिर के लिए रवाना हुई।

मान्यता है कि दोनों भगवानों के बीच सत्ता का हस्तांतरण होता है। इसके लिए पंडे-पुजारी द्वारा दोनों भगवानों के समक्ष मंत्र उच्चारण करते हुए तुलसी की माला भगवान विष्णु को स्पर्श कर भगवान शिव को धारण कराई जाती है और बिल पत्र की माला भगवान शिव को स्पर्श करने के बाद भगवान विष्णु को पहनाई जाती है। इस हरी और हर के मिलन के बाद भगवान शिव चार महीने के लिए सृष्टि के भार को भगवान विष्णु को सौंप देते हैं और हिमालय पर्वत पर चले जाते हैं।

महाकाल मंदिर के पुजारी महेश शर्मा ने बताया कि जब सवारी गोपाल मंदिर पहुंचती है, तब हरि-हर के समीप विराजते हैं और इसके बाद सत्ता एक-दूसरे को सौंपने के लिए पूजन विधि शुरू होती है। भगवान श्री महाकालेश्वर एवं श्री द्वारकाधीश का पूजन प्रारंभ होता है। दोनों ही भगवान का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से पंचामृत अभिषेक किया जाता है। इसके बाद भगवान श्री महाकाल का पूजन विष्णु की प्रिय तुलसी की माला अर्पित कर किया जाता है, वहीं भगवान शिव की प्रिय बिल्वपत्र की माला भगवान विष्णु को अर्पित की जाती है। तुलसी की माला भगवान विष्णु को स्पर्श कराकर भगवान शिव को धारण कराई जाती है। इसी तरह भगवान शिव को बिल्वपत्र की माला स्पर्श कर भगवान विष्णु को पहनाई जाती है। इस प्रकार दोनों की प्रिय मालाओं को पहनाकर सृष्टि की सत्ता का हस्तांतरण होता है।

भस्म आरती में भगवान महाकाल का तुलसी की माला और वैष्णव तिलक अर्पित

इधर, महाकालेश्वर मंदिर में मंगलवार तड़के भस्म आरती के दौरान भगवान महाकाल का तुलसी की माला और वैष्णव तिलक अर्पित कर श्रृंगार किया गया। इस दौरान बाबा महाकाल के इस दिव्य स्वरूप के हजारों श्रद्धालुओं ने दर्शन किए।

महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने बताया कि मंदिर मे कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर आज मंगलवार सुबह 4 बजे भस्म आरती हुई। इस दौरान वीरभद्र जी से आज्ञा लेकर ही पण्डे पुजारियों ने गर्भगृह में स्थापित सभी भगवान की प्रतिमाओं का पूजन किया। जिसके बाद भगवान महाकाल का जलाभिषेक दूध, दही, घी, शक्कर पंचामृत और फलों के रस से किया गया। पूजन के दौरान प्रथम घंटाल बजाकर हरि ओम का जल अर्पित किया गया।

पुजारियों और पुरोहितों ने इस दौरान बाबा महाकाल का श्रीकृष्ण स्वरूप में शृंगार कर कपूर आरती के बाद बाबा महाकाल को नवीन मुकुट के धारण कराया गया, जिसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भगवान महाकाल को भस्म चढ़ाई गई। इसके बाद भगवान महाकाल को शेषनाग का रजत मुकुट, रजत की मुण्डमाल और रुद्राक्ष की माला के साथ तुलसी से बनी माला धारण कराई गई और फल-मिष्ठान का भोग लगाया गया। झांझ, मंजीरे, डमरू के साथ भगवान महाकाल की भस्म आरती की गई। भस्म आरती में बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने बाबा महाकाल का आशीर्वाद लिया।__________

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

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