
- जन्म के समय का ही जेंडर दर्ज करना होगा अनिवार्य, बाकी विकल्प होंगे खत्म
वाशिंगटन, 07 नवंबर (हि.स.)। अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने ट्रंप प्रशासन को बड़ी राहत प्रदान करते हुए उसे पासपोर्ट में बदलाव की अनुमति प्रदान कर दी। न्यायालय ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि नई पासपोर्ट नीति किसी के भी अधिकारों का हनन नहीं करती। नई पासपोर्ट नीति लागू होने के बाद अमेरिकी नागरिकों को पासपोर्ट के आवेदन के समय जन्म के समय का ही जेंडर ( स्त्री या पुरुष) दर्ज करना होगा। पासपोर्ट के आवेदन दस्तावेज में और कोई विकल्प नहीं होगा। ट्रंप प्रशासन को पासपोर्ट नीति में बदलाव के लिए काफी समय से कानूनी अड़चन का सामना करना पड़ रहा था।
सीएनएन चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को ट्रंप प्रशासन को ट्रांस और नॉन-बाइनरी अमेरिकियों के लिए पासपोर्ट पर पहचान के विकल्प को सीमित करने की अनुमति दे दी। इस फैसले को ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी अमेरिकियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। यह वर्ग शुरू से इस नीति को असंवैधानिक ठहराता रहा है। दरअसल, ट्रांस और नॉन-बाइनरी अलग-अलग शब्द हैं। हालांकि कुछ लोग खुद को दोनों मानते हैं। ट्रांस (ट्रांसजेंडर) ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है जिसकी पहचान जन्म के समय दिए गए जेंडर से भिन्न होती है। नॉन-बाइनरी व्यक्ति खुद को पूरी तरह से पुरुष या महिला के रूप में नहीं मानता।
उच्चतम न्यायालय के इस आदेश को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक और जीत एवं एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) अधिकारों के लिए एक और झटका माना जा रहा है, क्योंकि कई न्यायाधीश ट्रांस अमेरिकियों से जुड़े राज्य कानूनों से जुड़े कई मामलों पर विचार कर रहे हैं। अदालत ने आदेश में कहा, पासपोर्ट धारकों के जन्म के समय के जेंडर का प्रदर्शन करना उनके जन्म के देश को प्रदर्शित करने से अधिक समान सुरक्षा सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है। दोनों ही मामलों में प्रशासन किसी के साथ भेदभाव किए बिना केवल एक ऐतिहासिक तथ्य की पुष्टि कर रही है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति केतनजी ब्राउन जैक्सन ने इस आदेश पर तीखी असहमति व्यक्त की है। न्यायालय के अन्य दो उदारवादी न्यायाधीशों ने जैक्सन के विचारों का समर्थन किया है। केतनजी ब्राउन जैक्सन को पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने न्यायालय में नामित किया था। जैक्सन ने कहा कि यह न्यायसंगत नीति की बेतुकी अनदेखी और दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। उन्होंने कहा कि इस अदालत ने एक बार फिर बिना किसी पर्याप्त औचित्य के लोगों को चोट पहुंचाई है।
ट्रंप प्रशासन की नई पासपोर्ट नीति को न्यायालय में चुनौती देने वाले अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन ने फैसले को स्वतंत्रता के लिए एक हृदयविदारक झटका बताया। ऐसे मामलों के वकील जॉन डेविडसन ने कहा, ट्रांसजेंडर लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध पासपोर्ट रखने के लिए मजबूर करने से उनके उत्पीड़न और हिंसा का खतरा बढ़ जाता है।
अमेरिकी पासपोर्ट में पहली बार 1976 में जेंडर चिह्न अंकित किए गए थे। 1992 में विदेश विभाग ने नागरिकों को जन्म के समय निर्धारित जेंडर के विपरीत चिह्न चुनने की अनुमति दी थी। 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति बाइडेन प्रशासन ने लोगों को अपने पासपोर्ट पर अतिरिक्त जेंडक चिह्न चुनने की अनुमति दी थी। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के चुनाव में जनता से वादा किया था कि वह पुरानी पासपोर्ट नीति को बदल देंगे। इस साल की शुरुआत में पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद उन्होंने नई पासपोर्ट नीति की घोषणा की। इस पर हंगामा खड़ा हो गया। मैसाचुसेट्स के एक संघीय न्यायाधीश ने एक सामूहिक मुकदमा दायर करके सरकार को इस नीति को देशव्यापी स्तर पर लागू करने से रोक दिया। बोस्टन की एक संघीय अपील अदालत ने इस न्यायाधीश के आदेश को रोकने के प्रशासन के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इसके फौरन बाद ट्रंप प्रशासन ने तुरंत उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आपातकालीन अपील दायर की। प्रशासन ने तर्क दिया कि निचली अदालत के आदेश का कानूनन कोई आधार नहीं है।
प्रशासन ने यह भी तर्क दिया कि अदालतें राष्ट्रपति की उन नीतियों की समीक्षा नहीं कर सकतीं जो प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम के विरुद्ध हों। यह एक ऐसा कानून है जो संघीय एजेंसियों को संघीय नियमों को अपनाने या बदलने के लिए आवश्यक कदम निर्धारित करता है। अमेरिकी अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी ने एक्स पर कहा कि वकीलों ने उच्चतम न्यायालय के आपातकालीन मामले में अपनी 24वीं जीत हासिल की है। उन्होंने कहा कि जन्म के समय सिर्फ दो जेंडर होते हैं। हमारे वकीलों ने उच्चतम न्यायालय को इस सत्य को मानने के लिए तार्किक तरीके से प्रेरित किया। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता अन्ना केली ने इस फैसले की प्रशंसा करते हुए इसे राष्ट्रपति ट्रंप की जीत बताया।
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद