
वाराणसी,1 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में 2 दिसंबर से शुरू हाेने वाले काशी-तमिल संगमम-4 की सभी तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया गया। इसमें पहली बार स्पीच-टू-टेक्स्ट तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। यह खास तकनीक भाषा संप्रेषण को आसान बनाएगी।
इस बार काशी-तमित संगमम के स्पीच-टू-टेक्स्ट तकनीक का प्रयाेग कर विचारों के आदान-प्रदान को बड़े प्रोजेक्ट पर डिस्प्ले भी किया जाएगा।इससे भाषा संप्रेषण को आसान हाेगा। साेमवार काे इसका बीएचयू परिसर स्थित ओमकार ठाकुर सभागार में सफलतापूर्वक ट्रायल भी किया गया। आयोजकों का कहना है कि कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं के भाषण को रियल-टाइम में टेक्स्ट में बदला जा सकेगा, ताकि उपस्थित प्रतिनिधियों को समझने में आसानी हो सके। इस तकनीक से विभिन्न भाषाओं में बोलने वाले प्रतिभागियों के बीच सहज संवाद संभव होगा।
केडमिक कार्यक्रम में तकनीक का उपयोग
काशी तमिल संगमम-4 के तहत बीएचयू में होने वाले एकेडमिक कार्यक्रमों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जाएगा। 3 दिसंबर को होने वाली प्रमुख अकादमिक बैठक के लिए मंच और तकनीकी उपकरणों की सेटिंग लगभग पूर्ण हो चुकी है। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि इससे शैक्षणिक सत्रों की गुणवत्ता और प्रभावशीलता में वृद्धि होगी।
डेलिगेट्स व छात्रों के बीच भाषा का आदान-प्रदान
बीएचयू कुलपति अजित कुमार चतुर्वेदी के अनुसार इस कार्यक्रम में तमिलनाडु से आने वाले विभिन्न डेलिगेट्स और बीएचयू के छात्रों के बीच सांस्कृतिक एवं भाषाई संवाद को बढ़ावा दिया जाएगा। स्पीच-टू-टेक्स्ट तकनीक दोनों ही समुदायों के लिए एक पुल का काम करेगी। इसका ट्रायल सफल हो गया है। इस बार कार्यक्रम में जो पहली दल पहुंचेगी, उसमें छात्रों का एक विशेष प्रतिनिधिमंडल शामिल है। ये छात्र तमिल संस्कृति, साहित्य और परंपराओं से परिचित कराए जाएंगे, साथ ही वे काशी की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी नज़दीक से जान सकेंगे।
—सांस्कृतिक एकता का अनूठा संगम
कुलपति प्रो. चतुर्वेदी के अनुसार काशी तमिल संगमम-4 का उद्देश्य उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना है। इस बार तकनीक और परंपरा के संगम के साथ भाषा का आदान-प्रदान विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र रहने वाला है। विश्वविद्यालय प्रशासन, शोधार्थी और छात्र इस ऐतिहासिक आयोजन को यादगार बनाने में जुटे हुए हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी