पिछले एक दशक में अयोध्या पर लेखन को लेकर बदला माहौल, पहले इनकार करने वाले प्रकाशक अब लिखने का कर रहें आग्रह : मीनाक्षी जैन

युगवार्ता    13-Dec-2025
Total Views |
‘प्रेरणा विमर्श 2025’ के दूसरे दिन का दृश्य


नई दिल्ली, 13 दिसंबर (हि.स.)। राज्यसभा सांसद और विख्यात इतिहासकार मीनाक्षी जैन ने शनिवार को अयोध्या से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पहले जब वह अयोध्या विषय पर पुस्तक लिखने का प्रयास कर रही थीं, तब प्रकाशक भारी दबाव में रहते थे और पुस्तक छापने से साफ इनकार कर देते थे, लेकिन आज वही प्रकाशक उनसे इस विषय पर पुस्तक लिखने का आग्रह कर रहे हैं।

मीनाक्षी जैन आज प्रेरणा शोध संस्थान न्यास के तत्वावधान में नोएडा में आयोजित तीन दिवसीय ‘प्रेरणा विमर्श 2025’ के दूसरे दिन प्रथम सत्र ‘मंत्र विप्लव (वैचारिक क्षेत्र में नवोत्थान)’ में मुख्य वक्ता के तौर पर संबोधित कर रही थीं।

मीनाक्षी जैन ने कहा, “अयोध्या के समय मैंने यह महसूस किया कि तब के प्रकाशक एक खास मानसिक दबाव में काम कर रहे थे। लेकिन पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार के शासनकाल में उनकी सोच में बड़ा बदलाव आया है। जो प्रकाशक पहले मुझसे अयोध्या पर लिखने से मना करते थे, वही आज मुझसे पुस्तक लिखने का आग्रह करते हैं। यह बदलाव केवल प्रकाशन जगत तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे वैचारिक क्षेत्र में दिखाई देता है।”

उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन लोकतंत्र के लिए सकारात्मक संकेत है, क्योंकि विचारों का मुक्त प्रवाह किसी भी समाज के बौद्धिक विकास की आधारशिला होता है। उन्होंने इसे “वैचारिक नवोत्थान का स्पष्ट प्रमाण” बताया।

इसी सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख प्रदीप जोशी ने सांस्कृतिक दृष्टि से देश में आए परिवर्तन पर जोर देते हुए कहा कि भारत दशकों तक सांस्कृतिक गुलामी से अभिशप्त रहा है, लेकिन अब उससे बाहर निकलने की प्रक्रिया निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है।

प्रदीप जोशी ने कहा, “सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति की हमारी लड़ाई लंबे समय तक चली है और यह संघर्ष अभी भी जारी है। लेकिन मुझे लगता है कि हम सांस्कृतिक गुलामी से बाहर निकलने में निश्चित तौर पर सफल हुए हैं। यह बदलाव देश के नवोत्थान की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।”

उन्होंने कहा कि जब कोई राष्ट्र अपनी संस्कृति और मूल्यों को लेकर आत्मविश्वास से भर जाता है, तभी वह वैश्विक मंच पर मजबूती से खड़ा हो सकता है। जोशी के अनुसार आज भारत में सांस्कृतिक चेतना का पुनर्जागरण हो रहा है, जो आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय एकता और आत्मनिर्भरता को और सशक्त करेगा।

सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रतिबिंब शर्मा ने किया। उन्होंने ‘विचारों के क्षेत्र में तकनीक–चुनौती या अवसर’ विषय पर वक्ताओं से संवाद करते हुए तकनीक के प्रभाव, अवसरों और संभावित चुनौतियों पर भी चर्चा कराई।

इस अवसर पर पिछले वर्ष आयोजित प्रेरणा विमर्श पर आधारित पुस्तक ‘पंच परिवर्तन’ का भी विमोचन किया गया, जिसे वैचारिक मंथन और राष्ट्रीय विमर्श की दिशा में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बताया गया।

दूसरे सत्र में वसुधैव कुटुंबकम (वैश्विक क्षेत्र में नवोत्थान) विषय पर पूर्व राजदूत सुशील कुमार सिंघल ने कहा कि जब तक अपनी सभ्यता के सिद्धांतों को आत्मसात नहीं करेंगे, उसके अनुसार विदेश नीति, अनुसंधान और आर्थिक नीतियां नहीं होंगी तब तक हम औपनिवेशिकवाद का ही अनुसरण करते रहेंगे। हमें अपनी सार्वभौमिकता बढ़ाने के लिए, उसको मजबूती देने के लिए खुद के बने रास्तों पर ही चलने का संकल्प लेना होगा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिल्पकार नरेश कुमार कुमावत ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में शिल्पकार के तौर पर मैंने जो अनुभव किया है वह इतना ही है कि देश की सार्वभौमिकता और सनातनी परंपरा, मूर्तियों की स्थापना के रूप में जिस तरीके की मजबूती इस सरकार के दौरान मुझे देखने को मिली है वैसा पिछली सरकारों में मुझे देखने का अनुभव नहीं मिला। दूसरी बात यह कि मैं जब भी किसी विदेशी मुल्क में गया तो वहां भी सनातन की जो अलख जगी है वह पिछले 10 वर्षों की मोदी सरकार की बदौलत ही है, ऐसा मुझे प्रतीत होता दिखता है।

कार्यक्रम के संयोजक के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा ने कार्यक्रम का संचालन किया और मुख्य रूप से दोनों वक्ताओं-पूर्व राजदूत सुशील सिंघल और अंतरराष्ट्रीय शिल्पकार नरेश कुमार कुमावत से वैश्विक संबंधों को लेकर रोचक और दिलचस्प बातचीत की और उनसे वैश्विक संबंधों पर जानकारी साझा की।

तीसरे सत्र में शस्त्रेण रक्षति: राष्ट्रे (रक्षा क्षेत्र में नवोत्थान) विषय पर वक्ता रिटायर्ड मेजर जनरल विजय शरद रानाडे ने कहा कि इस वक्त युद्ध के नियम बदल गए हैं, लिहाजा हमारी सेना की सोच भी बदली है। अभी हमारी रक्षात्मक नीति से आक्रमण नीति बदली है, दृष्टिकोण बदला है, लड़ाई की परिभाषा बदली है। भारत ने स्वतंत्रता के बाद चार लड़ाइयां लड़ीं। बालाकोट, उरी और ऑपरेशन सिंदूर में दृष्टिकोण बदला है। रक्षा क्षेत्र में अब नई तकनीक आ रही हैं। ड्रोन और मिसाइलों का युग है। सीमाओं पर युद्ध ही नहीं, अब दूर से छद्म युद्ध भी लड़ा जा रहा है।

रक्षा विशेषज्ञ राजीव नयन ने कहा कि हमें सामरिक रणनीति को बदलना होगा। चीन को केवल शस्त्र से ही नहीं शास्त्र (बुद्धिमता) से भी हराना होगा। हमें आगे सजगता के साथ स्वदेशी मानसिकता और स्वदेशी यंत्रों की आवश्यकता है। बुद्धिमता और शौर्य प्रदर्शन के साथ संयम भी बरतना होगा। बिना युद्ध करे दुश्मन को समाप्त करना है तो उसे अपनी ताकत का एहसास कराना होगा।

कार्यक्रम संचालक के तौर पर नेटवर्क-18 के प्रबंध संपादक आनंद नरसिम्हन ने कहा कि शत्रु बोध के साथ स्वयं बोध भी जरूरी है। उन्होंने वक्ता के तौर पर सेवानिवृत मेजर जनरल विजय शरद रानाडे और रक्षा विशेषज्ञ राजीव नयन से देश की रक्षा क्षेत्र में नवोत्थान पर बातचीत और चर्चा के दौरान देश की सनातन परंपरा की ताकत पर बेबाक राय भी रखी। इस दौरान प्रेरणा सम्मान-2025 टाइम्स नाउ की ग्रुप एडिटर इन चीफ सुश्री नविका कुमार को दिया गया।

प्रेरणा विमर्श 2025 के दूसरे दिन का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि वैचारिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक आत्मबोध और राष्ट्रीय स्वाभिमान ही भारत के नवोत्थान के मजबूत स्तंभ हैं।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

Tags