कांग्रेस ने राष्ट्रगीत की आत्मा को कुचला, उसके डीएनए में है तुष्टिकरण : केशव मौर्य

युगवार्ता    07-Nov-2025
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वंदे मातरम् के कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह


वंदे मातरम् के कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह-


- अब तक इतिहास की परछाई से नहीं निकल पाई है कांग्रेस- विकसित भारत के संकल्प में 'वंदे मातरम्' नई पीढ़ी का ऊर्जा मंत्र

मोतिहारी, 07 नवम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और बिहार में चुनाव सह प्रभारी केशव प्रसाद मौर्य ने शुक्रवार को मोतिहारी में राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया। वे पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता राधा मोहन सिंह के साथ राष्ट्रगीत के सामूहिक गान में सम्मिलित हुए और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन को सुना।

इसके पूर्व केशव प्रसाद मौर्य ने 'एक्स' पर लिखा, 'वंदे मातरम्' भारत की स्वाधीनता का वह अमर मंत्र है, जिसने भय को बल में, दासता को दृढ़ता में और जनभावनाओं को जनक्रांति में बदला। कांग्रेस ने इस मंत्र की आत्मा को सीमित कर दिया और आज भी उसी तुष्टिकरण की मानसिकता में फंसी है'।

कार्यक्रम में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि जिस दौर में आजादी एक सपना थी, उस समय 'वंदे मातरम्' ने जन-जन में क्रांति की ज्वाला जलाई। यह गीत अंग्रेजी हुकूमत के लिए सबसे बड़ा डर बन गया था। जेलों में बंद क्रांतिकारी इसे गाते हुए फांसी के फंदे पर झूलते थे। नेताजी सुभाषचंद्र बोस से लेकर भगत सिंह तक, सबके होंठों पर यही उद्घोष था- वंदे मातरम्! यह गीत किसी धर्म का नहीं, बल्कि उस मातृभूमि का प्रतीक था, जिसने अपने बच्चों को स्वराज्य का मंत्र दिया।

केशव मौर्य ने कहा कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जी की अमर कृति आनंदमठ से निकला यह प्रेरक आवाहन उस समय जन्मा, जब आजादी एक स्वप्न थी और इसने उस स्वप्न को संकल्प में बदल दिया। इस राष्ट्रमंत्र ने न केवल दासता से जकड़े समाज को आत्मगौरव का बोध कराया, बल्कि भारत के कण-कण में जागरण की, वह ज्वाला प्रज्वलित की, जिसने माँ भारती के चरणों में ​बलिदान, भक्ति व एकता का दीप जलाया।

उन्होंने कहा कि इतिहास की एक कड़वी परत यह भी है कि 1923 के कांग्रेस के काकीनाडा अधिवेशन में पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने 'वंदे मातरम्' का विरोध किया। मुस्लिम कटरपंथियों के दबाव में आकर 1937 में गीत के केवल दो अंतरे गाने का निर्णय हुआ। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कांग्रेस ने राष्ट्रगीत की आत्मा को सीमित कर दिया और वहीं से शुरू हुआ कांग्रेस का तुष्टिकरण के प्रति ऐसा झुकाव, जिससे कांग्रेस आज तक उठ नहीं पा रही है।

कशव प्रसाद मार्य ने कहा कि 'वंदे मातरम्' सिर्फ दो शब्द नहीं, बल्कि वह अमर मंत्र है, जिसने परतंत्र भारत को आत्मगौरव और स्वतंत्रता की राह दिखाई। यह गीत आज भी अपनी 150वीं वर्षगांठ पर उसी जोश और जज्बे के साथ राष्ट्र के दिलों में गूंज रहा है। लेकिनकांग्रेस आज भी उस झिझक से मुक्त नहीं हो पाई है, जो 1937 में पैदा हुई थी।

उन्होंने कहा कि नए भारत की कर्म, सेवा और समर्पण में हो मां भारती की वंदना,यही पुकार है। जब भारत विकसित भारत-2047 के सपने की ओर बढ़ रहा है, तब 'वंदे मातरम्' केवल गीत नहीं, एक राष्ट्रीय प्रतिज्ञा बन गया है। यह भाजपा की विचारधारा की धड़कन है। युवा पीढ़ी के लिए ऊर्जा का मंत्र है। आज का भारत कहता है कि 'वंदे मातरम्' सिर्फ गाने का नहीं, जीने का मंत्र है। माँ भारती की वंदना अब कर्म, सेवा और समर्पण में झलकेगी।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आईटी सेल और कई केंद्रीय नेताओं ने #VandeMataram150Years ट्रेंड करते हुए इसे राष्ट्र चेतना का उत्सव बताया। भाजपा नेताओं ने कहा कि जब पूरा देश राष्ट्रगौरव का उत्सव मना रहा है, कांग्रेस तब भी मौन है। यही उसका राष्ट्रभावना से अलगाव दर्शाता है।

बहरहाल, इस ऐतिहासिक अवसर पर राजनीति फिर से गरमा गई है। भाजपा इसे राष्ट्र की आत्मा और विकसित भारत का मंत्र बता रही है, जबकि कांग्रेस अपने पुराने तुष्टिकरण के बोझ से घिरी नजर आ रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि यही वह पल था, जब कांग्रेस ने राष्ट्रभावना से ऊपर तुष्टिकरण को चुना और यही प्रवृत्ति आगे चलकर 'भारत माता की जय' और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर उसकी झिझक में भी दिखी।-------

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश

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