
नई दिल्ली, 06 नवंबर (हि.स.)। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि युवाओं को तकनीकी ज्ञान और उपकरणों से सशक्त बनाना हमारे साझा भविष्य में सबसे बड़ा निवेश है।
भारत की 70 प्रतिशत आबादी 40 वर्ष से कम है, इसलिए जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई की भाषा युवाओं की भाषा होनी चाहिए यानी डिजिटल, रचनात्मक और प्रेरणादायक। उन्होंने सुझाव दिया कि सोशल मीडिया और डिजिटल अभियानों के माध्यम से सतत जीवनशैली को लोकप्रिय बनाया जाए। डॉ जितेन्द्र सिंह गुरुवार को जामिया मिलिया इस्लामिया में आयोजित एशियन कॉन्फ्रेंस ऑन जियोग्राफी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
डॉ. सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेट-जीरो 2070 के लक्ष्य और लाईफ आंदोलन के मार्गदर्शन में भारत आर्थिक प्रगति और पर्यावरणीय स्थिरता को जोड़ने वाला वैश्विक अग्रदूत बन गया है।
उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया द्वारा इस प्रतिष्ठित सम्मेलन के प्रथम संस्करण की मेजबानी के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन और कुलपति प्रो. मजहर अली को बधाई दी तथा इसे अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और छात्रों को एक मंच पर लाने वाला सराहनीय प्रयास बताया।
आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने चेताया कि यदि उत्सर्जन मौजूदा स्तर पर जारी रहा तो एशिया को हीटवेव, बाढ़ और जल-संकट जैसी चरम जलवायु घटनाओं की बढ़ती मार झेलनी पड़ेगी।
उन्होंने बताया कि दक्षिण एशिया में 75 करोड़ से अधिक लोग जलवायु जोखिमों के गंभीर प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं- हिमालयी हिमनद पिघलने से लेकर तटीय बाढ़ और शहरी गर्मी द्वीपों तक। दिल्ली, ढाका, बैंकॉक और मनीला जैसे महानगर 2050 तक सबसे अधिक संवेदनशील शहरों में शामिल होंगे।
डॉ. सिंह ने कहा कि नगरीकरण प्रगति का प्रतीक होने के बावजूद, बिना योजना के विस्तार, बाढ़ मैदानों पर अतिक्रमण, भूजल का दोहन और प्रदूषण इसके प्रमुख संकट हैं। 2014 की श्रीनगर बाढ़ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी आपदाएं केवल प्राकृतिक नहीं होतीं, बल्कि मानव उपेक्षा और गलत योजना से बढ़ती हैं।
उन्होंने बताया कि एशियाई देशों में लगभग 80 प्रतिशत अपशिष्ट जल बिना उपचार के बहाया जाता है और शहरी भारत हर वर्ष 5 प्रतिशत की दर से बढ़ते हुए 5.5 करोड़ टन ठोस कचरा उत्पन्न करता है।
डॉ. सिंह ने कहा कि वेस्ट-टू-वेल्थ तकनीकें और सर्कुलर इकॉनमी पहल भविष्य का मार्ग हैं, जहां “कचरा” जैसी अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी। उन्होंने देहरादून में प्रयुक्त खाना पकाने के तेल के पुनर्चक्रण जैसी परियोजनाओं का उल्लेख किया, जो पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ समुदाय स्तर पर आय सृजन भी कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि किसी भी सरकारी पहल की सफलता जनसहभागिता पर निर्भर करती है। जब तक सामाजिक आंदोलन नहीं बनता, न नीति काम करती है न संगोष्ठियां परिणाम देती हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन की सफलता का श्रेय नागरिकों के व्यवहार में आए परिवर्तन को दिया।
डॉ. सिंह ने कहा कि भारत की सतत विकास प्रतिबद्धता नीतियों और सुशासन के ठोस ढांचे में निहित है- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना, राज्य कार्य योजनाएं, स्मार्ट सिटीज मिशन, अमृत और स्वच्छ भारत मिशन इसके उदाहरण हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी